Tuesday, February 19, 2013

सनातन धर्म मैं एकही अवतार के भिन् स्वरुप अलग अलग सामाजिक स्थिती मैं

HOW SANATAN DHARM COATS AVATAR WITH SUPERNATURAL POWERS WHEN THE SOCIETY IS WEAK, UNINFORMED, UNEDUCATED, AND LESS DEVELOPED; AND PRESENTS AVATAR WITHOUT SUPERNATURAL POWER WHEN THE SOCIETY IS DEVELOPED, EDUCATED AND INFORMED~~अवतार का स्वरुप कम विकसित, अशिक्षित समाज के लिए अलोकिक शक्ती की चादर के साथ होता है, और विकसित, शिक्षित समाज के लिए बिना अलोकिक शक्ती के 
यह पोस्ट इसलिए आवश्यक हो गयी क्यूँकी पोस्ट ‘क्या अवतार के पास अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति होती हैं ?’ को अत्यंत सरहाना मिली, कुछ पाठकों ने तो यहाँ तक कहा कि पहली बार उन्हें यह समझ मैं आया की सनातन धर्म मैं अवतार का सफल प्रयोग किस तरह से होता है| अनेक पाठकों का अनुरोध है इस विषय पर एक प्रथक पोस्ट की आवश्यकता है| आपका आदेश मानते हुए मैं यह प्रयास कर रहा हूँ|
यह पोस्टक्या अवतार के पास अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति होती हैं ?’ से सीधे जुडी हुई है, अर्थात उसी पोस्ट का एक अंग है, यानी की यह पोस्ट पूरी जब होती है, जब आप पहले पोस्टक्या अवतार के पास अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति होती हैं ?पढ़ लें, फिर इसे पढ़ें|
यह भी ध्यान देने की बात है कि त्रेता युग मैं श्री राम के समय, समाज, शिक्षा और विज्ञानिक विकास के स्थर पूरी तरह से विकसित था, स्वंम हम सब मानते हैं, की उस समय विमान भी थे| यह भी हम जानते हैं, कि विमान विज्ञानिक विकास के प्रथम चरण का विकास नहीं है| 
उस समय, एक के बाद तुरंत श्री राम को श्री विष्णु के दूसरे अवतार के रूप मैं अवतरित होना पड़ा, यह एक जबरदस्त प्रमाण है, की वह बहुत बुरा वक्त था, समाज के लिए|
इतना बुरा वक्त था, की श्री विष्णु को पहले भगवान परशुराम के रूप मैं अवतरित होना पड़ा, और तुरंत बाद श्री राम के रूप मैं| जब आप इस बात को इतिहास के परिपेक्ष मैं समझ लेंगे, तभी आपको अवतार और इश्वर मैं अंतर समझ मैं आएगा, और इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह आपको समझ मैं आयेगी, की सनातन धर्म, पृथ्वी का विकास का कारण, सृजन(CREATION) नहीं मानता, बल्की, विकास का कारण, क्रमागत उन्नति(EVOLUTION) को मानता है, और यही कारण है, की सनातन धर्म सब से अलग है|
यह भी स्पष्ट है, कि जब विमान था, विज्ञान अत्यंत विकसित था, तो रावण की सेना पत्थर फेकने वाले वानरों की सेना से नहीं हारी| वह इसलिए हारी क्यूँकी वानर भी आधुनिक हथियार प्रयोग कर रहे थे|
अब श्री कृष्ण की बात करते हैं|
आप गुलामी के १००० वर्ष के इतिहास मैं खुद झाँक कर देखें, तो आप पायेंगे, की गुलामी से पूर्व श्री कृष्ण का स्वरुप कर्मयोगी का था, लकिन गुलामी के समय श्री कृष्ण की बाल लीलाओ को ज्यादा महत्त्व दिया गया, उनको गोपियों के साथ रास लीला मैं दिखाया गया; पूरी तरह से धर्म का स्वरुप भावनात्मक कर दिया गया|

श्री कृष्ण के समय मैं विज्ञान अत्यंत विकसित था, मानव क्लोनिंग और मानव खेती हो रही थी| जहाँ पांडव, प्राकृतिक तौर पर माता के गर्भ मैं संतान के विकास को धर्म मान रहे थे, वहाँ कौरव मानव क्लोनिंग को धर्म मान रहे थे, और यही धर्म-युद्ध (विश्व-युद्ध) का कारण था| जब आप धर्म को समझ लेंगे, तभी आपको पूरी महाभारत, आज के अपने ज्ञान की क्षमता के परिपेक्ष मैं, समझ मैं आयेगी, नहीं तो गुलामी से पहले की भावनात्मक सोच से ही आपको महाभारत समझनी होगी|

संषेप मैं, सनातन धर्म मैं सामाजिक विकास एक महत्वपूर्ण अंग है, और उसको साथ रख कर ही धर्म का स्वरुप निश्चित होता है| खेद, लकिन यह बहुत समय से नहीं हुआ, जिसके परिणाम स्वरुप, हमने १००० वर्ष की गुलामी भी झेली| लकिन तब समाज अशिक्षित था, सूचनाएं भी उपलब्ध नहीं थी, लकिन आज क्यूँ? आज, आज़ादी के ६५ वर्ष बाद, हिंदू समाज और गरीब होता जा रहा है, और धर्मगुरु, अत्यंत रईस! 
स्पष्ट है, की गलत धर्म सिखाया जा रहा है, और हमारी मानसिक्ता देखीये, हम किसी से कोइ प्रश्न भी नहीं कर रहे हैं |

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