Sunday, April 29, 2012

मर्यादा हीन पुरुष और मर्यादापुरुषोत्तम राम मैं अंतर

DIFFERENCE BETWEEN MARYADAHEEN PERSON AND MARYADAPURUSHOTTAM RAM~~श्री राम का प्रमुख अवतरित उद्देश था, मनुष्य कि नई प्रजाति वानर का समाज में उपनिवेश|  इस सोच ने राम को यह निर्णय लेने के लिए विवश कर दिया कि वे वानर सेना लेकर ही रावण से युद्ध करें 
अनेक प्रश्न इस विषय को लेकर सामने आ रहे हैं ; सबसे ज्यादा प्रश्न इस कथन के साथ कि वनवास मैं राम के पास अयोध्या से सेना बुलाने का कोइ विकल्प नहीं था |
ध्यान रहे यदि श्री राम की चरण पादुका अयोध्या के सिंघासन पर विराजमान थी , और सीता को वनवास दिया नहीं गया था , तो अयोध्या का उत्तरदायित्व सीता कि रक्षा के प्रति पूर्ण था, इसमें कोइ संदेह नहीं है |
फिर भी इसे दुसरे दृष्टिकोण से देखते हैं |
यह पोस्ट “राम सुग्रीव मैत्री संधि .एक विश्लेशण” को लेकर जो प्रश्न और जिज्ञासा उठ रही है उसका जवाब देना का प्रयास है |
श्री राम ने बालि, सुग्रीव मल युद्ध मैं , बाहर से, एक पेड के पीछे से तीर मार कर, निर्णायक हस्तक्षेप करा , और बालि प्राणघातक अवस्था मैं पहुच गए |अब आपको इस प्रश्न का उत्तर देना है :
क्या बाहर से हस्तक्षेप करने वाला यह कार्य किसी भी उत्तरदायी/जिम्मेदार, राजा/राजकुमार को शोभा देता है ? क्या यह कार्य उस व्यक्ति को मर्यादाहीन पुरुष कहलाने के लिए पर्याप्त नहीं है ?
उत्तर चाहे आप दे या मैं, उत्तर एक ही है ; जी हाँ, केवल यह कार्य उस व्यक्ति को मर्यादा हीन पुरुष कहलाने के लिए पर्याप्त है |

फिर राम मर्यादापुरुषोत्तम क्यूँ कहलाते हैं ? 

श्री राम ही नहीं, यदि कोइ भी अत्यंत शक्तिशाली व्यक्ति जिसकी प्रिये पत्नी का अपहरण हो गया हो, उसका पहला धार्मिक कर्तव्य है कि पूरी शक्ति लगा दे, अपनी पत्नी को वापस लाने के लिए, और अपहरणकरता को उचित दंड देने के लिए | 
रावण से युद्ध के लिए,  राम के पास विकल्प था अयोध्या से सेना बुलाने का ; और अयोध्या की सेना के साथ निश्चित ही जनकपुरी और अन्य मित्र राज्यों की सेना भी आती | वह सर्वप्रथम विकल्प होना था , इस कारण भी कि युद्ध मैं विजय केवल एक की होती है, तो समाज के सामने आपको सही कार्य और उद्धारण भी प्रस्तुत करना होता है.....यह राजा का अनिवार्य कर्तव्य भी है |
लकिन राम ने इस विकल्प का प्रयोग नहीं करा | विष्णु अवतार श्री राम का एक प्रमुख अवतरित उद्देश था , मनुष्य कि नई प्रजाति वानर का समाज में उपनिवेश | अभी तक कोइ भी राज्य वानरों को मनुष्य होने की मान्यता देने के लिए भी तैयार नहीं था, और जैसा कि कहा गया है, यह उनका एक प्रमुख उद्देश था अवतरित होने का | वानर प्रजाति का समाज मैं उपनिवेश सुगमता से हो सके, इस सोच ने राम को यह निर्णय लेने के लिए विवश कर दिया कि वे वानर सेना से ही रावण से युद्ध करें | 
ध्यान देने कि बात है कि राम कि प्राथमिकता अयोध्या राज्य कि प्रतिष्टा, और स्वंम खुद कि प्रतिष्टा होनी चाहिए थी, जिसमे सीता का हित सर्वप्रिये होना चाहिए था . लकिन राम ने वानर प्रजाति का हित सर्वप्रिये रखा |
जब कोइ व्यक्ति अपना निजी स्वार्थ भी दाव पर लगा देता है, सिर्फ समाज हित के लिए , तो ऐसे व्यक्ति का मर्यादा हीन कार्य , जो उसने समाज हित के लिए , अपना निजी स्वार्थ दांव पर लगा कर किया है, वही कार्य उसे मर्यादापुरुषोत्तम कि उपाधि से सुशोभित करता है |
पूरे इतिहास मैं, मेरी समझ मैं , श्री राम के अतिरिक्त और कोइ भी व्यक्ति ऐसा नहीं है , जो मर्यादापुरुषोत्तम कहला सके |

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