Thursday, May 10, 2012

रामायण इतिहास है या धार्मिक ग्रन्थ

वेद, उपनिषद धार्मिक ग्रन्थ होते हुए भी उनमें विशेष संशोधन नहीं हुआ है| परन्तु रामायण के हर प्रान्त मैं उसका अलग संस्करण उपलब्ध है,  विदेशो मैं भी अलग संस्करण हैं| इतिहास के साथ ऐसा स्वाभाविक भी है
IS RAMAYAN HISTORY OR RELIGIOUS TEXT 
इस प्रश्न का उत्तर, चर्चा मैं लोग अपनी सुविधा अनुसार दे देते हैं |
परन्तु जब हिंदू समाज कर्महीनता की हद छु रहा है, तब आवश्यक हो जाता है कि हर प्रश्न का सही उत्तर समाज के पास हो |
पहले हिंदू शास्त्रों के अनुसार धार्मिक ग्रन्थ और इतिहास मैं अंतर समझते हैं | 
पहले यह समझ लें कि सनातन धर्म मैं प्रमुख तीन प्रकार के पाठ्य पुस्तक हैं:
1. वेद
2. उपनिषद
3. पुराण 
वेद और उपनिषद धार्मिक ग्रंथो मैं आती हैं ; प्राचीन होते हुए भी उनमें , विशेषज्ञों के मत माने तो, कोइ विशेष संशोधन , या अंतर्वेषण नहीं हुआ है | धार्मिक ग्रंथो का अलग अलग समय मैं नवीन संस्करण भी नहीं आये हैं |
परन्तु रामायण के साथ ऐसा कुछ नहीं है | हिन्दुस्तान के हर प्रान्त मैं उसका अलग संस्करण उपलब्ध है; यहाँ तक कि विदेशो मैं भी उसके अलग संस्करण हैं | इतिहास के साथ ऐसा स्वाभाविक भी है | 
इतिहास कि परिभाषा ही है , कि तथ्योँ की प्रस्तुति उस समय के शासक और जनता के इच्छा अनुकूल | 
क्या इतना पर्याप्त नहीं है समझने के लिए कि रामायण इतिहास है | यह भी मानना होगा कि समस्त पुराण इतिहास हैं , तथा उनमें व्याख्या और अंतर्वेषण(INTERPRETATION and INTERPOLATION) का प्रयोग करके अनेक कथाएँ जोड़ दी गयी, या स्वरुप बदल दिया गया हैं | कुछ इसलिए कि जिस समय मैं जोड़ी/बदली गयी हैं , उस समय कि आवश्यकता रही होगी, और कुछ भविष्य को स्पष्ट सन्देश न देने के लिए |
उदहारण के तौर पर ऋषि , महारिषि जानो का अभ्रद व्यवाहर , तथा देवताओं का स्वार्थ-सिद्ध व्यवहार सन्देश देता है भविष्य के समाज को , कि धार्मिक गुरु किसी भी युग मैं धर्म परायण नहीं थे ; अपने स्वार्थ के लिए हर युग मैं धर्म का नाश इनसे ही शुरू हुआ है |
कभी आपने सोचा है कि यदि धर्म हर समाज का विशिष्ट अंग है, तो विश्व पतन कि और कैसे बढ़ता है ?
ध्यान रहे केवल एक ही तरीका है पतन कि और बढ़ने का, और वह है कि उस समाज के धर्म गुरु जानो कि गलत सोच |
यह हमेशा ध्यान रखने वाली बात है कि श्रृष्टि का विनाश आरम्भ होता है धर्म के पतन से, फिर होता है समाज का पतन और तब श्रृष्टि विनाश कि और बढती है | और यह जो कहा गया है, वह कोइ भी सामाजिक विशेषज्ञ बता देगा | यदि धर्म महत्वपूर्ण अंग है , विश्व के हर समाज का, तो इसके अतिरिक्त कोइ और तरीका नहीं है, श्रृष्टि के विनाश का |
रामायण यदि इतिहास है तो उसे आज के समाज कि प्रगति का साधन बनाना होगा | और वैसे भी हिंदू समाज कि तरफ से अनेक मामले सुप्रीम कोर्ट मैं इस बात के लिए हैं, कि रामेश्वरम मैं स्थित राम-सेतु मनुष्य निर्मित है , न कि स्वाभाविक रूप से बना है | 
साफ़ है हिंदू समाज रामायण को इतिहास मानता है , लकिन धर्म प्रचारक/गुरु इस बात के लिए तैयार नहीं हैं कि वे हिंदू समाज कि उनत्ति के बारे मैं सोचें , इसलिए उसे धार्मिक ग्रन्थ कह दिया जाता है |
भगवान विष्णु अवतार, श्री राम के इतिहासिक स्वरुप से जो उद्धरण स्थापित करे गए हैं , उसका लाभ हिंदू धर्म गुरु, समाज को देने के लिए तैयार नहीं हैं |

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