इश्वर सर्वशक्तिमान है, और भक्तकी रक्षा हेतु, कोइभी अंकुश उनपर नहीं है, लकिन अवतार की सीमाएं हैं |
यदि नरसिंह खम्बे से प्रकट हुए थे, तो हम यह क्यूँ नहीं मान लेते की इश्वर अपने भक्त की रक्षा के लिए आ गए !
“श्रृष्टि के सकारात्मक उनत्ति के लिए भगवान विष्णु का वानर प्रजाति मैं, नरसिंह के रूप मैं अवतरित होना , यह उदहारण स्थापित करता है , कि समाज मैं विषमता को दूर करने के लिए पिछड़ा वर्ग जो प्रयास करे वह सदेव सराहनीय है , इश्वर अवतार नरसिंह की तरह पूजनीय है | उसका सम्मान होना चाहिए विकसित मनुष्य वर्ग द्वारा”
यह पोस्ट अनेक जिज्ञासु प्रश्नकर्ताओं के फल स्वरुप आवश्यक हो गयी थी | प्रश्नकर्ताओं की जिज्ञासा इस विषय मैं है कि लोक-प्रिय पोस्ट : “हिंदू इतिहास ...सत्ययुग में इश्वर अवतार” मैं यह बात कही गयी है की नरसिंह वानर प्रजाति के वन मैं विकसित मनुष्य थे , जिन्होंने हिरणकश्यप का वध किया !
नरसिंह का मुख सिंह जैसा था ! आज भी हम नरसिंह को विष्णु अवतार मानते है !
कुछ पाठकों का कहना है कि नरसिंह अवतार तो खम्बे से प्रकट हुए थे, तो इस तथ्य को क्यूँ बदला जा रहा है , तो कुछ समर्थक कारण जानना चाहते है | इस कथन के कारण बहुत साधारण हैं , इश्वर और अवतार के बीच मैं जो अंतर है उसकी परिभाषा के अभाव मैं यह भ्रान्ति है |
प्रश्न यह है कि नरसिंह विष्णु अवतार थे या स्वंम भगवान विष्णु ?
सिर्फ इस प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करा गया है | ध्यान रहे, इश्वर सब बंधन से मुक्त हैं , वे अपने भक्त की रक्षा के लिए कुछ भी और कैसे भी सहायता कर सकते हैं | यदि प्रहलाद कि रक्षा के लिए स्वंम भगवान विष्णु आये थे, तो इश्वर पर श्रद्धा और बढ़ जाती है |
परन्तु इतिहास कुछ और सन्देश देना चाहता है |
इतिहास के समस्त स्त्रोत यह बताते हैं कि नरसिंह इश्वर अवतार थे | मनुष्य रूप मैं इश्वर अवतार कि अपनी सीमाएं हैं , मर्यादाएं हैं , जिसे वोह लांघ नहीं सकते |
मनुष्य का निश्चित जन्म और भौतिक पहचान होती है , जिसमें बंध कर ही वह समाज मैं सुधार लाते हैं | उचत्तम श्रेणी के मनुष्य और अवतार जो सुधार के लिए प्रयास करते हैं वो हर युग के लिए उद्धारण बन जाता है | अवतार जो उद्धारण प्रस्तुत करते हैं वह हर युग के लिए धर्म हो जाता है |
नरसिंह अवतार , जैसा की शब्दों का अर्थ है , का मुख सिंह जैसा था , ने हिरनकश्यप का वध करके समाज मैं वानर और मनुष्य के बीच मैं जो असमानता , विभिन्नता के कारण जो विषमता उत्पन्न हो रही थी , उसे अपने कठोर कर्म से और युद्ध मैं मनुष्यों का साथ देकर कम करने का प्रयास करा , तथा नरभक्षी राक्षसों का विनाश करा |
ध्यान रहे तब तक मनुष्य जिन्हें तब आर्य के नाम से जाना जाता था , वानर को मनुष्य तक नहीं मानते थे | उन्हें जानवर ही मानते थे , यदपि वे दो पेरो से चलते थे, और मनुष्य से उनकी भाषा मैं बात भी करते थे , जो कि जानवरों के लिए संभव नहीं था | मनुष्यों के अनुरोध पर और मनुष्यों की रणनीति के अनुसार ही युद्ध हुआ और नरसिंह का योगदान पूजनीय हो गया; वे आज भी नरसिंह अवतार के नाम से पूजे जाते हैं |
श्रृष्टि के सकारात्मक उनत्ति के लिए भगवान विष्णु का वानर प्रजाति मैं, नरसिंह के रूप मैं अवतरित होना , यह उदहारण स्थापित करता है , कि समाज मैं विषमता को दूर करने के लिए पिछड़ा वर्ग जो प्रयास करे वह सदेव सराहनीय है , इश्वर अवतार नरसिंह की तरह पूजनीय है | उसका सम्मान होना चाहिए विकसित मनुष्य वर्ग द्वारा |
परन्तु वह सत्ययुग था, जिसमे श्रोषण ही श्रोषण था, और इसका एक प्रमाण है इश्वर के अनेक अवतार |
आज कलयुग मैं हिंदू समाज , कमजोर वर्ग के शोषण को रोकने के लिए नरसिंह अवतार से प्रेरित है और वचनबद्ध है |
|| जय श्री राम; जय माता सीता ||
यह भी पढ़ें :
No comments:
Post a Comment