Tuesday, December 13, 2011

कलयुग मैं कर्म ही पूजा, पसंदीदा युग मनुष्य के लिये

KARMA IS WORSHIP IN KALYUG..BEST YUG FOR HUMANS TO LIVE
कलयुग को कर्मश्रेष्ट युग माना जाता है! इस युग में सिर्फ कर्म का ही फल मिलता है ! पूजा, भक्ति, गुरु के आश्रम में जा कर सेवा, यह सब आपको सही कर्म करने के लिये प्रेरित करता हैं, यह अपने आप में धर्मअनुसार कर्म नहीं है !
धर्मअनुसार कर्म वोह है जो की व्यक्ती अपनी उन्नति के लिये, अपने परिवार, तथा अपने पूरे परिवार, तथा जिस समाज, मोहल्लें, या सोसाइटी मैं वो रह रहा है, उसकी उनत्ति के लिये पूरी निष्ठा व् इमानदारी से करता है! ऐसा करते हुए वो समाज मैं प्रगती भी कर सकता है व् घन अर्जित भी कर सकता है !
यहाँ यह स्पष्टीकरण आवश्यक है कि निष्ठा व् इमानदारी से कार्यरत रहने का यह भी आवश्यक मापदंड है कि वह व्यक्ति समस्त नकरात्मक सामाजिक बिंदुओं का भौतिक स्थर पर विरोध करेगा , जैसे कि भ्रष्टाचार, कमजोर वर्ग तथा स्त्रीयों पर अत्याचार, पर्यावरण को दूषित करना या नष्ट करना, आदी, !

एक और उदहारण लेते हैं ! १००० वर्ष की गुलामी की लम्बी अवधि में ऐसे अनेक अवसर आये जब यदी समस्त राज्य मिल कर विदेशी हमलावरों का मुकाबला करते तो भारत का इतिहास कुछ और होता ! यह भी सही है कि समस्त राजा वीरतापूर्वक लड़े, लेकिन लड़े अलग अलग, और इतिहास आपको बताता है कि कितना व्यापक विनाश था ! यह किसी भी मानक से सही कर्म , या धार्मिक कर्म नहीं कहला सकता !
आपसब को फिर से आश्वस्त करदेना चाहता हूं कि कलयुग मानव के लिये सब से श्रेष्ठ युग है ! इससे पहले पोस्ट में दो मापदंडों के आधार पर कलयुग के श्रेष्ट युग होने की चर्च करी गयी थी! पढ़ने के लिये लिंक : कलयुग सबसे श्रेष्ट युग मनुष्य के रहने के लिये
अब बाकी दो बचे होए मापदंडो के आधार पर हम कलयुग की चर्चा करेंगे; जो की इस प्रकार हैं :
1. अवतार की उस युग में संख्या
2. वेदांत ज्योतिष
पहले वेदांत ज्योतिष से देखते हैं ! एक महायुग(या कल्प, जो भी आप कहना पसंद करें)के १२ भाग होते हैं! पहले ४ भाग सत्ययुग, इसके बाद के ३ भाग त्रेतायुग, बाद में २ भाग द्वापर युग, फिर १ भाग कलयुग, और बाद में २ भाग संधि काल !संधि कल दो महायुग के बीच का वोह भाग है जब पृथ्वी का स्वाभाविक पोषण होता है !
सत्य युग: 
पहला भाग या भाव जन्म दर्शाता है; सही भी है एक नये महायुग/कल्प का जन्म होता है, जिसमें सदिओं से भटक रहे मनुष्य, या यह कहिये कि पिछले महायुग के बचे होए मनुष्य अपने नेता, जिन्हे हम मनु के नाम से जानते हैं, के साथ यह संकल्प ले पाते हैं कि अब समुन्द्र के ऊपर ना रह कर पृथ्वी पर रहा जा सकता है! 
दूसरा भाव कुटुंब का है ! अब जब दुबारा पृथ्वी ही घर हो गई तो लोगो ने साथ मिल कर बस्तियां बनानी शुरू कर दी! 
तीसरा भाव छोटे भाई और बहेन का है ! जंगल में नई मनुष्य कि प्रजाति अब पनप रही थी, जिनके पूछ थी और जिन्हे हम वानर भी कहते हैं! 
चौथा भाव घर और गृह् सुख का है; अब अनेक बस्तियां मिल कर कबीला य राज्य कहलाने लगी ! तो यह है सत्ययुग की परिकल्पना जिसमें अधिकाँश समय राक्षसों का राज्य रहा और राक्षस उन मनुष्यों को कहते हैं जो मनुष्य का मास खाते हैं !
त्रेता युग:
पंचम भाग संतान का है ! पहली बार विष्णु अवतार परशुराम ने संगठित ढंग से कमजोर वर्ग , तथा स्त्रीयों के विरुद्ध जो अत्याचार हो रहे थे, उसके लिये सशक्त अभियान चलाए! 
छठा भाव शत्रु व् रोग का है ! इसी समय श्री राम ने मानव शत्रु रावण को परास्त करा तथा वानरों के विरुद्ध भेद भाव था उसे समाप्त करा तथा धर्म के नाम पर स्त्रीयों पर जो अत्याचार हो रहे थे उसपर अंकुश लगाया; अग्नि परीक्षा को अधर्म घोषित करा !
सप्तम भाव समाज का है; राम राज्य की स्थापना होई ! त्रेता युग में अधीकांश समय दुराचार था, हाँ राम राज्य तो हर मनुष्य का सपना है !
द्वापर युग : 
अष्टम भाव जीवन दर्शाता है ! जीवन एक रहस्य है जिसे कोइ आज तक समझ नहीं पाया ! द्वापर युग का शुरू का इतिहास भी रहस्य बना हूआ है ! नवं जो धर्म का भाव है, उसमे धर्म सम्बंधित स्तिथी इतनी बिगड गयी कि महाभारत युद्ध, और उसके बाद घोर विनाश हूआ ! द्वापर युग, और सत्य युग दोनों ही अत्यंत ही मनुष्य के लिये नकारात्मक युग रहे हैं !
कलयुग: 
दशम भाव कर्म का है ! कर्म मनुष्य के नियंत्रण में है ! इसलिये कलयुग में यदी आप उचित कर्म करें तो सुख और उनत्ति निश्चित है ! सिर्फ समस्या यह है कि दशम से जो नवा स्थान है वो शत्रु स्थान है, और नवम भाव धर्म का है, धर्मगुरु का भी है| अथार्त आपको जो भी गुरु मिलेगा, संभावना यह है कि वो आपको भटकाएगा ! इसके समाधान समाज को खोजना अवाश्यक है ! निसंदेह कलयुग वेदांत ज्योतिष के अनुसार श्रेष्ट युग है !
अब किस युग में कितने अवतार होएं हैं य संभावित हैं उससे युगों का आकलन करते हैं ! ध्यान रहे अवतार जब आते हैं जब धर्म का नाश होता है ! सतयुग में ४, त्रेता युग में २, द्वापर में २, तथा कलयुग में एक ! स्थिती स्पष्ट है, धर्म का कम नाश कलयुग में ही संभव है !
हर संभावित चर्चा कर के, तथा हर मापदंड पर आंकलन करने के पश्च्यात यह निसंकोच कहा जा सकता है कि कलयुग ही श्रेष्ट युग है !
You may also like to read:

No comments:

Post a Comment