आज़ादी से पहले चुकि हिंदू समाज अत्याचारों से त्रस्त था तथा धर्म परिवर्तन से बचने हेतु भी उसे अत्याचार सहने पड़ रहे थे, उस समय संतो ने ही कर्म भाग घटा कर भावनात्मक भाग बढा दिया था |भगवन विष्णु पृथ्वी पर जब जब धर्म की विशिष्ट हानि होती है, तब अवतरित होते हैं !
धर्म की हानि अनेक कारणों से हो सकती है, जिसमे प्रमुख कारण, जो कि हर युग के लिये मान्य हैं, वो इस प्रकार हैं :
धर्म की हानि अनेक कारणों से हो सकती है, जिसमे प्रमुख कारण, जो कि हर युग के लिये मान्य हैं, वो इस प्रकार हैं :
1. स्त्री पर विशेष अत्याचार जिसमें धार्मिक गुरुजन भी शामिल हों !2. कमजोर वर्ग पर विशेष अत्याचार जिसमें धार्मिक गुरुजन भी शामिल हों या चुप्पी सान्ध कर बैठे हों !3. जब शासकों व् धार्मिक गुरुजनों का व्यवहार श्रृष्टि विरोधी हो जायउपरोक्त तीनो कारण आवश्यक हैं भगवान विष्णु को मनुष्य रूप में अवतार लेने के लिये !
यहाँ पर प्रसंग रामायण का है !
आज़ादी से पहले चुकि हिंदू समाज अत्याचारों से त्रस्त था तथा धर्म परिवर्तन से बचने हेतु भी उसे अत्याचार सहने पड़ रहे थे, उस समय संतो ने ही कर्म भाग घटा कर भावनात्मक भाग बढा दिया था ! ताकी कर्महीन होकर ही सही, हिंदू समाज सर झुका कर बुरा वक्त निकाल ले जाय !
उस समय रामायण भावनात्मक तरीके से अत्याचार के विरुध भावनात्मक संतोष प्रदान करती थी, कि रावण जैसा विशिष्ट राक्षस का भी अंत में संघार हो जाता है ; इसलिये धैर्य रखो, यह जो बाहर से आए हुए राक्षस हैं(अर्थार्थ विदेशी हमलावर जो कि भारत पर राज्य कर रहे थे तथा अनेक जुल्म कर रहे थे), और जो अत्याचार कर रहे हैं, उन सबका भी नाश होगा !
यह तो आजादी से पहले कि अत्यंत करुनामय स्तिथि थी जब रामायण के अन्य उद्देशो को भूल कर रामायण का प्रमुख उद्देश संतो द्वारा यह बना दिया गया कि श्री राम राक्षसों का अंत करने के लिया आए थे, लेकिन आज क्यूँ? आज क्या मजबूरी है कि हिंदू समाज को पूरी बात नहीं बताई जा रही है ?
श्री विष्णु का प्रमुख उद्देश श्री राम के रूप में अवतरित होने का इस प्रकार था :
1. स्त्रियों पर विभिन् प्रकार के अत्याचारों को समाप्त करना, तथा अग्नि परीक्षा जैसा ज़ुल्म, जिसको धार्मिक मान्यता भी प्राप्त थी उसे अधर्म घोषित करना !2. कमजोर वर्ग को सामान्य अधिकार समाज में दिलाना ! वानर नई प्रजाति थी जो सतयुग में प्राकर्तिक विकास से उत्पन्न होई थी, और जिनके पूँछ थी ! वानर जाती को मनुष्य समाज ने तथा समस्त राज्यों ने मनुष्य मानने तक से इनकार कर रखा था, और उनके साथ जानवर जैसा दुर्व्यवाहर होता था !3. एक ऐसे राज्य की स्थापना करना जिसमें किसी तरह का अत्याचार न हो, समाज में धन, जाती, या उत्पत्ति के नाम पर कोइ भेद भाव न हो, तथा निष्पक्ष न्याय हो! इसी राज्य को हमसब राम राज्य के नाम से भी जानते हैं !
लंका भौगोलिक दृष्टि से सुरक्षित और समृद्ध राज्य था, इसमें कोइ विवाद नहीं है, इसीलिये “सोने कि लंका” कहलाता था, परन्तु इस बात के कोइ भी प्रमाण नहीं हैं कि रावण अविजई(अजेय) था ! इस सुचना का क्या अर्थ है कि रावण यह मानता था कि उसकी मृत्यु मनुष्य य वानर के हाथो होगी ! बाली से परास्त हो कर उसने बाली से मित्रता कर ली ! अपनी बहन के अपमान के बाद उसने युद्ध न कर के सीता का हरण करा, क्यूँ ? ताकि यदि युद्ध होता है तो उसे लंका से युद्ध करने का भूगोलिक लाभ मिल सके !
रावण एक चतुर कूटनीतिज्ञ अवश्य था, परन्तु अत्यंत पराक्रमी और अविजई कदापि नहीं था !
आजादी से पूर्व, तथा अन्य समय में सूचना के आभाव में रावण को आलोकिक एवं चमत्कारिक शक्तियां प्रदान कर दी गयी थी, जो कि उस समय के समाज कि समझ एवं प्रगत्ति के अनुकूल थी ! परन्तु वोह बीता हूआ कल है !
ध्यान रहे कि इतिहास सदैव वर्तमान समाज को केंद्र बिंदु मान कर ही तथ्य की प्रस्तुति करता है ! इतिहास कभी भी बीते होए कल को केंद्र बिंदु नहीं मान सकता ! यह अमान्य व् अस्वीकरणीय भूल है जिसे आजादी के बाद नहीं सुधारा गया ! आज रावण का आंकलन बिना आलोकिक एवं चमत्कारिक शक्तियों के होना आवश्यक है !
रावण एक चतुर कूटनीतिज्ञ अवश्य था, परन्तु अत्यंत पराक्रमी और अविजई कदापि नहीं था !
आजादी से पूर्व, तथा अन्य समय में सूचना के आभाव में रावण को आलोकिक एवं चमत्कारिक शक्तियां प्रदान कर दी गयी थी, जो कि उस समय के समाज कि समझ एवं प्रगत्ति के अनुकूल थी ! परन्तु वोह बीता हूआ कल है !
ध्यान रहे कि इतिहास सदैव वर्तमान समाज को केंद्र बिंदु मान कर ही तथ्य की प्रस्तुति करता है ! इतिहास कभी भी बीते होए कल को केंद्र बिंदु नहीं मान सकता ! यह अमान्य व् अस्वीकरणीय भूल है जिसे आजादी के बाद नहीं सुधारा गया ! आज रावण का आंकलन बिना आलोकिक एवं चमत्कारिक शक्तियों के होना आवश्यक है !
यह इसलिये भी आवश्यक है क्यूंकि, आजादी से पूर्व, कर्म का भाग घटा कर भावनात्मक भाग, धर्म का बढा दिया गया था, जिसको सही नहीं करा गया है! परिणाम सब के सामने है, हिंदू समाज पूरी तरह से कर्महीन है ! अपने ही देश में, जहां ८०% हिंदू हैं, हम आज द्वित्य श्रेणी के नागरिक हैं ! हिंदू अपने को शोषित अनुभव कर रहे हैं ! और धार्मिक गुरुजनों कि करतूत देखीये, आजादी के बाद धर्म का भावनात्मक भाग और बढा दिया, ताकि धर्म के नाम पर धन और शक्ति अर्जित कर सकें !
प्रमाणित आंकडे यह दर्शाते हैं कि आजादी के बाद धार्मिक गुरुओं की संपत्ति अत्यधिक बढ़ी है, तथा भारत में धनवानों की श्रेणी में वे द्वित्य स्थान पर आ गए, जबकि हिंदू समाज में गरीबी और बढ़ गयी !
आजादी के बाद यह कैसा धर्म समाज को सिखाया और समझाया गया कि समाज और गरीब होता गया तथा वोह गुरु जो धर्म सिखा रहे हैं वोह धनवान होते गए! आप सब को अपने धार्मिक गुरुजनों से यह प्रश्न अवश्य पूछना चाहिये! और वोह जब, जबकि कोइ धार्मिक गुरु पैसे को हाथ नहीं लगाता !
आजादी के बाद यह कैसा धर्म समाज को सिखाया और समझाया गया कि समाज और गरीब होता गया तथा वोह गुरु जो धर्म सिखा रहे हैं वोह धनवान होते गए! आप सब को अपने धार्मिक गुरुजनों से यह प्रश्न अवश्य पूछना चाहिये! और वोह जब, जबकि कोइ धार्मिक गुरु पैसे को हाथ नहीं लगाता !
डर है कि कहीं हिंदू समाज दुबारा गुलामी की और तो नहीं जा रहा ?
जागो हिंदू जागो !!!
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