Sunday, December 11, 2011

कलयुग सबसे श्रेष्ट युग मनुष्य के रहने के लिये

गुलामी के समय, क्यूँकी अनेक अत्याचार हिंदू समाज को सहने पड़ रहे थे, तो उस समय भावनात्मक तरीके से हिंदुओं को समझाने के लिये यह कह दिया जाता था कि “कलयुग है, या घोर कलयुग है, कष्ट तो सहने पडेंगे”, लेकिन आज क्यूँ?
कलयुग सबसे श्रेष्ठ युग है मनुष्य के लिये! यहाँ यह बात इस लिये नहीं कही जा रही क्यूँकी हम कलयुग मैं रह रहे हैं, परन्तु इसलिये की यही सच है ! इस तत्य के बारे मैं विस्तृत चर्चा भी करी जा सकती है, ताकी हर कोइ इस सत्य को समझ सके! 
गुलामी के समय, क्यूँकी अनेक अत्याचार हिंदू समाज को सहने पड़ रहे थे, तो उस समय भावनात्मक तरीके से हिंदुओं को समझाने के लिये यह कह दिया जाता था कि “कलयुग है, या घोर कलयुग है, कष्ट तो सहने पडेंगे”, लेकिन आज क्यूँ? आज तो हमें यह मालूम होना चाहिये कि सच क्या है !

यहाँ जितने भी संभावित मापदंड हैं उनसे यह समझने की कोशिश करेंगे कि क्या कलयुग वास्तव मैं मनुष्य के लिये कष्टदायक युग है ! यह इसलिये भी आवश्यक है क्यूँकी कुछ धार्मिक नेता, श्रोषण करने की नियत से, बार बार यह कह रहे हैं कि कलयुग तो कष्टदायक युग है ! युग की संकल्पना हिंदू शास्त्रों पर आधारित है, इसलिये समस्त मापदंड , हिंदू शास्त्र मैं ही मिलेंगे !

नीचे चार मापदंड का उल्लेख है, जो कि इस प्रकार हैं :
1. साइक्लिक विकास के सिद्धांत
2. पुनर्जन्म के सिद्धांत
3. अवतार की उस युग में संख्या
4. वेदांत ज्योतिष
इस पोस्ट मैं सिर्फ दो मापदंड की चर्च हम करेंगे, बाकी के दो की चर्चा नयी पोस्ट मैं होगी जिसका नाम है : कलयुग मैं कर्म ही पूजा, पसंदीदा युग मनुष्य के लिये

साइक्लिक विकास के सिद्धांत हिंदुओं के लिये अद्वितीय है ! अति प्रचीन समय से हिंदू यह मानते आऐ हैं कि हर वस्तु साइक्लिक या चक्रीय है, अर्थार्थ एक निश्चित समय में हर वस्तु, वनस्पति, पशु, पक्षी, मानव; यहाँ तक की श्रृष्टि कि उत्पत्ति होती है, पनपती है और फिर नष्ट हो जाती है ! तथा यह चक्र चलता रहता है ! आधुनिक विज्ञान यह तो मानता है कि अधिकांश वस्तु का एक निर्धारित चक्र है, लेकिन श्रृष्टि और युग जो कि हिंदू मान्यता के अनुसार चक्रिय हैं उस पर अभी और शोघ के उपरान्त ही धारणा बन पायेगी !

ध्यान रहे विज्ञान इस बात को मानता है कि विकास किसी भी छेत्र में हो, कभी एक तरफ़ा नही होता, अथार्थ यदि वो प्रगतिशील है तो बीच बीच में गिरावट आयेगी फिर वोह नकरात्मक हो जायेगा, यानी विकास के स्थान पर विनाश होने लगेगा, इसके उपरान्त फिर विकास प्रगतिशील हो जायेगा ! चाहे आर्थिक व्यस्था हो, चाहे पिछले ३५०० वर्ष का इतिहास, जो हमें पूर्ण रूप से ज्ञात है, आप इस चक्र को देख सकते हैं, अनुभव कर सकते हैं ! महाभारत युद्ध में करीब करीब पूर्ण विनाश हो गया था, इसके उपरान्त हम विकास कि और अग्रसर हैं !

कलयुग स्पष्ट नज़र आ रहा है कि विकास का युग है ! यह सही है कि बीच बीच में गिरावट आयेगी चूंकि कलयुग में किसी अवतार का कोइ प्राविधान नहीं है, सिवाय कलिका अवतार के जो कि कलयुग के अंत में आयेगा, स्पष्ट संकेत मिलता है कि अधर्म अत्यधिक नहीं बढेगा कि भगवान को अवतार लेना पडे !

पुनर्जन्म एक ऐसा सिद्धांत है जो कि इस बात को पूरी तरह से समझाता है कि हमारा जैविक(BIOLOGICAL) विकास क्यूँ हो रहा है ! और कोइ भी सिद्धांत नहीं है विज्ञान के पास जो कि जैविक विकास को समझा सके; सिर्फ अनुमान है, जो पर्याप्त नहीं है !उदहारण; हम सब के पास पूछ की हड्डी है, लेकिन पूछ नहीं है!
पुनर्जन्म सिद्धांत मानता है कि आत्मा, हर जन्म के अनुभव का सार अपने साथ रखती है, और यही कारण है कि भौतिक रूप से मनुष्य का जैविक विकास होता जाता है, और अध्यात्मिक रूप से मोक्ष की ओर अग्रसर होता जाता है !
पुनर्जन्म के सिद्धांत से अधिकाँश मनुष्य जो कि कलयुग में है, वोह मोक्ष की और अग्रसर है !
निसंदेह कलयुग सबसे श्रेष्ट युग है !
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2 comments:

  1. Sir ji,

    Namaskaar,

    Apke is post ko padane ke paschat, ek sawal ye paida hota hai ki yadi hamaari aatma har bar janma lene se poorva pichale janmo ke gyan ko sanchit kar ke chalati hai to phir hum jo aaj hain wo kisi na kisi janma me "treat yuga" me bhee rahe honge, to phir aaj hum us yuga ke gyan ka upyog kyon nahin kar paa rahe hain. (ya hum "treat yuga" se jyada unnat ho gaye hain)?

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  2. Savinay Pandey JI,

    आप ब्रम्हित हो रहे हैं|

    "पुनर्जन्म एक ऐसा सिद्धांत है जो कि इस बात को पूरी तरह से समझाता है कि हमारा जैविक(BIOLOGICAL) विकास क्यूँ हो रहा है ! और कोइ भी सिद्धांत नहीं है विज्ञान के पास जो कि जैविक विकास को समझा सके; सिर्फ अनुमान है, जो पर्याप्त नहीं है !उदहारण; हम सब के पास पूछ की हड्डी है, लेकिन पूछ नहीं है!

    पुनर्जन्म सिद्धांत मानता है कि आत्मा, हर जन्म के अनुभव का सार अपने साथ रखती है, और यही कारण है कि भौतिक रूप से मनुष्य का जैविक विकास होता जाता है, और अध्यात्मिक रूप से मोक्ष की ओर अग्रसर होता जाता है !"

    क्या कारण है आपका ब्रह्मित होने का ?

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