आपसब को फिर से आश्वस्त करदेना चाहता हूं कि कलयुग मानव के लिये सब से श्रेष्ठ युग है ! इससे पहले पोस्ट में दो मापदंडों के आधार पर कलयुग के श्रेष्ट युग होने की चर्च करी गयी थी! पढ़ने के लिये लिंक : कलयुग सबसे श्रेष्ट युग मनुष्य के रहने के लिये
1. अवतार की उस युग में संख्या2. वेदांत ज्योतिष
सत्य युग:
पहला भाग या भाव जन्म दर्शाता है; सही भी है एक नये महायुग/कल्प का जन्म होता है, जिसमें सदिओं से भटक रहे मनुष्य, या यह कहिये कि पिछले महायुग के बचे होए मनुष्य अपने नेता, जिन्हे हम मनु के नाम से जानते हैं, के साथ यह संकल्प ले पाते हैं कि अब समुन्द्र के ऊपर ना रह कर पृथ्वी पर रहा जा सकता है!
दूसरा भाव कुटुंब का है ! अब जब दुबारा पृथ्वी ही घर हो गई तो लोगो ने साथ मिल कर बस्तियां बनानी शुरू कर दी!
तीसरा भाव छोटे भाई और बहेन का है ! जंगल में नई मनुष्य कि प्रजाति अब पनप रही थी, जिनके पूछ थी और जिन्हे हम वानर भी कहते हैं!
चौथा भाव घर और गृह् सुख का है; अब अनेक बस्तियां मिल कर कबीला य राज्य कहलाने लगी ! तो यह है सत्ययुग की परिकल्पना जिसमें अधिकाँश समय राक्षसों का राज्य रहा और राक्षस उन मनुष्यों को कहते हैं जो मनुष्य का मास खाते हैं !
पंचम भाग संतान का है ! पहली बार विष्णु अवतार परशुराम ने संगठित ढंग से कमजोर वर्ग , तथा स्त्रीयों के विरुद्ध जो अत्याचार हो रहे थे, उसके लिये सशक्त अभियान चलाए!
छठा भाव शत्रु व् रोग का है ! इसी समय श्री राम ने मानव शत्रु रावण को परास्त करा तथा वानरों के विरुद्ध भेद भाव था उसे समाप्त करा तथा धर्म के नाम पर स्त्रीयों पर जो अत्याचार हो रहे थे उसपर अंकुश लगाया; अग्नि परीक्षा को अधर्म घोषित करा !
सप्तम भाव समाज का है; राम राज्य की स्थापना होई ! त्रेता युग में अधीकांश समय दुराचार था, हाँ राम राज्य तो हर मनुष्य का सपना है !
द्वापर युग :
अष्टम भाव जीवन दर्शाता है ! जीवन एक रहस्य है जिसे कोइ आज तक समझ नहीं पाया ! द्वापर युग का शुरू का इतिहास भी रहस्य बना हूआ है ! नवं जो धर्म का भाव है, उसमे धर्म सम्बंधित स्तिथी इतनी बिगड गयी कि महाभारत युद्ध, और उसके बाद घोर विनाश हूआ ! द्वापर युग, और सत्य युग दोनों ही अत्यंत ही मनुष्य के लिये नकारात्मक युग रहे हैं !
दशम भाव कर्म का है ! कर्म मनुष्य के नियंत्रण में है ! इसलिये कलयुग में यदी आप उचित कर्म करें तो सुख और उनत्ति निश्चित है ! सिर्फ समस्या यह है कि दशम से जो नवा स्थान है वो शत्रु स्थान है, और नवम भाव धर्म का है, धर्मगुरु का भी है| अथार्त आपको जो भी गुरु मिलेगा, संभावना यह है कि वो आपको भटकाएगा ! इसके समाधान समाज को खोजना अवाश्यक है ! निसंदेह कलयुग वेदांत ज्योतिष के अनुसार श्रेष्ट युग है !
अब किस युग में कितने अवतार होएं हैं य संभावित हैं उससे युगों का आकलन करते हैं ! ध्यान रहे अवतार जब आते हैं जब धर्म का नाश होता है ! सतयुग में ४, त्रेता युग में २, द्वापर में २, तथा कलयुग में एक ! स्थिती स्पष्ट है, धर्म का कम नाश कलयुग में ही संभव है !
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