एक विचित्र समस्या है, हिन्दुओ के बुजुर्गो में, कि वे सारे निर्णय भावनात्मक बातो पर लेना चाहते हैं, और यह भी एक कारण है समाज का कर्महीन होने का| समस्या बड़ी इसलिए है कि इसका कोइ आसान समाधान है नहीं, समाधान बुजुर्गो को ही निकालना होगा; लेकिन वे किसी की क्यूँ सुनेंगे, क्यूँ स्वीकार करेंगें कि सुधार की आवश्यकता उनमें भी है| कैसे इसका समाधान होना है यह मैं आपसब पर छोडता हूँ|
यह पोस्ट उन सबसे अनुरोध कर रही है कि सनातन का सही अर्थ समझें स्वीकारें और समाज को बताएं | यह इसलिए कहना पड़ रहा है क्यूंकि सनातन अत्यंत सकारात्मक धर्म है जो हर समय समाज की प्रगति हो, इसके लिए प्रयाप्त लचीलापन इसमें है, परन्तु दुर्भाग्यवश महाभारत के बाद से ऐसा नही हुआ है| हिन्दू समाज पतन की और बढ़ता जा रहाहै तथा हर व्यक्ति खुद के अलावा पूरे समाज को सुधारने के उपाय बताता रहता है |
सनातन धर्म की परिभाषा और धार्मिक व्यक्ति की परिभाषा आप इस पोस्ट से ले सकते हैं : धार्मिक आद्यात्मिक साधू तथा गुरु की परिभाषा
यह पोस्ट आप सबसे अनुरोध कर रही है कि कुछ भ्रांतियां जो संस्कृत विद्वानों और धर्मगुरूओ ने समाज मैं फैला रखही हैं, ताकि पतन की और जाते हुए समाज का दोष उनपर ना आए , उससे समाज को अवगत कराएं |
१. सनातन मात्र धर्म नहीं है और बहुत कुछ है !
उत्तर: संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु; ईसाई २००० वर्ष पूर्व आए, इस्लाम १४०० वर्ष पूर्व , बौध जो कि हिन्दुओ का अंग था, वो भी करीब २१०० वर्ष पूर्व| सब पनप गए, समाज का विस्तार हो गया सिर्फ सनातन को छोड़ कर...क्या इसी बात को छिपाने के लिए यह कहा जाताहै...अरे पहले ठगाई बंद करो, शोषण समाप्त करो, फिर बड़ी बड़ी बात करो |
२. समस्त पुराण, रामायण और महाभारत कोडित ग्रन्थ है, जिनको समझने के लिए वर्तमान समाज के सामर्थ के अनुसार प्रस्तुति होनी है, लकिन क्या ऐसा हो रहा है?
यही कारण है कि रामयाण के १०० से अधिक संस्करण उपलब्ध हैं, तो आप वर्तमान समाज के लिए क्या कर रहे हैं ?
यही कारण है कि रामयाण के १०० से अधिक संस्करण उपलब्ध हैं, तो आप वर्तमान समाज के लिए क्या कर रहे हैं ?
३. पुराण, जैसा की नाम से संकेत मिलता है, पृथ्वी की उत्पत्ति, विकास और इतिहास की वास्तविक गाथा है, लकिन उसके अंदर जो पृथ्वी की उत्पत्ति, विकास और इतिहास से सम्बंधित जानकारी है, वोह क्या विश्विद्यालय तक पहुची ?
नहीं पहुची; सारी संस्कृत विद्यालय सरकारी धनराशी से चल रही हैं, और एक महायुग का निर्माण करके इनलोगों ने नहीं दिया | क्या आपने सोचा है क्यूँ, क्यूँ नहीं निर्माण करा जबकि वोह बहुत आसान है | इतना आसान है कि इन्टरनेट की सूचना के आधार पर आप कर सकते हैं | एक कारण तो मुझे मालूम है जो मैं बता रहा हूँ; सतयुग सबसे खराब युग था मानव के लिए और कलयुग सबसे अच्छा| अब आप बताएं धर्मगुरूओ का ठगाई का धंदा कैसे चल सकता है अगर यह सूचना आम हो गयी?
नहीं पहुची; सारी संस्कृत विद्यालय सरकारी धनराशी से चल रही हैं, और एक महायुग का निर्माण करके इनलोगों ने नहीं दिया | क्या आपने सोचा है क्यूँ, क्यूँ नहीं निर्माण करा जबकि वोह बहुत आसान है | इतना आसान है कि इन्टरनेट की सूचना के आधार पर आप कर सकते हैं | एक कारण तो मुझे मालूम है जो मैं बता रहा हूँ; सतयुग सबसे खराब युग था मानव के लिए और कलयुग सबसे अच्छा| अब आप बताएं धर्मगुरूओ का ठगाई का धंदा कैसे चल सकता है अगर यह सूचना आम हो गयी?
४. अवतार और भगवान् के अंतर को इतना धूमिल करदेना कि किसी को कुछ समझ मैं ना आए | तभी तो ‘गूढ़ अर्थ’ निकलेगा या कहीये ठगाई हो पाएगी |
श्री कृष्ण श्री विष्णु के अवतार थे, सिर्फ ५००० साल पुराना इतिहास था और बताया जाता है कि इश्वर पृथ्वी पर आ कर सब सही कर गए | अगर ‘सब सही कर गए’ तो इन ५००० वर्षो मैं समाज का पतन क्यूँ हुआ, क्यूँ १००० वर्षो की गुलामी झेलनी पडी ? अगर समस्याओं का समाधान पूर्ण रूप से श्री कृष्ण नहीं कर पाए तो इस बिंदु का विवरण समाज तक क्यूँ नहीं ? फिर ये भी प्रश्न उठता है कि अवतार और इश्वर मैं क्या अंतर है ? अवतार को क्यूँ नहीं परिभाषित करा जा रहा है ?
श्री कृष्ण श्री विष्णु के अवतार थे, सिर्फ ५००० साल पुराना इतिहास था और बताया जाता है कि इश्वर पृथ्वी पर आ कर सब सही कर गए | अगर ‘सब सही कर गए’ तो इन ५००० वर्षो मैं समाज का पतन क्यूँ हुआ, क्यूँ १००० वर्षो की गुलामी झेलनी पडी ? अगर समस्याओं का समाधान पूर्ण रूप से श्री कृष्ण नहीं कर पाए तो इस बिंदु का विवरण समाज तक क्यूँ नहीं ? फिर ये भी प्रश्न उठता है कि अवतार और इश्वर मैं क्या अंतर है ? अवतार को क्यूँ नहीं परिभाषित करा जा रहा है ?
५. थक जायेंगे लकिन यह पोस्ट ख़त्म नहीं होगी; संस्कृत विद्वान और धर्मगुरुओ ने समाज के शोषण के लिये सारे गलत काम कर रहे हैं , तबभी कम से mअपने देवी देवताओ की छबी को जब यह विदेशो से पैसा लेकर धूमिल करते हैं उसका तो विरोध करो; कुछ उद्धारण , कैसे देवी देवता के चरित्रों पर प्रश्न चिन्ह लगाया जाता है...>>
१. हनुमान बाल ब्रह्मचारी थे, लकिन उनके संतान भी थी....
२. श्री राम ने सीता को अग्नि देव को सौप कर उनके अपहरण की स्वीकृती दी...
३. श्री कृष्ण ने महाभारत जैसे विश्व युद्ध के लिए सेना किसको देनी है, और खुद किधर खड़ा होना है, उसे द्वारिका का हित सामने न रख कर मात्र एक टॉस समझा..
४. और अब कुछ लोग हनुमान जी के विवाह को ढून्ढ लाए !
५. पूर्ण वैरागी, योगी और ईश्वर शिव क्रोधित हो कर तीसरी नेत्र खोल लेते हैं....यानी की उनका वैराग और योग झूठा है, पूर्ण नहीं है , और समाज इसे स्वीकार कर लेता है |
कब हिन्दू समाज समझेगा कि यह सब समाज की गुलाम मानसिकता रखने के लिए ऐसी घटनाओं को सोचा गया और जोड़ा गया है ?
एक और भौतिक सत्य जो आज आपको भी पता है, पूरे हिन्दू समाज को भी पता है, उसपर गौर करलें !
आजादी के ६५ साल बाद स्तिथी यह है कि ...
1. हिंदू समाज गरीब हो गया है ,
2. अपने ही देश मैं द्वित्य श्रेणी का नागरिक हो गया है,
3. और धर्मगुरु अत्यंत बलवान और शक्तिशाली हो गए हैं !
यह भी पढ़ें :पुराण बताते हैं कि सतयुग मानव के लिए अत्यंत अमानवीय और कष्टदायक युग था
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