श्री राम भगवान विष्णु के अवतार हैं, जो की पृथ्वी पर उस समय अवतरित हुए जब श्रृष्टि एकदम नकारात्मक दिशा मैं जा रही थी | श्री विष्णु श्रृष्टि के पालन करता हैं, और जब श्रृष्टि की दिशा एकदम नकारात्मक हो जाती है, तो भगवान् को अवतार लेना पड़ता है | जरुरी नहीं है कि अवतार जीवन से मृत्यु तक समाज को दिशा निर्देश देते रहे ; कुछ ऐसी स्तिथी भी होती हैं कि एक बार का हस्ताषेप पर्याप्त होता है |
जैसे;
• कुर्म अवतार, पृथ्वी पर शांत समंदर मैं दुबारा लहरें के शुभ आरम्भ के लिए आएं, और जिसके बारे मैं हम समुन्द्र-मंथन की कथा पढ़ते हैं,
• नरसिंह अवतार, हिरनकश्यप को मारने के लिए,
• वामन अवतार बाली से पृथ्वी लोक खाली कराने के लिए और राक्षसों को पातळ लोक मैं बसाने के लिए |
यह और समझ लीजिये की राक्षस का अर्थ होता है वोह मानव जो मनुष्यों का मॉस खाने लगा हो |
यह सब मात्र अवतार का एक बार का ही हस्ताषेप दर्शाता है जो की आवश्यक दिशा के लिए पर्याप्त था|
लकिन श्री परशुराम, श्री राम, और श्री कृष्ण पूर्ण अवतार थे जिनको पूरे जीवन भर दिशा निर्देश देना पड़ा, स्वाभाविक है कि एक समय के दिशा निर्देश जब दिया गया , और पूर्ण अवतार के समय की सामाजिक स्तिथी मैं जबरदस्त अंतर होगा, जिसको परिभाषित कर दिया जाए तो समझना आसान हो जाएगा |
चलिए एक बार हस्ताषेप करने वाले को हम सब ‘बुरे वक़्त’ का अवतार कहते हैं , और पूरे जन्म को ‘बहुत बुरे वक़्त’ का अवतार,
नीचे परिभाषा दी जा रही है |
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अवतार या तो “बुरे वक्त” मैं अवतरित होते हैं, या “बहुत बुरे वक्त” मैं |
आवश्यक है कि मनुष्य रूप मैं अवतार के संधर्भ मैं ‘बुरे वक्त’ और ‘बहुत बुरे वक्त’ को परिभाषित भी कर दिया जाए|
बुरा वक्त:
जब अनेक कारणों से धर्म की हानि होती है, परन्तु समाज विज्ञानिक तौर पर पूरी तरह से विकसित नहीं होता, तो मनुष्य रूप मैं इश्वर के अवतार की आवश्यकता नहीं पड़ती है, या बहुत ही सीमित कार्य के लिए प्रभु अवतरित होते हैं, जैसे नरसिंह अवतार, हिर्नाकश्यप के वध के लिए, वामन अवतार, आदि...
बहुत बुरा वक्त:
जब समाज विज्ञानिक तौर पर पूरी तरह से विकसित होता है, तब धर्म की हानी के कारण, आवश्यक सुधार, दिशा परिवर्तन के लिए इश्वर मनुष्य रूप मैं अपना पूरा जीवन काल उस सुधार के लिए लगा देते हैं, जैसे, भगवान परशुराम, श्री राम, श्री कृष्ण| यह भी ध्यान देने वाली बात है की त्रेता युग मैं एक के बाद तुरंत दुसरे विष्णु अवतार के रूप मैं श्री राम को आना पड़ा, क्यूँकी पहले अवतार, भगवान परशुराम, समस्त समस्याओं का समाधान करने मैं सक्षम नहीं हो पा रहे थे|
जब समाज कम विकसित होता है, और विज्ञानिक विकास नहीं होता है, या आरंभिक स्तर पर हो, तब प्राय अवतार पर मिथ्या की चादर लपेट दी जाती है, जिसमें अवतार को अलोकिक और चमर्त्कारिक शक्ति से परिपूर्ण दिखा दिया जाता है, और चुकी उस समाज मैं प्राय अवतार के समय के विकास को समझने की क्षमता भी नहीं होती है, तो प्रमुख भौतिक धर्म जो की बिना चमत्कारिक शक्तियुओं के ही समझे जा सकते हैं, उन धर्म को नहीं बताया जाता, और समाज को भक्ति प्रमुख बना कर छोड दिया जाता है|
इसका उद्धरण, गुलामी और बुरे वक्त मैं हिंदू समाज को यह बताया गया कि श्री राम का मुख्य उद्देश रावण को मारना था, जबकी श्री राम के प्रमुख उद्देश, अवतरित होने के इस प्रकार थे:
जब आप रामायण को इतिहास मानेंगे तो आप पाएंगे कि श्री विष्णु का प्रमुख उद्देश श्री राम के रूप में अवतरित होने का इस प्रकार था :
1. स्त्रियों पर विभिन् प्रकार के अत्याचारों को समाप्त करना, तथा अग्नि परीक्षा जैसा असामाजिक शोषण, जिसको धार्मिक मान्यता भी प्राप्त थी उसे अधर्म घोषित करना!
2. कमजोर वर्ग को सामान्य अधिकार समाज में दिलाना! वानर नई प्रजाति थी जो सतयुग में प्राकर्तिक विकास से उत्पन्न होई थी, और जिनके पूँछ थी ! वानर जाती को मनुष्य समाज ने तथा समस्त राज्यों ने मनुष्य मानने तक से इनकार कर रखा था, और उनके साथ जानवर जैसा दुर्व्यवहार होता था !
3. एक ऐसे राज्य की स्थापना करना जिसमें किसी तरह का अत्याचार न हो, समाज में धन, जाती, या उत्पत्ति के नाम पर कोइ भेद भाव न हो, तथा निष्पक्ष न्याय हो! इसी राज्य को हमसब राम राज्य के नाम से भी जानते हैं
ध्यान रहे आप प्रमुख्य उद्देश बिना अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति के ही समझ सकते हैं|
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अवतार पर पूर्ण आस्था अनिवार्य है, तभी आप सारे धर्म, जो अवतार सिर्फ उद्धारण से प्रस्तुत करते हैं, वोह समझ पायेंगे|
सनातन धर्म को जन साधारण तक पहुचाने का यह अद्भुत अंदाज़ है, क्यूँकी इतिहास तो कहानी होता है , तो इसमें कोइ गूढता नहीं होती |
इसीलिये धर्मगुरु इस सत्य को छिपा रहे हैं, क्यूँकी सत्य समाज तक पहुच जाएगा तो समाज का शोषण समाप्त होने लगेगा |
कष्ट इस बात का है की इसमें संस्कृत विद्वान धर्मगुरुजनों की सहायता कर रहे हैं |
कुछ विशेष बात:
१. क्यूँकी श्री राम इश्वर अवतार हैं, तो उनपर पूरी आस्था रखीये, आपकी सारी व्यक्तिगत समस्या के समाधान मैं वे सहायक होंगे | इस विश्वास मैं कही कोइ खोट नहीं है |
धर्मगुरु अपनी रोटी सकने के लिए श्री राम को गलत दिखाते हैं , ताकी समाज कमजोर रहे और भ्रम का निवारण वे करते रहे, तभी तो उनको कोइ पूछेगा |
उद्धारण: श्री राम ने सीता को अग्नि देव को सुपुर्द कर के सीता के अपहरण को स्वीकृती दे दी ....क्या गलत बात है यह , और कैसे आप गलत बात स्वीकार कर लेते हैं; पढीये पोस्ट:
उत्तर चाहीये, राम ने सीता के अपहरण को स्वीकृती दी तो वोह कैसे भगवान हैं?
http://awara32.blogspot.com/2014/12/need-answer-for-adharm.html
२. हमारे इश्वर स्वर्ग मैं बैठ कर समाज सम्बंधित समस्याओं मैं हस्ताषेप नहीं करते, ना ही इसमें कोइ पूजा काम आती | यह काम आपको स्वम, सब के साथ मिल कर करना पड़ेगा ...>>>नहीं तो जैसे पिछले १००० वर्षो मैं गुलामी झेली है, वैसे कष्ट झेलने पड़ेंगे |
३. अब सबसे बड़ा सच जो धर्म गुरुजनों ने छिपा रखा है ;
विश्व में केवल प्राचीन भारत के वृत्तांतों से आपको यह अवगत हो पायेगा कि प्राचीन हिंदू समाज एक अद्भुत सोच विश्व को दे कर गया है जो की क्रमागत उन्नति(EVOLUTION) को पृथ्वी के विकास का कारण मानती है , ना की सर्जन को |
क्रमागत उन्नति(EVOLUTION) मैं आस्था होने के कारण हम यह मानते है की समाज सम्बंधित समस्याओं के लिए इश्वर स्वर्ग मैं बैठ कर कुछ नहीं कर सकते, उन्हें अवतरित होना पड़ता है
यदी त्रेता युग मैं एक के बाद दोसरे अवतार को आना पड़ा तो यह स्वाभाविक है कि हमारे इश्वर हर समस्या का समाधान नहीं करते |
जय सिया राम !!!
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