यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण चर्चा है, इसलिए भी की सनातन धर्म सदा समाज हित मैं होता है न की शोषण के लिए, जो की आजादी के बाद, पिछले ६५ वर्ष से हो रहा है| महाभारत एक विश्व युद्ध का प्रसंग है, जिसमें करीब करीब पूरी बर्बादी होई, और एक तरफ श्री कृष्ण और पांडव थे, तो दूसरी तरफ कौरव| किस तरह से आपको इसे अपने चित मैं रखना है की महाभारत विश्व युद्ध था, यह आपको निश्चय करना होगा, लकिन है यह अति आवश्यक, क्यूँकी अनेक प्रश्नों का उत्तर आपको तभी मिलेगा जब आप महाभारत समझने के लिए अपनी सोच सही कर लेंगे|
विश्व युद्ध जीतना कोइ भावनात्मक खेल नहीं है, विश्व युद्ध क्यूँ हुआ, क्या कारण थे, कैसे लड़ा गया, विकास का स्तर क्या था, क्या कारण था की युद्ध के नायक श्री कृष्ण की भूमिका आपको विचित्र लग रही है, इनसब के उत्तर आपको चाहिए|
श्री कृष्ण ने मथुरा क्यूँ छोड़ा, मथुरा मैं यमुना का जल पीने लायक क्यूँ नहीं था, श्री कृष्ण द्वारिका जा कर क्यूँ बसे, क्यूँ कौरव को सेना दी और स्वम पांडव की तरफ से युद्ध मैं उतरे, वोह भी यह कसम खा कर की वे शास्त्र नहीं उठाएंगे, सब महत्वपूर्ण प्रश्न हैं, जीनके भावनात्मक उत्तर तो आपको बार बार मिल रहे हैं, लकिन वोह तो ६५ वर्ष पुराणी गुलामी के सोच है, जो की आपका शोषण हो सके, इसलिए बदली नहीं गयी है, लकिन यदि विश्व का प्रतिष्टित समाज बनना है, और सनातन धर्म के सामाजिक उद्देश को पूरा करना हैं तो, भौतिक उत्तर चाहिए, जो आज तक आपके पास नहीं हैं, और क्षमा करें, कर्महीन मानसिकता के कारण, आप इन प्रश्नों के उत्तर के लिए प्रयास भी नहीं कर रहे हैं|
इसके लिए दो पोस्ट पहले ही दे चूका हूँ, जो इस प्रकार हैं:
यह दोनों अत्यंत महत्वपूर्ण हैं; जहाँ गणेश-व्यास संवाद यह स्पष्ट करता है कि समस्त पुराण कोडित हैं और प्रमाणित करता है की महाभारत मैं विशेष कोड़ का प्रयोग करा गया है, दूसरी पोस्ट उस विशेष कोड पर चर्चा करती है| परन्तु मात्र इतना पर्याप्त नहीं है, इसलिए भी की पिछले ६५ वर्षो मैं धर्म प्रचार मैं जो शून्यता हैं, और नकारात्मक प्रवति है, उससे बाहर निकलने के लिए व्यक्तिगत प्रयास की आवश्यकता है|
महाभारत विश्व युद्ध था, तो पहले उसकी विशालता को समझिये:
विश्व युद्ध का छेत्र सीमित नहीं था कुरुछेत्र मैं तो वास्तव मैं सीमित युद्ध ही हुआ था, क्यूँकी वोह स्थान संरक्षित था| कौरव और पांडव, दोनों के मुख्य युद्ध सम्बंधित शिविर वहां पर थे, महिलाएं तक वहां पर रह रही थी; महारानी गान्धारी, कुंती, और द्रौपदी जिसमें प्रमुख थी| ऐसे मैं जहाँ युद्ध मैं, परमाणु, रसायन अस्त्रों का भी प्रयोग हुआ हो, एक छेत्र तो संरक्षित करना ही था |
फिर से समझ लीजिये, कुरुछेत्र संरक्षित छेत्र था, जहाँ सीमित लड़ाई ही होई थी|
युद्ध की विशालता का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं की अंतिम अस्त्र जो अश्वस्थामा ने छोड़ा था वोह रसायन अस्त्र था, जिसका उद्देश भविष्य मैं जो कन्या बची थी, उनके गर्भ मैं बाधा उत्पन्न करना था| युद्ध मैं इतनी भीषण तबाही हुई थी की विश्व भर मैं सामाजिक ढाचे कमजोर हो गए, स्वंम द्वारिका मैं श्री कृष्ण को यादवो को मारना पड़ा जो लूट मार कर रहे थे|
युधिष्ठिर का वंश परीक्षित के पुत्र राजा जन्मेजय के आगे नहीं चला| राजा जन्मेजय ने इसी कारण विज्ञान, आधुनिकरण सम्बन्धी जितनी सूचना थी, सबको आहुति दे दी जो महान सर्पयज्ञ के नाम से याद किया जाता है|
युद्ध कितने समय चला इसका अनुमान :
इस विषय मैं अनेक मत हैं; कुछ कहते हैं की युद्ध १८ वर्ष चला, कुछ १८ मॉस, सीमित सोच यह भी है की १८ दिन चला हो, लकिन अधिकाँश मत १८ मॉस का ही है| युद्ध की विशालता को देखते हुए १८ दिन मैं पूरे विश्व का विनाश संभव नहीं प्रतीत होता, तथा अत्यंत आधुनिकरण के कारण १८ वर्ष भी अधिक लगता है, हाँ १८ मॉस उचित लगता है |
कुछ सोच उस समय के विज्ञान और आधुनिकरण पर भी आवश्यक है:
युद्ध मैं अंतरिक्ष यानो का प्रयोग हुआ है, परमाणु अस्त्रों का प्रयोग तो व्यापक स्तर पर हुआ है, रसायन अस्त्रों का प्रयोग भी हुआ था|
युद्ध की व्यापकता का अनुमान आप इस बात से लगा सकते हैं की चक्रव्यूह की रचना और अभिमन्यु की मृत्य तक की अवधी मैं अंतरिक्ष यानो के प्रयोग और उनके द्वारा विनाश के कारण चन्द्रमा ने अपनी धूरी सूर्य के संधर्भ में जिस गति से बदलता है, वोह गती ही बदलदी, और सूर्य ग्रहण एक मॉस पहले हो गया|
अर्जुन ने जयद्रथ के वध के लिए जो प्रतिज्ञा लीथी, वोह इस सूर्य ग्रहण के कारण ही संभव हो पाई|
राधे राधे, जय श्री कृष्ण !!!
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