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Wednesday, October 2, 2013

विश्व युद्ध का विस्तार, युद्ध कैसे जीता गया..इस सोच से महाभारत समझिये

यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण चर्चा है, इसलिए भी की सनातन धर्म सदा समाज हित मैं होता है न की शोषण के लिए, जो की आजादी के बाद, पिछले ६५ वर्ष से हो रहा है| महाभारत एक विश्व युद्ध का प्रसंग है, जिसमें करीब करीब पूरी बर्बादी होई, और एक तरफ श्री कृष्ण और पांडव थे, तो दूसरी तरफ कौरव| किस तरह से आपको इसे अपने चित मैं रखना है की महाभारत विश्व युद्ध था, यह आपको निश्चय करना होगा, लकिन है यह अति आवश्यक, क्यूँकी अनेक प्रश्नों का उत्तर आपको तभी मिलेगा जब आप महाभारत समझने के लिए अपनी सोच सही कर लेंगे| 
विश्व युद्ध जीतना कोइ भावनात्मक खेल नहीं है, विश्व युद्ध क्यूँ हुआ, क्या कारण थे, कैसे लड़ा गया, विकास का स्तर क्या था, क्या कारण था की युद्ध के नायक श्री कृष्ण की भूमिका आपको विचित्र लग रही है, इनसब के उत्तर आपको चाहिए| 

श्री कृष्ण ने मथुरा क्यूँ छोड़ा, मथुरा मैं यमुना का जल पीने लायक क्यूँ नहीं था, श्री कृष्ण द्वारिका जा कर क्यूँ बसे, क्यूँ कौरव को सेना दी और स्वम पांडव की तरफ से युद्ध मैं उतरे, वोह भी यह कसम खा कर की वे शास्त्र नहीं उठाएंगे, सब महत्वपूर्ण प्रश्न हैं, जीनके भावनात्मक उत्तर तो आपको बार बार मिल रहे हैं, लकिन वोह तो ६५ वर्ष पुराणी गुलामी के सोच है, जो की आपका शोषण हो सके, इसलिए बदली नहीं गयी है, लकिन यदि विश्व का प्रतिष्टित समाज बनना है, और सनातन धर्म के सामाजिक उद्देश को पूरा करना हैं तो, भौतिक उत्तर चाहिए, जो आज तक आपके पास नहीं हैं, और क्षमा करें, कर्महीन मानसिकता के कारण, आप इन प्रश्नों के उत्तर के लिए प्रयास भी नहीं कर रहे हैं|
इसके लिए दो पोस्ट पहले ही दे चूका हूँ, जो इस प्रकार हैं:
यह दोनों अत्यंत महत्वपूर्ण हैं; जहाँ गणेश-व्यास संवाद यह स्पष्ट करता है कि समस्त पुराण कोडित हैं और प्रमाणित करता है की महाभारत मैं विशेष कोड़ का प्रयोग करा गया है, दूसरी पोस्ट उस विशेष कोड पर चर्चा करती है| परन्तु मात्र इतना पर्याप्त नहीं है, इसलिए भी की पिछले ६५ वर्षो मैं धर्म प्रचार मैं जो शून्यता हैं, और नकारात्मक प्रवति है, उससे बाहर निकलने के लिए व्यक्तिगत प्रयास की आवश्यकता है|
महाभारत विश्व युद्ध था, तो पहले उसकी विशालता को समझिये: 

विश्व युद्ध का छेत्र सीमित नहीं था कुरुछेत्र मैं तो वास्तव मैं सीमित युद्ध ही हुआ था, क्यूँकी वोह स्थान संरक्षित था| कौरव और पांडव, दोनों के मुख्य युद्ध सम्बंधित शिविर वहां पर थे, महिलाएं तक वहां पर रह रही थी; महारानी गान्धारी, कुंती, और द्रौपदी जिसमें प्रमुख थी| ऐसे मैं जहाँ युद्ध मैं, परमाणु, रसायन अस्त्रों का भी प्रयोग हुआ हो, एक छेत्र तो संरक्षित करना ही था |
फिर से समझ लीजिये, कुरुछेत्र संरक्षित छेत्र था, जहाँ सीमित लड़ाई ही होई थी|
युद्ध की विशालता का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं की अंतिम अस्त्र जो अश्वस्थामा ने छोड़ा था वोह रसायन अस्त्र था, जिसका उद्देश भविष्य मैं जो कन्या बची थी, उनके गर्भ मैं बाधा उत्पन्न करना था| युद्ध मैं इतनी भीषण तबाही हुई थी की विश्व भर मैं सामाजिक ढाचे कमजोर हो गए, स्वंम द्वारिका मैं श्री कृष्ण को यादवो को मारना पड़ा जो लूट मार कर रहे थे|
युधिष्ठिर का वंश परीक्षित के पुत्र राजा जन्मेजय के आगे नहीं चला| राजा जन्मेजय ने इसी कारण विज्ञान, आधुनिकरण सम्बन्धी जितनी सूचना थी, सबको आहुति दे दी जो महान सर्पयज्ञ के नाम से याद किया जाता है|

युद्ध कितने समय चला इसका अनुमान :

इस विषय मैं अनेक मत हैं; कुछ कहते हैं की युद्ध १८ वर्ष चला, कुछ १८ मॉस, सीमित सोच यह भी है की १८ दिन चला हो, लकिन अधिकाँश मत १८ मॉस का ही है| युद्ध की विशालता को देखते हुए १८ दिन मैं पूरे विश्व का विनाश संभव नहीं प्रतीत होता, तथा अत्यंत आधुनिकरण के कारण १८ वर्ष भी अधिक लगता है, हाँ १८ मॉस उचित लगता है |

कुछ सोच उस समय के विज्ञान और आधुनिकरण पर भी आवश्यक है:
युद्ध मैं अंतरिक्ष यानो का प्रयोग हुआ है, परमाणु अस्त्रों का प्रयोग तो व्यापक स्तर पर हुआ है, रसायन अस्त्रों का प्रयोग भी हुआ था| 
युद्ध की व्यापकता का अनुमान आप इस बात से लगा सकते हैं की चक्रव्यूह की रचना और अभिमन्यु की मृत्य तक की अवधी मैं अंतरिक्ष यानो के प्रयोग और उनके द्वारा विनाश के कारण चन्द्रमा ने अपनी धूरी सूर्य के संधर्भ में जिस गति से बदलता है, वोह गती ही बदलदी, और सूर्य ग्रहण एक मॉस पहले हो गया| 
अर्जुन ने जयद्रथ के वध के लिए जो प्रतिज्ञा लीथी, वोह इस सूर्य ग्रहण के कारण ही संभव हो पाई|
राधे राधे, जय श्री कृष्ण !!!

Saturday, October 27, 2012

धर्मयुद्ध मैं द्रोणाचार्य वध से पूर्व युधिष्टिर के असत्य को लेकर विवाद

जब तक द्रोणाचार्य के हाथ मैं धनुष है , वे परास्त नहीं होंगे | पांडव को आचार्य द्रोण का यह प्रण भी मालूम था कि अश्वस्थामा, उनका पुत्र, यदि युद्ध मैं वीर गति को प्राप्त हो गया , तो वे तत्काल अस्त्र-शास्त्र त्याग देंगे
बचपन से अब तक एक बात सुनते आए हैं , की असत्य कितना घातक होता है | यह बिलकुल सच भी है , लकिन जब व्यक्ति आत्म निर्भर हो जाए और समाज का एक जिम्मेदार नागरिक बन जाए तो उसे सत्य की पूर्ण परिभाषा भी समझानी चाहिए , जो धर्मगुरुओं का उत्तरदाइत्व है , लकिन ऐसा हो नहीं रहा है |
कुछ इसी परिपेक्ष मैं आज की चर्चा है |
धर्मयुद्ध/महाभारत पूरे विश्व को अपनी चपेट मैं लिए हुए था | तथा विषय भी अत्यधिक महत्वपूर्ण था | आगे मानव की पहचान क्या होगी?
क्या वोह जेनेटिक इंजीनियरिंग और मानव क्लोनिंग द्वारा निर्मित एक मनुष्य होगा या प्राकृतिक विकास द्वारा , जो माता के गर्भ मैं पनपता है , और फिर नन्हे कृष्ण स्वरुप मैं नवजात शिशु के रूप मैं आपके परिवार का अंग बन जाता है | कौरव जेनेटिक इंजीनियरिंग और मानव क्लोनिंग को धर्म मान रहे थे और इसी को मानव के हित मैं बताते थे| श्री कृष्ण और पांडव प्राकृतिक तरीके से उत्पन होई संतान को मानव धर्म मान रहे थे , और युद्ध द्वारा विश्व को इस दिशा मैं वापस ले जाने के लिए तत्पर थे | विस्तार मैं पढ़ने के लिए लिंक पर जाएँ : जेनेटिक इंजीनियरिंग और मानव क्लोनिंग महाभारत युद्ध के कारण 
युद्ध मैं दोनों पक्ष गंभीर शती उपरान्त भी जुटे हुआ थे, और दोनों पक्ष युद्ध मैं विजय का ख्वाब देख रहे थे | पितामह भीष्म के मृत्यु पूर्व गंभीर अवस्था मैं पहुचने के बाद पांडव को लग रहा था की यदि आचार्य द्रोणाचार्य और कर्ण किसी तरह से वीरगति को प्राप्त हो जाएँ , तो युद्ध जीता जा सकता है |
यह भी समझ मैं आ रहा था , कि जब तक द्रोणाचार्य के हाथ मैं धनुष है , वे परास्त नहीं होंगे | पांडव को आचार्य द्रोण का यह प्रण भी मालूम था कि अश्वस्थामा, उनका पुत्र, यदि युद्ध मैं वीरगति को प्राप्त हो गया , तो वे तत्काल अस्त्र-शास्त्र त्याग देंगे| श्री कृष्ण के कहने पर पांडवों ने एक युक्ति निर्धारित करी, जिसमें युधिष्टिर को यह झूट बोलना था की अश्वस्थामा मारा गया | चुकी यह प्रसिद्ध था कि युधिष्टिर झूट बोलते नहीं , इसलिए द्रोणाचार्य अस्त्र-शास्त्र त्याग देंगे , और तब कुछ निर्णायक कदम उठाया जा सकता था |
युधिष्टिर को तथा पांडवों को अप्रत्याशित विपदा व् असुविधाजनक स्थिति से बचाने के लिए एक हाथी जिसका नाम भी अश्वस्थामा था , उसको भीम ने मार दिया , तथा जोर जोर से विजय घोषणा करने लगा कि “मैंने अश्वस्थामा को मार दिया”| स्वाभाविक था कि द्रोणाचार्य सकते मैं आ गए , उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि उनका पुत्र मारा गया ; और इधर विजय घोषणा बार बार हो रही थी | घबराए हुए द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर से पूछा जिन्होंने कहा-“हाँ। पर नर नहीं, कुंजर” ...नर कहते ही कृष्ण ने ज़ोर से शंख बजा दिया, द्रोणाचार्य आगे के शब्द न सुन सके। द्रोण ने अस्त्र-शस्त्र फेंक दिए , और धृष्टद्युम्न ने निह्त्ये द्रोण का वध कर दिया |
जैसा पहले ही कहा गया है, धर्म युद्ध जीतना अनिवार्य था, तो इस असत्य को विशेष महत्त्व क्यूँ दिया जाय. परन्तु अनेक प्रकार की स्थानीय लघु कथाएँ मैं इस बात का उल्लेख है कि इस असत्य से पहले युधिष्टिर का रथ जमीन से कुछ ऊपर चलता था , कुछ तो यहाँ तक कहते हैं की एक फूट ऊपर चलता था , लकिन इस असत्य के बाद रथ जमीन पर आ गया | इतना हानिकारक होता है असत्य |
लकिन यह धारणा बिलकुल गलत है | यह आपको गुमराह करने का एक तरीका है | आप भ्रमित रहेंगे तो कर्महीन भी रहेंगे और आपका शोषण समाज के अंदर के ठेकेदार आराम से कर पायेंगे |
अब समस्या यह है कि आप किसकी बात माने और क्यूँ? अभी तक जिस जिसका आप सम्मान करते थे, उन सब ने यह बताया कि सिर्फ झूट बोलने के कारण धर्मराज युधिष्टिर को यह हानि उठानी पडी ,
परन्तु यह पोस्ट यह कह रही है की यह आपको भ्रमित और कर्महीन रखने का एक तरीका है |
किसकी बात माने. और क्यूँ?
स्पष्ट है कुछ प्रमाण तो चाहिय ऐसे विवाद्स्प्रद अवसर पर , ताकि आप सही निर्णय अपनी सूचना के आधार पर ले सकें |
यह एकदम सही है कि युधिष्टिर ने झूट बोला , लकिन धर्मयुद्ध जीतने के अतिरिक्त और कोइ सत्य महत्वपूर्ण था नहीं | धर्मयुद्ध जीतने से मानवता का कल्याण होना था |युधिष्टिर का रथ हवा मैं चलता था -- इस बात का इतना ही अर्थ है कि पहले वे उद्दंडता और गर्व के शिकार थे , इसीलिये यह कहावत प्रचलित है कि ‘उनके पैर तो जमीन पर है ही नहीं’| 
लकिन इस सत्य को मान लेने के पश्यात की धर्मयुद्ध जीतने के लिए झूट भी बोला जा सकता है , वे ज़मीन पर आ गए, वास्तविकता से परिचय हो गया –और जो कहा जा रहा है , उसका प्रमाण भी है , एक ऐसा प्रमाण जिसे आप ठुकरा नहीं सकते |
और वोह प्रमाण है कि इस झूट को बोलने के बाद युधिष्टिर इतने महान हो गए, या यूँ कहिये कि उनका कद इतना बढ़ गया कि वे इतिहास मैं अकेले व्यक्ति हैं जो बिना मरे स-शरीर स्वर्ग पहुचे |
क्या आप इस प्रमाण को ठुकरा सकते हैं ?
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ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.