उस समय विज्ञान का विकास आज के युग से ज्यादा था, ऐसे मैं समझने वाली बात है की रावण की सेना आधुनिक अस्त्र-शास्त्र का प्रयोग कर रही थी, तो वोह पत्थर फेकने वाली वानर सेना या बंदरों की सेना से नहीं हारी |
इस विषय पर अनेक जिज्ञासुओं के प्रश्न आ रहे हैं, और सबसे पहले तो वे इस बात से सहमत नहीं हैं कि श्री राम के पास विकल्प था, अयोध्या से सेना बुलाने का| वनवास मिलने के बाद श्री राम अयोध्या से सेना कैसे मंगा सकते थे?
अनेक बार जवाब देने के बाद भी वे संतुष्ट नहीं हैं, और कारण है की अब तक उन्हें यही बताया गया है कि वनवास के कारण राम के पास अयोध्या से सेना मंगाने का कोइ विकल्प नहीं था| इसका निर्णय तो आप स्वंम भी कर सकते हैं; यदि श्री राम की चरण-पादुका अयोध्या के सिंघासन पर विराजमान थी, और भरत यह स्पष्ट कर के गए थे की वे राजा राम का, उनकी १४ वर्ष की अनुपस्थिति मैं राज्य संभालेंगे, तथा माता सीता को वनवास मिला नहीं था, तो अयोध्या राज्य का उत्तरदायित्व सीता अपहरण पश्च्यात क्या था?
समस्या यह है की कुछ अज्ञानी गुरुजानो ने यह यह प्रचार कर रखा है कि वनवास पश्च्यात श्री राम के पास अयोध्या से सेना बुलाने का कोइ विकल्प नहीं था| कुछ यह भी कहते हैं कि तुलसीदास जी ने इस विषय पर कोइ मत नहीं रखा| तुलसीदास जी सिद्ध पुरुष थे, और मानस की रचना उन्होंने पूरे भक्तिभाव से हिंदू समाज की रक्षा के लिए करी थी| यही कारण है की मानस आज अत्यंत लोकप्रिये है| परन्तु आज हम रामायण को इतिहास के परिपेक्ष मैं समझने का प्रयास कर रहे हैं,क्यूँकी आज हमें त्रेता युग से सम्बंधित ज्ञान, विज्ञान की आवश्यकता है| यह हमारी ज़रूरत है|
इससे पहले की कुछ पोस्ट मैं इस बात का उल्लेख है, इसीलिये यह विषय पर पाठक जिज्ञासा व्यक्त कर रहे हैं| समझना यह है की उस समय विमान भी थे और विज्ञान का विकास आज के युग से ज्यादा था, ऐसे मैं सबसे पहले तो यह समझने वाली बात है की रावण की सेना आधुनिक अस्त्र-शास्त्र का प्रयोग कर रही थी, तो वोह पत्थर फेकने वाली वानर सेना या बंदरों की सेना से नहीं हारी| इस नकारात्मक सोच को तो आपको तुरंत निकालना होगा, चुकी यह सोच आपको रामायण को इतिहास ना समझने के लिए विवश कर रही है| और आज के सूचना युग मैं यदि रामायण को आप इतिहास की तरह नहीं समझेंगे, तो हिंदू समाज के पास जो प्राचीन ज्ञान(ज्ञान की बात हो रही है, धर्म की नहीं) हमें धरोहर के रूप मैं मिला है, और जो हमें विश्व का नेतृत्व की और ले जा सकता है, उसे हम खुद ही ठुकरा देंगे, जो की मालूम नहीं हमारे धर्म गुरु क्यूँ चाह रहे हैं; अज्ञानता या और कोइ कारण जो बताया नहीं जा रहा है|
एक तरफ से आधुनिक हथियार का प्रयोग, तो दूसरी और की सेना की क्षमता भी उसीके अनुकूल होनी चाहिए, चुकी दाव पर लगी थी श्री राम, और अयोध्या की प्रथिष्ठा|
अब प्रश्न यह है की क्या मानव की नई प्रजाती वानर, जो की जंगलों मैं स्वाभाविक रूप से विकसित होई है, के पास आधुनिक अस्त्र-शास्त्रों से सुसज्जित रावण सेना से युद्ध करने का कार्य कौशल था? इस प्रश्न के उत्तर पर ही आप निर्णय ले सकते हैं कि श्री रामका निर्णय उचित था, अथवा नहीं| और यहीं से आप एक विवाद मैं घिर जाते हैं, क्यूँकी आपके धर्म गुरु तो यह बता नहीं रहे, जो यहाँ बताया जा रहा है, की श्री राम ने वनवास के दौरान वानरों को सैन्य प्रशिक्षण दिया था, विकसित समाज मैं रहने के नियमों से भी वानर को अवगत कराया था; पढ़ें:
वनवास के दौरान राम ने वानरों को नागरिक और सैन्य प्रशिक्षण दिया
जी हाँ क्यूँकी वानर सेना युद्ध के लिए सक्षम थी, इसलिए श्री राम ने वानर सेना को चुना| जब आप इस बात को मान लेते हैं की वानर सेना आधुनिक हथियार के प्रयोग से न केवल अवगत थी, बलिक वोह आधुनिक हथियारों से सुसज्जित हो कर ही रावण से युद्ध करने के लिए मैदान पर उत्तरी थी, तो राम का निर्णय उचित था| और उसका सबसे बड़ा प्रमाण है राम सेतु का एक दिन मैं निर्माण, जो की सैन्य प्रसिक्षण प्राप्त करे हुए आधुनिक अभियंताओं द्वारा ही हो सकता था|
युद्ध मैं कैसी सेना लड़ने के लिए जानी है, यह सदेव सेना अधिकारी ही तय करते हैं, और यह भी सत्य है की युद्ध मैं विजय केवल एक की होती है, और दूसरा पक्ष हारता है, इसलिए युद्ध मैं सेना का निर्णय सब पहलुओं पर सूक्ष्मता से विचार करके ही लिया जाता है|
यह भी सत्य है की युद्ध मैं कुछ संभावना हमेशा हार की भी होती है, और उस समय सही निर्णय भी समीक्षा मैं गलत घोषित कर दिए जाते हैं, खासकर जब, जब सेना के संगठन को लेकर सोच समान्य सोच से विपरीत रही हो|
इस परिपेक्ष मैं श्री राम का यह निर्णय की अयोध्या और मित्र राज्यों की सेना नहीं प्रयोग करी जाएगी, और उसकी जगह वानर सेनाका प्रयोग होगा, जिसकी क्षमता तब तक परखी नहीं गयी थी, अवश्य भय-रहित नहीं था|
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