THE REASON FOR AVATARS IN SANATAN DHARM is that HINDUS BELIEVE IN EVOLUTION AND DO NOT BELIEVE IN CREATION
पोस्ट ‘अवतार की परिभाषा’ पर काफी पाठकों के जिज्ञासा पूर्ण प्रश्नों से काफी उत्साह बढ़ा|
यह पोस्ट इसलिए आवश्यक हो गयी क्यूंकि ईमेल के माध्यम से और अनेक सोसिअल सीट्स पर निम्लिखित प्रश्न बार बार आ रहे हैं|
कुछ प्रश्न जो अवतार को लेकर रह रह कर सामने आ रहे हैं, वोह इस प्रकार हैं :
1. प्रश्न यह उठता है कि इश्वर सर्व शक्तिमान है, फिर अवतार कि आवश्यकता क्यूँ ?
2. इश्वर के पास तो विकल्प की सीमा नहीं हैं, फिर अवतार के रूप में विकल्प को सीमित करने कि आवश्यकता क्यूँ है ?
3. क्या अवतार के पास अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति होती हैं ?
4. यदि नरसिंह भगवान खम्बे से प्रकट हूए थे तो फिर वोह अवतार थे या इश्वर, चुकी हिंदू शास्त्रों में इश्वर के पास कोइ पाबंदी नहीं है, प्रकट होने में ? उन्हें अवतार क्यूँ माना जाय ?
यह पोस्ट उपरोक्त प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास करेगी |
1. प्रश्न यह उठता है कि इश्वर सर्व शक्तिमान है, फिर अवतार कि आवश्यकता क्यूँ ?
उत्तर: आपका प्रश्न अत्यंत महत्वपूर्ण है, बिलकुल सही है कि ‘अवतार क्यूँ?’ सनातन धर्म श्रृष्टि के विकास का कारण सृजन नहीं मानता; सनातन धर्म का मानना है कि एक बार इश्वर ने श्रृष्टि का नियमित तौर पर प्रारम्भ कर दिया, इसके बाद श्रृष्टि स्वाभाविक रूप से विकसित होती है, पनपती है, और फिर संघार/विनाश की और अग्रसर हो जाती है| इस बीच स्वर्ग मैं बैठे हुए इश्वर उसमें कुछ भी हस्ताषेप नहीं करते| हाँ, यदि इश्वर ऐसा अनुभव करते हैं कि श्रृष्टि घोर अधर्म से पीड़ित है, और फल स्वरुप पतन की और जा रही है, तो पालनकरता स्वरुप श्री विष्णु अवतरित होते हैं और आवश्यक दिशा देते हैं| परशुराम, श्री राम, श्री कृष्ण मुख्य उद्धरण है|
2 इश्वर के पास तो विकल्प की सीमा नहीं हैं, फिर अवतार के रूप में विकल्प को सीमित करने कि आवश्यकता क्यूँ है ?
उत्तर: यह सही है कि अवतार स्वरुप मैं इश्वर अपने विकल्पों को सीमित कर लेते हैं, क्यूंकि अवतार तो श्रीष्टि के नियमों से बंधा होता है, उसका अन्य प्राणियों की ही तरह निश्चित जन्म और प्रगति होती है| अवतार के जीवन मैं अनेक घटनाएं घटित होती हैं, उन घटनाओ से वे कैसे निबटते हैं, वही धर्म होता है| चुकी यह आवश्यक है कि अवतार श्रृष्टि के नियमों का पालन करते हुए उद्धरण स्थापित करते हैं, इसलिए कभी भी अलोकिक और चमत्कारिक शक्तियों का प्रयोग नहीं करते| यही मुख्य कारण है कि सनातन धर्म इतना प्राचीन हो कर भी प्रगति कर रहा है, और समाप्त नहीं हुआ है|
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
“जब-जब धर्म की हानि होती है, तब मैं धर्म की संस्थापना के लिए पृथ्वी पर किसी न किसी रूप में अवश्य अवतरित होता हूं” श्री कृष्ण, गीता मैं !
3. क्या अवतार के पास अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति होती हैं ?
4. यदि नरसिंह भगवान खम्बे से प्रकट हूए थे तो फिर वोह अवतार थे या इश्वर , चुकी हिंदू शास्त्रों में इश्वर के पास कोइ पाबंदी नहीं है, प्रकट होने में ? उन्हें अवतार क्यूँ माना जाय ?
उत्तर:यह प्रश्न भी बहुत अच्छा है, और आपकी बातो से यह समझ मैं आ रहा है, कि वक्त आ गया है, हर धर्म से सम्बंधित शब्द की परिभाषा हो| मैं आपकी बात से पूर्ण रूप से सहमत हूँ कि ‘इश्वर के पास कोइ पाबंदी नहीं है, प्रकट होने में, उन्हें अवतार क्यूँ माना जाय ?’ इसके लिए मैं इतना ही कहूँगा कि पुराणों मैं बहुत कुछ जोड़ा और घटाया गया गया है, जिससे इस तरह के विवाद होते हैं| मेरा विश्वास है, कि नर्सिंग वानर प्रजाति के मनुष्य थे, जिनका मुख सिंह जैसा था| ज्यादा जानकारी के लिए पढ़ें:
नरसिंह अवतार.. क्रमागत उन्नति की प्रक्रिया से उत्पन्न मनुष्य
1 comment :
बहुत अच्छी पोस्ट |
कुछ प्रश्न समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, कि अवतार की परिभाषा क्या है | यदि नरसिंह भगवान खम्बे से प्रकट हुए थे, तो इश्वर क्यूँ नहीं, अवतार क्यूँ ?
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
“जब-जब धर्म की हानि होती है, तब मैं धर्म की संस्थापना के लिए पृथ्वी पर किसी न किसी रूप में अवश्य अवतरित होता हूं” श्री कृष्ण, गीता मैं !
इस संधर्भ मैं भी गुरु-जानो का उत्तर चाहिए, की कौन से धर्म की हानी हो रही थी, नरसिंह अवतार के समय..
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