Sunday, January 22, 2012

राम राज्य ..सामाजिक न्याय और धर्म का राज्य

इससे पहले कि आगे बढ़ें सनातन धर्म का अर्थ समझ लेते हैं ! सनातन धर्म का गैर किताबी अर्थ है , सम्पूर्ण हिंदू समाज का विकास जिसमें सबके पास बराबर के विकास के अवसर हों !
राम राज्य 
उस विकासशील राज्य को कहते हैं जो राम ने अयोध्या का राज्य ग्रहण करने के पश्चात करा ! उस राज्य में निष्पक्ष न्याय प्रक्रिया थी जिसके सामने राजा और आम व्यक्ति एक सामान थे ! अन्याय किसी के साथ संभव नहीं था !

ऐसी मान्यता है कि यदि कोइ राजा ऐसी निष्पक्ष न्याय प्रक्रिया के साथ राज्य कर सके तो प्रकृति व् इश्वर उस राज्य को सुख और समृद्धि से परिपूर्ण रखता है, तथा जीवित माता पिता के सामने संतान कि भी मृत्यु नहीं होती ! राम राज्य ऐसा ही राज्य था , जिसमें धर्म और राजकीय व् सामाजिक न्याय में सामंजस्य था ! ऐसा राज्य केवल चक्रवर्ती सम्राट राम के समय में ही संभव हो पाया है !

ध्यान रहे कहने में और करने में अंतर होता है ! निष्पक्ष न्याय करना अत्यंत ही जटिल कार्य है ! अनेक ऐसे विषय होते हैं जिसमें समझोता करना पड़ता है !, स्वंम राम ने युद्ध की स्थिति में समझोते (बाली वध के समय) करें थे, लेकिन तब वोह राजा नहीं थे ! यह एक सन्देश है राम राज्य का कि निष्पक्ष न्याय अत्यंत जटिल है ! 

राजा को, कभी अपनी जनता को खुश रखने के लीये तो कभी राज्य से जुड़े होए शक्तिशाली व्यक्तियों के लीये, समझोते तो करने ही होते हैं ! आज भी धार्मिक गुरुजन यह प्रचार कर रहे हैं कि सीता का त्याग राम ने सिर्फ एक धोबी के कहने पर कर दिया ! रामायण तो सब ने पढ़ी है, और तो और टीवी पर भी देखी है !

क्या सीता के अपहरण में आपको सीता का दोष कही विदित हूआ ! यदि नहीं तो सीता का त्याग राम ने क्यूँ करा ? 
और 
यदी करा तो राम राज्य कि स्थापना क्या संभव थी ? ध्यान रहे प्रकृति और इश्वर तो निष्पक्ष हैं, यदी वोह उस राज्य को आशीर्वाद दे रहे हैं तो तभी संभव है जब निष्पक्ष न्याय प्रक्रिया हो; अर्थात महारानी सीता को भी न्याय का उतना ही अधिकार था जितना कि एक आम नागरिक को !

नहीं यह किसी तरह से संभव नहीं है कि जिस राम राज्य कि परिभाषा को ले कर हम सब चल रहे हैं उसमें सीता के साथ अन्याय हूआ हो !
यदी एक धोबी के कहने मात्र से महारानी सीता का त्याग संभव था, तो उस राज्य को प्रकृति और इश्वर का आशीर्वाद कैसे संभव था ? या तो राम राज्य कि परिभाषा गलत बताई जा रही है य हमें ‘धोबी के कहने पर सीता का त्याग’ वाली बात गलत बताए जा रही है ! सत्य तो यह है कि सीता का त्याग एक निष्पक्ष न्याय प्रक्रिया के बाद हूआ जिसके अध्यक्ष स्वंम श्री राम थे ! चुकी समस्त भौतिक तथ्य सीता के विरुद्ध थे, तथा केवल अग्नि परीक्षा सीता के पक्ष में था, राम ने सीता का त्याग अग्नि परीक्षा के परिणाम को निरस्त करते होए, सीता का त्याग भौतिक तथ्यों के आधार पर निष्पक्ष न्याय प्रक्रिया से करा !

विस्तार में जानकारी के लीये आप पढ़ सकते हैं: सीता का त्याग राम ने क्यूँ करा... सही तथ्य....तथा यह भी : राम से पूर्व... धर्म का उपयोग स्त्री जाती के शोषण के लिये

अग्नि परीक्षा के परिणाम को निरस्त करने का कारण, श्री राम ने यह दिया कि इससे किसी भी स्त्री के चरित्र का आकलन संभव नहीं है, तथा यह आदेश भी पारित करा कि अग्नि परिक्षा अब अधर्म माना जाएगा !

एक अन्य विषय जो अति आवश्यक है वह यह कि अयोध्या का राज्य संभालने के पश्यात, श्री राम ने समाज में वानर जाति को मनुष्य का दर्जा दिया ! इससे पहले वानर को मनुष्य समुदाय, तथा राज्य मनुष्य नहीं मानते थे, और जानवर मान कर उनपर दुराचार करते थे ! यही मुख्य कारण था कि राम ने १४ वर्ष के वनवास में, वानर जाति को जो प्रशिक्षण दिया था, उसका उपयोग कर के वानर सेना कि सहायता से रावण जैसे शक्तिशाली राजा को परास्त करा ! पढ़ें: राम सुग्रीव मैत्री संधि ...एक विश्लेशण

श्री विष्णु का प्रमुख उद्देश श्री राम के रूप में अवतरित होने का इस प्रकार था :
1. स्त्रियों पर विभिन् प्रकार के अत्याचारों को समाप्त करना, तथा अग्नि परीक्षा जैसा असामाजिक शोषण, जिसको धार्मिक मान्यता भी प्राप्त थी उसे अधर्म घोषित करना!
2. कमजोर वर्ग को सामान्य अधिकार समाज में दिलाना! वानर नई प्रजाति थी जो सतयुग में प्राकर्तिक विकास से उत्पन्न होई थी, और जिनके पूँछ थी ! वानर जाती को मनुष्य समाज ने तथा समस्त राज्यों ने मनुष्य मानने तक से इनकार कर रखा था, और उनके साथ जानवर जैसा दुर्व्यवहार होता था !
3. एक ऐसे राज्य की स्थापना करना जिसमें किसी तरह का अत्याचार हो, समाज में धन, जाती, या उत्पत्ति के नाम पर कोइ भेद भाव हो, तथा निष्पक्ष न्याय हो! इसी राज्य को हमसब राम राज्य के नाम से भी जानते हैं
अंग्रेजी में पोस्ट: RAM RAJYA was the Rule of Civil and Dharmic LAWS

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ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.