Thursday, June 29, 2017

ब्रह्मा विष्णु महेश, एक व्यवहारिक सकारात्मक दृष्टिकोण जो सनातन है

सनातन धर्म व्यवहारिक (PRACTICAL) है,
इसलिए इसमें गूढ़ कुछ भी नहीं है...
क्यूंकि व्यवहारिक बाते सरल होती हैं, आम आदमी भी समझ सकता है !

किसी ज्ञानी से पूछीये कि श्रृष्टि रचेता ब्रह्मा जी के मंदिर क्यूँ नहीं हैं, जगह जगह पर , आपको कहानी किस्से के साथ बहुत गूढ़ अर्थ समझा दिया जाएगा , और उसका सामान्य जीवन से कुछ लेना देना नहीं होगा |

ठीक उसी तरह से ज्ञानी महापुरुष आपको कभी भी रामायण, महाभारत और पुराण को वास्तविक इतिहास मानने को नहीं कहेंगे |
यहाँ पर जो कहा जा रहा है कि ‘इतिहास मानने को नहीं कहेंगे’ , उसका स्पष्टीकरण आवश्यक है |

वे कभी भी इस बात को आपको नहीं समझाएंगे कि अभी(कथा के रूप में) जो इन ग्रंथो के बारे में बताया जा रहा है, वोह कथा हैं , जिसमें अलोकिक शक्ति, चमत्कार का मसाला डाल कर भक्ति और समाज को भावनात्मक बना कर रखने के लिए उपयुक्त बनाया गया है |

तथा इतिहास में अलोकिक शक्ति किसी के पास नहीं होती, और वैसे भी ईश्वर को अलोकिक शक्ति के प्रयोग के साथ समस्या का समाधान करना होता, तो वे अपने लोक में बैठ कर कर सकते थे , अवतरित होकर, वोह भी मानव रूप में , वे अलोकिक शक्ति का प्रयोग क्यूँ करेंगे ?

अब सीधे रुख करते हैं नीचे की पोस्ट का, जहाँ ‘कथा और इतिहास में अंतर’ समझाया गया है :>

कथा और इतिहास में अंतर....!
=============================
1. कथा में अलोकिक शक्ति , श्राप और वरदान का भरपूर प्रयोग करके रोचक , श्रद्धा और भक्ति के लिए उपयुक्त बनाया जा सकता है....!  
इतिहास में किसी के पास अलोकिक शक्ति नहीं हो सकती...यह हमलोग जानते हैं, समझते भी हैं...क्यूंकि सूचना युग में रह रहे हैं...! 
अवतरित ईश्वर, जैसे कि परशुराम, राम और कृष्ण ने भी कभी अलोकिक शक्ति का प्रयोग नहीं करा ! और अवतरित ईश्वर, जैसे कि परशुराम, राम और कृष्ण अलोकिक शक्ति का प्रयोग करेंगे भी क्यूँ ?  
क्यूंकि मानव के पास तो वोह शक्ति है नहीं ! और अवतरित ईश्वर, अत्यंत कठिन समय में, मानव को वेद का सही अर्थ समझाने आते हैं...यानी समाज में जीने का ज्ञान, ..उसके लिए आवश्यक है कि वे बिना अलोकिक शक्ति के उद्धारण प्रस्तुत करें...जो समाज के लिए धर्म होता है |
जो कहा जा रहा है, बिना रामायण, महाभारत और पुराण को इतिहास स्वीकार करे बिना आप समझ नहीं सकते...! 
2. कथा भावना प्रधान होती है, इतिहास कर्म प्रधान !  
दो वर्ष के बच्चे को बिल्ली और चूहे की लड़ाई में आनंद जब आएगा ..जब चूहा जीतेगा...! और एक बालिग़(GROWN UP) व्यक्ति को मालूम होता है कि चूहा बिल्ली का भोजन है...! 
बस यही अंतर है..कथा और इतिहास में...! 
3. कथा की कड़ी एक दोसरे से आवश्यक नहीं है कि जुडी हुई हों...और इतिहास में ...आप चाहे तो आज से शुरू करके संशिप्त इतिहास..  
कलयुग के अंत में: 
a) अंतराल का...जिसमें मत्स्य अवतार का उल्लेख है...  
b) सत्य युग, द्वापर, होते हुए कलयुग में आ जायेंगे...वापस आज के दौर में...यानी की सारी कड़ी एक दुसरे से जुडी होंगी......आप आज के सूचना युग में महायुग का सफ़र कर सकते हैं...
जो संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु नहीं करने दे रहे हैं...!
तो अब आप समझ लीजिये :
ब्रह्मा जी श्रृष्टि के रचेता हैं, 
और 
हर माता बालक को जन्म देते समय, श्रृष्टि की रचना में सहायक होती है !
लकिन 
जिस तरह से ब्रह्मा जी के मंदिर नहीं हैं, 
उसी तरह से माता को भी उतना याद नहीं किया जाता , जितना की श्रृष्टि पालन या पिता और पति को !
और पूरा इतिहास, हर प्रमुख धर्म का, इस बात का गवाह है |
नहीं संतान, अपने पिता के नाम से ही जानी जाती है, ना कि माता के नाम से |

सीधी बात::>

श्रृष्टि रचेता की भूमिका को “उतना महत्त्व” नहीं दिया जाता , जितना श्रृष्टि पालक और संघारकारक को !
और फिर से; हर प्रमुख्य धर्म का इतिहास देख लीजिये , यह सत्य हर जगह मिलेगा |
तो आगे गूढ़ अर्थ में मत जाईये , हो सकता है कि ठगाई का बिंदु वहीं से आरम्भ होता हो |

श्री विष्णु , 
श्रृष्टि पालक हैं, और यह कार्य उनपर सौपा गया है कि वेद का ज्ञान आपको दे, अपने उद्धारानो से, जो अवतार के रूप मैं उन्होंने प्रस्तुत करे हैं |

महेश, 
यानी कि शिव, ईश्वर है, पृथ्वी पर निवास करते हैं, और प्रकृति, जिसको माता पार्वती भी कहते हैं, उनसे विवाह रचाते हैं | 
स्वाभाविक है कि संघारकरता होते हुए भी उनका दृष्टिकोण सकारात्मक है | 
वे आपकी प्रगति के लिए वचनबद्ध हैं, लकिन क्या आप(यानी की मानव) 
प्रकृति, श्रृष्टि की और सकारात्मक है ? 

नहीं, 

जो त्याग और थोडा सा वैराग मानव को इस दिशा में सकारात्मक बना सकता है, मानव ने कभी उसका प्रयोग नहीं करा |

सनातन धर्म आसान है, व्यवाहरिक है, और उसी तरह से समझेंगे, तभी समाज का भला होगा, 
नहीं तो शोषण, ठगाई, और गुलामी, विद्वानों ने गूढ़ अर्थ समझा कर , हमें अनेक बार दी है |

यह भी पढ़े:

No comments:

Post a Comment