Wednesday, July 6, 2016

निहत्ते द्रोणा को श्रीकृष्ण ने मरवा दिया जो अब धर्म है...इसपर कडवाहट क्यूँ?

क्या आपकी पूर्ण आस्था है कि श्री कृष्ण भगवान् हैं, श्री विष्णु के मानव अवतार हैं ? 
अवश्य आपका उत्तर ‘हाँ’ है, 
लकिन क्षमा करें, आपकी आस्था श्री कृष्ण पर पूर्ण नहीं है |

यदि आपकी आस्था पूर्ण होती तो महाभारत से उठे हुए अनेक प्रश्नों का उत्तर आप श्री कृष्ण को भगवान का अवतार मान कर लेते; 
और 
ईश्वर अवतार कोइ गलती तो कर नहीं सकते |

गलती तो मानव करते हैं, चाहे महाराज दशरथ हो या धर्मराज युधिष्टिर|

द्रोणाचार्य वध भी एक ऐसा प्रसंग है, जिसका उत्तर आपने श्री कृष्ण को ईश्वर अवतार मान कर नहीं खोजा| युद्ध भूमि मैं श्री कृष्ण के सामने जो कुछ भी हुआ, उसपर श्री कृष्ण की सहमती या आज्ञा माना जा सकता है, और यह भी सत्य है, कि युधिष्टिर के सामने निहत्ते द्रोण की हत्या, युधिष्टिर की सहमती के बिना संभव नहीं थी |

तो यदि श्री कृष्ण की आज्ञा और युधिष्टिर की सह्मती थी, तो आपके मन में यह प्रश्न क्यूँ नहीं आया कि इन दोनों ने द्रोणाचार्य को इतनी गंदी मौत क्यूँ दी?

पहले द्रोण को छल से निहत्ता करा फिर उनको मार दिया, जबकी निहात्ते व्यक्ति को युद्ध भूमि में बंदी बनाया जा सकता है, मारा नहीं जा सकता | वोह अधर्म भी था, तब भी और आज भी |
‘गन्दी मौत’ शब्द का प्रयोग इसलिए हो रहा है की आचार्य द्रोण विश्व भर में धर्मगुरु ने नाम से विख्यात थे, और युधिष्टिर के गुरु थे | चलिए श्री कृष्ण तो ईश्वर अवतार थे, धर्म की स्थापना करने आय थे, लकिन युधिष्टिर की ख्याति तो धर्मराज की थी, वे तो किसी भी व्यक्ति को जो युधभूमि में निहत्ता हो, नहीं मार सकते थे, और द्रोण तो उनके गुरु थे|
फिर से प्रश्न; 
अवतरित ईश्वर तो कोइ गलत निर्णय ले नहीं सकते, और द्रोण युधिष्टिर के गुरु थे, तो युधिष्टिर ने सहमती क्यूँ दी?
ऐसे कौन से कुकर्म द्रोण ने करें थे, कि अवतरित ईश्वर , और धर्मराज युधिष्टिर, दोनों ने यह निर्णय लिया कि द्रोण को बंदी नहीं बनाना है, बल्कि भविष्य के समाज को यह सन्देश देना है कि ऐसे कुकर्मी व्यक्ति को जिन्दा नहीं छोड़ा जा सकता है, भले ही अधर्म हो |
आगे बढ़ने से पहले सोच लीजिये कि आपने अपना और समाज का कितना नुक्सान करा संस्कृत विद्वानों और धर्मगुरुओ की यह बात मान कर की द्रोण वेदज्ञाता थे | संस्कृत विद्वानों और धर्मगुरुओ का उद्देश तो हिन्दू समाज को दास मानसिकता में रखना है, और कम से कम ५००० वर्ष का जो प्रमाणित इतिहास हमसब को पता है, उस समय से ही यह कार्यकर्म चल रहा है कि समाज को शोषण हेतु दास मानसिकता में रखना है | 

लकिन आपकी आस्था श्री कृष्ण पर कम क्यूँ थी ? आप क्यूँ यह नहीं कह पाते की ईश्वर अवतार तो गलत निर्णय ले नहीं सकते | और युधिष्टिर के इस निर्णय से की गुरुद्रोण को गन्दी मौत देनी है, पूरे ब्रह्मांड ने उनको स-शरीर स्वर्ग भेज कर पुरस्कृत करा | हालाकि संस्कृत विद्वानों और धर्म गुरुओ ने यहाँ भी चालबाजी दिखाई, यह बताया गया लोककथाओं के माध्यम से, कि युधिष्टिर का रथ इस वृत्तांत से पहले पृथ्वी को बिना छूए हवा में चलता था, और इसके बाद जमीन पर चलने लगा | फिर से आपको और हिन्दू समाज को दासता के अतिरिक्त कुछ भी नहीं मिलेगा, यदि आपकी अवतरित ईश्वर पर आस्था पूर्ण नहीं होगी, और यही विद्वान चाहते हैं, प्रयत्नशील भी हैं |

द्रोण का इतिहास उपलब्ध है, उनका चरित्र अवसरवाद और घृणित अवसरवाद के अतिरिक्त कुछ नहीं, जिसमें एकलव्य का अंगूठा काटना शामिल है | 
और शोघ की आवश्यकता है ताकि इतिहास इस बात को पूरी तरह से समझ सके की द्रोण कितना घृणित व्यक्तित्व रखते थे | क्यूंकि फिर से: श्री कृष्ण ईश्वर अवतार है, इसलिए वे गलत निर्णय ले नहीं सकते, और, युधिष्टिर के इस निर्णय को पूरे ब्रह्मांड ने पुरस्कृत करा | पुरस्कार स्वरुप वे अकेले मानव बने जो सशरीर स्वर्ग गए !
पढ़ें: द्रोणाचार्य वध...गुरु शिष्य परंपरा पर श्री कृष्ण का एक प्रहार 

बस संस्कृत विद्वानों और धर्मगुरूओ ने इतिहास में हेर-फेर करके द्रोण को वेद्ज्ञाता घोषित कर दिया, ताकि ईश्वर ने यहाँ गलती करी, यह बात घुमाँ-फिरा कर समाज को समझाई जा सके, ताकि समाज की मानसिकता दास की रहे, और उनका शोषण हो सके|

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