Monday, February 10, 2014

कोडित पुराण रामायण और महाभारत को कैसे समझा जाय

यहाँ एक भौतिक तथ्य से आपको अवगत कराया जा रहा है, जिससे आपको भी मानना पड़ेगा की सनातन धर्म स्वंम इश्वर ने मानव और श्रृष्टि कल्याण के लिए प्रस्तुत करा है; बस उसका दुरूपयोग नहीं होना चाहीए |
क्या आपको मालूम है की समस्त पुराण स्तोत्र मैं लिखे हैं, जिसका अर्थ होता है .....“कोडित भाषा” ?
क्या आपको इस बारे मैं आपके धर्म गुरु ने बताया है ?

नहीं बताया न किसी ने, लकिन गणेश व्यास संवाद सुनने या पढने के बाद, कम से कम आपको तो यह सोचना चाहीये था ?

क्या है वोह कोड जिससे आपको समस्त पुराण, रामायण और महाभारत समझना है ?
ध्यान रहे गणेश व्यास संवाद यह स्पष्ट करता है कि महाभारत मैं एक विशेष कोड भी है, जो की रामायण और समस्त पुराण के अतिरिक्त है |
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सब पुराण, रामायण को समझने के लिए मात्र निम्लिखित कोड पर्याप्त है:
1. अलोकिक शक्ति हटाना ही पर्याप्त है, और उस समय के इतिहास का निर्माण उस समय की स्तिथी तथा भूगोलिक स्तिथी के अनुकूल करना होगा, 
2. ध्यान रहे इतिहास की प्रस्तुति सदेव वर्तमान समाज के हित मैं रख कर ही करनी होती है, और आवश्यकता हो, तो व्याख्या और अंतर्वेषण (INTERPRETATION and INTERPOLATION) का प्रयोग करा जा सकता है |
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महाभारत मैं इसके अतिरिक्त और भी कुछ करना होगा :
विशेष कोड:-
महाभारत को समझने के लिए एक बात अवश्य ध्यान मैं रखनी है; पूरे ग्रन्थ को आप पढ़ लें, आपको ‘संतोष-जनक’ उत्तर इस बात का नहीं मिलेगा की क्या धर्म था, जिसके लिए महाभारत युद्ध लड़ा गया !
और यही विशेष कोड है !
चुकी महाभारत युद्ध विश्व युद्ध था, इसलिए धर्म आपको वर्तमान विश्व मैं निकट भविष्य मैं क्या अत्यंत गंभीर समस्या संभावित है, उसको सोच कर स्वंम निर्धारित करना है |
तथा कोड की सुन्दरता यह है कि जब उस संभावित विश्व समस्या के समाधान को धर्म मान कर आप महाभारत समझेंगे, तो पूरी महाभारत आपको समझ मैं आयेगी, इससे पहले आप महाभारत नहीं समझ सकते | 
है न अत्यंत सुंदर, परन्तु आसान कोड ?
इस विशेष कोड के लिए केंद्र-बिंदु वर्तमान विश्व है, न की जैसा बाकी सब पोस्टो मैं (रामायण और पुराण के लिए) कहा गया है वर्तमान हिन्दू समाज |
यह भी समझ लीजिये, और मान लीजिये कि आगे कुछ हज़ार वर्षो बाद, कोइ और गंभीर समस्या आयेगी, विश्व के सामने, उस समय तब का धर्म भी महाभारत को उस समय के समाज को समझाने के लिए होगा |

क्या अब भी आप नहीं मानते की सनातन धर्म स्वंम इश्वर ने मानव को दिया है ?
महाभारत एक व्यापक नरसंघार का इतिहास है, जो स्वम श्री विष्णु अवतार श्री कृष्ण के संरक्षण मैं हुआ, और अवतरित भगवान्, पूरा प्रयास करके भी इस नरसंघार को नहीं रोक पाए, और अंत मैं यह इश्वर अवतार श्री कृष्ण का ही निर्णय था की इस नरसंघार के अतिरिक्त श्रृष्टि के पास कोइ विकल्प नहीं है, आगे बढ़ने का |
और इसका सबसे बड़ा प्रमाण है, श्री कृष्ण ने प्रतिज्ञा ली युद्ध-भूमी मैं अस्त्र नहीं उठाएंगे, और अपनी पूरी सेना कौरव को देदी; संकेत स्पष्ट है, नरसंघार के बाद ही युद्ध जीता जाएगा, और अस्त्र न उठाने का अर्थ था की पूरी श्रिष्टी का संघार नहीं होना है |
सनातन धर्म क्यूँकी नियमो से बंधा धर्म नहीं है, तो उसमें व्यापक लचीलापन है , और समाज की स्तिथि के अनुसार उस लचीलेपन का प्रयोग समाज सुधार और/या समाज की उनत्ती के लिए होता है |
हर धार्मिक प्रवचन/शिक्षा मैं एक उचित अनुपात भावना और कर्म का होना जरुरी है, यह अनुपात समाज की वर्तमान वास्तविक स्थिथि पर निर्भर करती है|

१००० वर्ष की गुलामी मैं हिन्दू संतो ने धार्मिक शिक्षा का भावनात्मक भाग जबरदस्त बढ़ा दिया था, ताकि सर झुका कर ही सही, हिन्दू समाज धर्म परिवर्तन से बच सके |
आजादी के बाद, ताकी धार्मिक प्रवचन और शिक्षा से जुड़े लोग शक्ति, धन और राजनीतिग्य शक्ति का आनंद ले सकें, जो भी धार्मिक शिक्षा मैं थोडा बहुत बचा हुआ कार्मिक भाग था, वोह भी समाप्त कर दिया गया, क्यूँकी भावनात्मक समाज का शोषण आसान है |
और यही कारण है की हिन्दू समाज और ज्यादा कर्महीन होगया, और वोह अपने अधिकार के लिए लड़ नहीं पा रहा है |
इसका जीता जागता उद्धारण यह है की हिन्दुस्तान मैं ९८% लोग भ्रष्ट नहीं है, मात्र २% लोग भ्रष्ट हैं, और वे भी पब्लिक और जनता के सामने भ्रष्टाचार समाप्त करने का वादा करते हैं, लकिन आजादी के ६५ वर्षो मैं भ्रष्टाचार बढ़ता ही जा रहा है!
||रामायण, महाभारत में अलौकिक शक्तियाँ नहीं बल्कि वैज्ञानिक शक्तियां ही थी, जैसा आज प्रमुख राष्ट्रों के पास है, और आज से भी कहीं ज्यादा ||
हिन्दू समाज कर्महीन है, और जबतक हर व्यक्ती यह नहीं समझ लेगा की कर्महीनता की लड़ाई स्वंम से शुरू होती है, कुछ सुधार संभव नहीं है |
कमसे कम यहाँ पर तो हिम्मत दिखाओ, गलत बात का विरोध करो ! 
कैसे लड़ा जा सकता है कर्महीनता से ?
सनातन धर्म के नियमों के अनुसार :-
सनातन धर्म मैं अवतार का स्वरुप, कम विकसित और अशिक्षित समाज के लिए, अलोकिक शक्ती की चादर के साथ होता था, जैसा की आजादी से पहले था |

और

विकसित , शिक्षित समाज के लिए, बिना अलोकिक शक्ती और चमत्कारिक शक्ती के , जैसा की आजादी के बाद के समाज के साथ होना था, परन्तु नहीं हुआ |
जय सिया राम, जय राधे कृष्ण !

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