Wednesday, February 12, 2014

रामायण कालके विज्ञान की विदेशो से बात सुनकर सर शर्मसे क्यूँ नहीं झुकता

जबभी कोइ विदेशी शोघकरता, बहुत प्राचीन विज्ञान के उपर लेख प्रस्तुत करते हैं, और उसमें सबूत के समर्थन मैं रामायण का उल्लेख होता है तो हम सबको बहुत खुशी होती है, गर्वित होते हैं | यह गलत है, हमारा सर तो शर्म से झुक जाना चाहीये, क्यूँकी हमने तो वोह कुछ करा नहीं जिससे हिन्दू युवा छात्र विश्व के प्राचीन इतिहास पर शोघ कर सके, उल्टा उसको रोकने का पूरा प्रयास कर रहे है | 

हिन्दू समाज के धर्मगुरु-जानो ने आजादी के ६४ वर्ष बाद भी धार्मिक ग्रंथो से अलोकिक और चमत्कारिक शक्ती की चादर हटने नहीं दी, क्यूँकी भावनात्मक समाज अबोध बालक की तरह से होता है, उसे वश मैं रखा जा सकता है, और कोइ भी मौका परस्त व्यक्ती समाज से प्राप्त होने वाली शक्ती कैसे छोड़ सकता है, शोषण का सुनहरा मौका कैसे जाने दे सकता है ?
1. क्या कारण है इन दोहरे मापदंडो के ?

2. यह पोस्ट इसलिए आवश्यक होगई की कुछ लोग पोस्ट ‘त्रेता युग के विमान, विज्ञानिक प्रगती और रामायण’ पर बार बार यह जानना चाहते हैं की हिन्दू समाज को क्यूँ नहीं अवसर मिल रहा इन सब विषयों पर शोघ करने का ? 

3. जब रामायण के १०० से भी अधिक संस्करण विश्व मैं उपलब्ध हैं, तो क्यूँ नहीं रामायण को इतिहास के परिपेक्ष मैं बिना अलोकिक शक्ति के समाज को समझाया जाता ? 

4. क्यूँ शिव धनुष जो की प्रलय स्वरूपी विनाशकारी अस्त्र था (WEAPON of MASS DESTRUCTION ), और जिसका विघटन होने लगा था, उसे मात्र धनुष बताया जा रहा है, और जैसे २ या ३ साल के बच्चे को विघटन नहीं बताया जा सकता, तो यह बताया जा रहा है की उसे तोडा गया था ?

5. कब तक हिन्दू समाज को भावनात्मक बना कर रखेंगे, और गुलामी की और धकेलेंगे ?

उत्तर बहुत सीधा और स्पष्ट है; यदी कहीं कोइ गलती हो रही है, तो उस गलती को सुधारने के लिए कोइ केंद्रीय समिती नहीं है जो इन विषय को देख सके, निर्णय ले सके, और उन निर्णय को अमल मैं ला सके | इस विषय पर ब्लॉग मैं पोस्ट उपलब्ध हैं, आप सब पढ़ सकते हैं : ‘सनातन धर्म मैं सप्त ऋषि की अवधारणा’ 

हिन्दू समाज, आज अपने ही देश मैं द्वित्य श्रेणी का नागरिक बन कर रह गया है, समाज को आजादी के बाद धर्मगुरुओं ने और भावनात्मक कर दिया, जिसका असर अब हिन्दू समाज को मिल रहा है, हम हिन्दुस्तान मैं द्वित्य श्रेणी के नागरिक है !
जागो हिन्दू जागो !!!

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