Monday, January 21, 2013

क्या अवतार के पास अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति होती हैं ?

सनातन धर्म मानने वाला समाज जीवित रहे, उसके लिए आवश्यक है, कि समय अनुसार समाज की मानसिकता बदलने मैं धर्म सहायक हो
DOES AVATARS HAVE SUPERNATURAL POWERS?
एक महायुग की अवधी काफी लंबी होती है| अब मैं पोस्ट DURATION OF A KALP से उद्धत होता हूँ, जिसमें पुराणों, और सूर्य सिद्धांत के अनुसार महायुग की अवधी इस प्रकार है :

THE FOUR YUGAS AND THE KALI YUGA  

Satya Yuga ............14,40, 000 years 
Treta Yuga ............10,80,000 years
Dwapar Yuga .........7,20,000 years
Kali Yuga ...............3,60,000 years
Sandhi Kaal: ...........7,20,000 years 
Total ................ .=43,20,000 years

चुकी इसमें समय को भौतिक आधार पर परिभाषित नहीं करा गया है, तो इसको लेकर अनेक विवाद भी हैं| विषय अलग है, इसमें न पड़ कर बहतेर होगा की हम न्यूनतम संभावित समय है उससे इसे दर्शाते हैं: 

Satya Yuga ...............5,18,400 yearsTreta Yuga ...............3,88,800 yearsDwapar Yuga ..........2,59,200 yearsKali Yuga ................1,29,600 yearsSandhi Kaal: ............2,59,200 yearsटोटल अवधी ...... ...= 1,555,200 years
Note: The current Kali Yuga began at midnight 17 February / 18 February in 3102 BC
यहाँ युगों की अवधी देना इसलिए आवश्यक हो गया था, ताकि आप इस बात को समझ सकें कि श्रृष्टि बीच बीच मैं बुरे और बहुत बुरे वक्त से भी गुजरती है| आवश्यक है कि मनुष्य रूप मैं अवतार के सन्दर्भ  मैं ‘बुरे वक्त’ और ‘बहुत बुरे वक्त’ को परिभाषित भी कर दिया जाए|

बुरा वक्त: 
जब अनेक कारणों से धर्म की हानि होती है, परन्तु समाज विज्ञानिक तौर पर पूरी तरह से विकसित नहीं होता, तो मनुष्य रूप मैं इश्वर के अवतार की आवश्यकता नहीं पड़ती है, या बहुत ही सीमित कार्य के लिए प्रभु अवतरित होते हैं, जैसे नरसिंह अवतार, हिर्नाकश्यप के वध के लिए, वामन अवतार, आदि...

बहुत बुरा वक्त: 
जब समाज विज्ञानिक तौर पर पूरी तरह से विकसित होता है, तब धर्म की हानी के कारण, आवश्यक सुधार, दिशा परिवर्तन के लिए इश्वर मनुष्य रूप मैं अपना पूरा जीवन काल उस सुधार के लिए लगा देते हैं, जैसे, भगवान परशुराम, श्री राम, श्री कृष्ण| यह भी ध्यान देने वाली बात है की त्रेता युग मैं एक के बाद तुरंत दुसरे विष्णु अवतार के रूप मैं श्री राम को आना पड़ा, क्यूँकी पहले अवतार, भगवान परशुराम, समस्त समस्याओं का समाधान करने मैं सक्षम नहीं हो पा रहे थे|

अब प्रश्न का उत्तर देते हैं; जब समाज कम विकसित होता है, और विज्ञानिक विकास नहीं होता है, या आरंभिक स्तर पर हो, तब प्राय अवतार पर मिथ्या की चादर लपेट दी जाती है, जिसमें अवतार को अलोकिक और चमर्त्कारिक शक्ति से परिपूर्ण दिखा दिया जाता है, और चुकी उस समाज मैं प्राय अवतार के समय के विकास को समझने की क्षमता भी नहीं होती है, तो प्रमुख भौतिक धर्म जो की बिना चमत्कारिक शक्तियुओं के ही समझे जा सकते हैं, उन धर्म को नहीं बताया जाता, और समाज को भक्ति प्रमुख बना कर छोड दिया जाता है|
इसका उद्धरण, गुलामी और बुरे वक्त मैं हिंदू समाज को यह बताया गया कि श्री राम का मुख्य उद्देश रावण को मारना था, जबकी श्री राम के प्रमुख उद्देश, अवतरित होने के इस प्रकार थे:
जब आप रामायण को इतिहास मानेंगे तो आप पाएंगे कि श्री विष्णु का प्रमुख उद्देश श्री राम के रूप में अवतरित होने का इस प्रकार था :
1. स्त्रियों पर विभिन् प्रकार के अत्याचारों को समाप्त करना, तथा अग्नि परीक्षा जैसा असामाजिक शोषण, जिसको धार्मिक मान्यता भी प्राप्त थी उसे अधर्म घोषित करना! 
2. कमजोर वर्ग को सामान्य अधिकार समाज में दिलाना! वानर नई प्रजाति थी जो सतयुग में प्राकर्तिक विकास से उत्पन्न होई थी, और जिनके पूँछ थी ! वानर जाती को मनुष्य समाज ने तथा समस्त राज्यों ने मनुष्य मानने तक से इनकार कर रखा था, और उनके साथ जानवर जैसा दुर्व्यवहार होता था ! 
3. एक ऐसे राज्य की स्थापना करना जिसमें किसी तरह का अत्याचार न हो, समाज में धन, जाती, या उत्पत्ति के नाम पर कोइ भेद भाव न हो, तथा निष्पक्ष न्याय हो! इसी राज्य को हमसब राम राज्य के नाम से भी जानते हैं
ध्यान रहे आप प्रमुख्य उद्देश बिना अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति के ही समझ सकते हैं|
अब प्रश्न यह है की ऐसा क्यूँ करा जाता है ?
आपको यह बताया गया है, और अनुभव भी करा होगा कि सनातन धर्म अत्यंत प्राचीन है, संभवत: श्रृष्टि के आरम्भ से, लकिन कोइ आपको यह नहीं बताएगा, कि क्यूँ?
कारण स्पष्ट है; 
किस तरह के धर्म का प्रचार होना है, वह समाज की व्यस्था पर निर्भर करता है| सनातन धर्म मानने वाला समाज जीवित रहे, उसके लिए आवश्यक है, कि समय अनुसार समाज की मानसिकता बदलने मैं धर्म सहायक हो| उद्धरण, एक गुलाम समाज जो की हम थे, १००० वर्षों तक, को स्वंम संतो ने पूरी तरह से भक्ति की और मोड दिया, कर्म भाग घटा कर|

इसलिए उत्तर स्पष्ट है, सनातन धर्म मानने वाला समाज, कितना शक्तिशाली या कमजोर है, उसपर निर्भर करता है, की अवतार का इतिहास किस तरह का होगा; अलोकिक शक्ति के साथ, जो कमजोर समाज को बताया जाता है, या बिना अलोकिक शक्ति के, जो की समृद्धी की और बढते हुए समाज को बताया जाता है |

आज हम आज़ाद देश के नागरिक हैं, तथा विज्ञानिक दृष्टि से समाज मैं क्षमता भी है कि अवतार के समय के विज्ञान को और अवतार के भौतिक धर्म को समझ सकें| फिर क्यूँ हमें अवतार के बारे मैं अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति जोड़ कर इतिहास पर मिथ्या की चादर लपेट कर समझाया जा रहा है| क्यूँ???

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