जैसा की इससे पहली पोस्ट मैं पढ़ा, महाराज शांतनु ने सामान्य व् परंपरागत तरीके से संतान पाने की इच्छा से सत्यवती से विवाह करा; पढ़ें: शांतनु की सत्यवती से शादी मानव हित मैं एक समझोता था
शादी के कुछ समय पश्च्यात उनके पहली संतान हुई| चित्रांगद वीर और योग्य थे| काफी समय बाद सत्यवती ने दुसरे पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम विचित्रवीर्य हुआ| विचित्रवीर्य जैसा की नाम है, लगता है कि नाम के पीछे कुछ सन्देश छिपा है, जो की अभी समझ मैं नहीं आया| संभवत: जेनेटिक इंजीनियरिंग का प्रयोग कुछ जीनस के संशोधन के लिए करा गया, जो की सफल नहीं हो पाया|
महाराज शांतनु, सत्यवती से शादी उपरान्त अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाए, और विचित्रवीर्य के जन्म उपरान्त कुछ समय बाद चल बसे| चित्रांगद सिंघासन पर विराजमान हुए, परन्तु अधिक समय तक वे शासन नहीं कर पाए, और एक मल-युद्ध मैं मारे गए| युवा अवस्था मैं विचित्रवीर्य को राज सिंघासन पर बैठा दिया गया, और स्वंम भीष्म ने राज्य का उत्तरदायित्व संभाला|
विचित्रवीर्य शारीरिक रूप से कमजोर थे, और बीमार से रहते थे| इधर यह बात पहली पोस्टों मैं भी कही गयी है, कि उस समय कन्याओं का अभाव था, और ऐसे मैं राजा विचित्रवीर्य को विवाह उपयुक्त कन्या मिलनी दुर्लभ थी| उस समय की कन्याओं की दुर्दशा के बारे मैं आप अंदाजा लगा सकते हैं कि भीष्म, काशी नरेश के यहाँ गए और उनकी तीनो राज-कन्याओं को विचित्रवीर्य के लिए उठा लाए, जिनके नाम थे अम्बा, अम्बिका, अम्बालिका| अम्बा ने भीष्म को बताया कि वोह अपना जीवन साथी, साल्वा को चुन चुकी हैं, तो भीष्म ने उन्हें जाने दिया, तथा अम्बिका, अम्बालिका से विचित्रवीर्य की शादी कर दी|
अम्बा के कथन से यह भी स्पष्ट होता है कि भीष्म स्वम्बर जीत कर कन्याएं नहीं ले कर आए, बलिक बल प्रयोग, या बल प्रयोग की धमकी दे कर ले कर आये थे, क्यूँकी स्वम्बर का अर्थ ही होता है कि कन्या स्वंम अपना वर चुने, तो अम्बा को भीष्म कैसे स्वम्बर मैं जीत कर लाए, जब उसने आते ही बता दिया कि वह साल्वा से विवाह करना चाहती है| इससे स्पष्ट प्रमाण कन्याओं की कमी का और क्या होगा| एक तो अजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा मैं बंधे हुए भीष्म, और फिर बल का प्रयोग करके काशी नरेश की तीनो पुत्रियों को अपने बीमार लघु भ्राता के लिए लेकर आना, और वह भी जब, जब बिना राजा की पदवी ग्रहण करे, वे हस्तिनापुर का राज्य संभाले हुए थे, क्या संकेत देते हैं; स्पष्ट है कि हस्तिनापुर के राज-घराने के पास और कोइ विकल्प नहीं था|
परन्तु विचित्रवीर्य का स्वास्थ गिरता ही गया, और वे ज्यादा दिन जीवित नहीं रह पाए| अब हस्तिनापुर के सिंघासन पर बैठने के लिए कोइ नहीं था, सत्यवती ने भीष्म से कहा कि वे अब सिंघासन संभाले, तो भीष्म प्रतिज्ञा का हवाला दे कर अलग हो गए |अस्थाई अवस्था को निभाने के लिए भीष्म राज्य संभाल रहे थे, लकिन, वंश आगे कैसे चले, यह समस्या थी| निराश हो कर सत्यवती ने अपने, महामुनि पराशर संतान व्यास को बुलाया, और उन्हें अम्बिका, और अम्बालिका से संतान उत्पन्न करने को कहा| सर्व-ज्ञाता वेद व्यास, अपनी माता का अनुरोध टाल नहीं सके, और वे अम्बिका के पास पहुचे, जो उनकी शकल देख कर घबरा गयी, और आँखे तक नहीं खोली, लिहाजा, अम्बिका के पुत्र धर्तराष्ट्र अंधे पैदा हुए| ऐसे ही वे जब अम्बालिका के पास पहुचे, तो वोह काफी डरी सहमी थी, लिहाजा अम्बालिका के पुत्र पांडू कमजोर उत्पन्न हुए, लकिन तीसरी बार, सत्यवती ने जब व्यास को दुबारा अम्बालिका के पास भेजा तो, अम्बालिका ने इस बार एक अपनी दासी छोड दी, और उसने आदर सत्कार के साथ, खुशी खुशी व्यास जी का स्वागत करा, जिससे दासी-पुत्र विदुर उत्पन्न हुए| विदुर की आज भी प्रतिष्ठा है, एक महान ज्ञानी की|
चलिए कन्याओं की कमी के बारे मैं कुछ बात कर लेते हैं| महाभारत समझने के लिए यह आवश्यक है कि इस बात को आप अच्छी तरह से समझ लें कि उस समय कन्याओं की विशेष कमी थी, और इसी परिपेक्ष मैं विश्वामित्र का तप और उसके उपरान्त की घटनाएं समझ मैं आती हैं| पूरा विश्व हिंदू समाज के जागने का इंतज़ार कर रहा है, और बिना जागे तो विश्व का नेतृत्व संभव नहीं है|
हिंदू समाज उठो, पूरा विश्व आपका इंतज़ार कर रहा है; और किसी के पास ऐसे तथ्य उपलब्द नहीं है कि विश्व को प्राचीन इतिहास समझा सके, आपके पास हैं, लकिन उसके लिए आपको यह मानना पड़ेगा कि इतिहास मैं किसी के पास चमत्कारिक और अलोकिक शक्तियां नहीं हो सकती| यह अत्यंत महत्वपूर्ण है, त्रेता युग का इतिहास और द्वापर युग का इतिहास सिर्फ हिंदू समाज को मालूम है, लकिन उसपर से चमत्कारिक और अलोकिक शक्ति की चादर तो समाज को उतारनी पड़ेगी, तभी आप उसे इतिहास मनवा पायेंगे, और विश्व आपका न्रेत्रित्व स्वीकार करेगा|
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कुछ विचार जो पोस्ट मैं व्यक्त करे गए हैं , उनपर समाज को सोचना पड़ेगा:
ReplyDelete१)अम्बा के कथन से यह भी स्पष्ट होता है कि भीष्म स्वम्बर जीत कर कन्याएं नहीं ले कर आए, बलिक बल प्रयोग, या बल प्रयोग की धमकी दे कर ले कर आये थे, क्यूँकी स्वम्बर का अर्थ ही होता है कि कन्या स्वंम अपना वर चुने, तो अम्बा को भीष्म कैसे स्वम्बर मैं जीत कर लाए, जब उसने आते ही बता दिया कि वह साल्वा से विवाह करना चाहती है|
२)महाभारत समझने के लिए यह आवश्यक है कि इस बात को आप अच्छी तरह से समझ लें कि उस समय कन्याओं की विशेष कमी थी, और इसी परिपेक्ष मैं विश्वामित्र का तप और उसके उपरान्त की घटनाएं समझ मैं आती हैं|
इन दोनों विषय पर व्यापक चर्चा की आवश्यकता है, क्यूँकी अभी तक किसी ने महाभारत को इतिहास नहीं माना..यही समस्या है, और इतिहास न मानने के कारण समाज की हानि भी हो रही है |