सनातम धर्म मैं अनेक समस्या हैं , और सबसे बड़ी समस्या यह है की यदि समाज विरोधी कहीं धर्म सिखाया जा रहा है , या बताया जा रहा है , तो किसी के पास कोइ विकल्प नहीं है , उसे सही करने का |
कुछ ऐसा ही हो रहा है प्राचीन इतिहास के साथ , जिसमें रामायण का उद्धारण यहाँ दिया जा रहा है |
रामायण त्रेता युग का इतिहास है यह हम सब जानते हैं , और जब सुप्रीम कोर्ट मैं सारे हिंदू संघटनो ने अलग अलग यह हलफनामा लगा दिया की राम-सेतु मनुष्य निर्मित है , तो उसपर अब चर्चा की भी कोइ गुंजाइश नहीं है |
परन्तु इतिहास की परिभाषा है तथ्यों के आधार पर वर्तमान समाज हित हेतु प्रस्तुतीकरण , जो की नहीं हो रहा है | यहाँ तक हो रहा है कि दुसरे युगों के मानव इतिहास से , अलोकिक और चमत्कारिक शक्तियों की मिथ्या की चादर, जो इतिहास पर कस कर लपेटी हुई है , उसे भी हमारे धर्मगुरु हटाने को तैयार नहीं हैं |
इसका सीधा परिणाम यह है की हिंदू समाज अपने को बहुत कमजोर पा रहा है , और उसकी उचित मांगो की भी सरकार अवहेलना कर देती है ; हम अपने देश मैं ही दुसरे दर्जे के नागरिक हैं |
एक उद्धरण अति उपयुक्त रहेगा : रावण पर विजय उपरान्त जब माता सीता को राम के पास लाया गया तो उन्होंने अग्नि परीक्षा के बाद उनको सहर्ष स्वीकार कर लिया | अब किस युग मैं कुछ कम ज्ञान के गुरुजानो के कारण एक स्पष्टीकरण जोड़ दिया गया कि यह इसलिए आवश्यक था कि माता सीता को तो अग्नि देव के पास सुरक्षित रखा गया था , और अब अग्नि के माध्यम से उन्हें वापस लाया जा रहा है | इस विवादित स्पष्टीकरण के कारण श्री राम की अनावश्यक आलोचना होती रहती है |पढ़ें: श्री राम की अनावश्यक आलोचना समाप्त करने मैं सहायता करें
वास्तव मैं अग्नि परीक्षा उस समय की धार्मिक मान्यता प्राप्त मर्यादा थी , जिसका श्री राम विजय उपरान्त तुरंत विरोध नहीं कर सकते थे | परन्तु जब सीता के विरुद्ध अनेक आरोप अयोध्या की जनता ने लगाए तो श्री राम के पास कोइ और मार्ग नहीं बचा, सिवाय इसके की वे एक न्याय पीठ का गठन करें , जिसकी अध्यक्षता वे स्वंम करेंगे , और जनता पक्ष सीता के विरुद्ध, और राजसी परिवार सीता के पक्ष मैं अपने विचार/मामला रखें | यहीं पर सीता को श्री राम ने त्यागा ; पढ़ें: सीता का त्याग राम ने क्यूँ करा... सही तथ्य
चुकी दोनों पोस्ट की लिंक अब आपके पास है , मैं उपरोक्त विषय पर समय नष्ट न करके सीधे मुख्य विषय पर आता हूँ :
हमें वर्तमान अग्नि देव वाली बात मानने से क्या धर्म मिल रहे हैं ..
और >>
हमें रामायण को इतिहास मान कर , तथा उसपर से मिथ्या की चादर हटा कर , तथ्यों के आधार पर क्या धर्म मिल रहे हैं ..
हमें वर्तमान अग्नि देव वाली बात मानने से क्या धर्म मिल रहे हैं : हमें कोइ धर्म नहीं मिल रहा है , उल्टा आज के संधर्भ मैं हमें केवल नुक्सान ही हो रहा है | यदि कोइ यह कह रहा है कि श्री राम ने राज्य करने की इच्छा से सीता तक को त्याग दिया जिसने अग्नि परीक्षा देकर अपने को निर्दोष साबित कर दिया था , तो हमारे पास इसका कोइ जवाब नहीं है | ध्यान रहे जवाब तो हर बात का दिया जा सकता है , लकिन वो जवाब सिर्फ जवाब ही होगा , समाज के दिल तक नहीं पहुचेगा , और बे-असर रहेगा; और यही हो रहा है |
हमें रामायण को इतिहास मान कर , तथा उसपर से मिथ्या की चादर हटा कर, तथ्यों के आधार पर हमें अनेक धर्म मिल रहे हैं, जो की आज के समाज के हित मैं हैं, तथा उनका अनुसरण करने से समाज का लाभ ही लाभ है और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पर भी वो समाज के लिए कारगर सिद्ध होंगे:
पहला धर्म : अग्नि परीक्षा को अधर्म घोषित करा >> आपको उपर दो लिंक दी हुई हैं , कृप्या वे दोनों पोस्ट पूरी तरह से पढ़ लें | कितने कष्ट वाली बात है की सिर्फ मिथ्या की चादर हटाने मात्र से हमें अग्नि परीक्षा को किस तरह से अधर्म घोषित करा गया, वो सारा वृतांत अपने आप ही समझ मैं आ जाता है | यह भी समझ मैं आ जाता है कि, अब कोइ संदेह नहीं है कि , श्री राम से सम्बंधित इतिहास मानव इतिहास है और निसंदेह श्री राम और माता सीता ने व्यक्तिगत कष्ट इसलिए सहे, ताकि भविष्य मैं किसीभी स्त्री के साथ अग्नि परीक्षा जैसा अमान्विये व्यवाहर न हो | हमारी श्रधा इश्वर अवतार श्री राम और माता सीता के लिए और बढ़ जाती है , और इस बात को स्वीकार करते ही श्री राम की अनावश्यक आलोचना जो हो रही है , उसपर अंकुश भी लग जाता है |
दूसरा धर्म : भौतिक तथ्यों के अतिरिक्त अन्य तथ्य का कोइ महत्त्व नहीं ...इसी मैं अगर धर्म मिलता है तो भावनात्मक स्पष्टीकरण दे कर समाज की ठगाई , और गलत धर्म बता कर समाज का जो शोषण हो रहा है , वह समाप्त हो जायेगा |आप उपर की दो लिंक खोल कर पढ़ लीजिए , स्पष्ट हो जाएगा की न्याय मूर्ति के स्थान पर बैठ कर श्री राम ने सारे निर्णय मात्र भौतिक तथ्यों पर दिए थे |और आज भी हर प्रगतिशील राज्य मैं यही न्याय का स्वरुप है |
तीसरा धर्म :
जो विवाद श्री राम के सामने आया था , उसमें श्री राम को यह भी सुनिश्चित करना था , सबूतों के आधार पर , की सीता स्वंम की इच्छा से रावण के साथ गयी या अपहरण हुआ , और सीता कोइ भी सबूत नहीं दे पाई की अपहरण हुआ | लक्ष्मण रेखा उन्होंने स्वेच्छा से पार करी थी |“
श्री राम ने यह निर्णय दिया कि सीता कोइ भी भौतिक प्रमाण नहीं दे पायी हैं कि वोह स्वेच्छा से नहीं गयी थी! उन्होंने यह भी माना कि आज क्यूँकी वोह गर्भवती हैं तथा पूरी तरह से उनके नियंत्रण मैं हैं उनके किसी भी बयान को स्वतंत्र नहीं माना जा सकता| श्री राम ने अग्नि परीक्षा के परिणाम को निरस्त करते होए सीता को त्याग दिया!”
यहाँ पर एक न्यायधीश की सीमाएं बताई जा रही हैं , श्री राम यह जानते थे की सीता का अपहरण हुआ है , लकिन सीता यह साबित नहीं कर पाई | आज भी कानून को अंधा कहा जाता है , अथार्थ उसे जो दिखाया जाएगा , कानून केवल उतना ही देखेगा, और वही धर्म हमें सीता के त्याग के वृतांत से मिल रहा है |
चौथा धर्म:समाज सुधार हेतु कार्य/निर्णय मैं व्यक्तिगत कष्ट : अग्नि परीक्षा को अधर्म घोषित करना एक महत्वपूर्ण समाज मैं सुधार लाने का कार्य था | सीता तो अग्नि परीक्षा दे चुकी थी , और अग्नि परीक्षा को धार्मिक मान्यता भी प्रदान थी , ऐसे मैं श्री राम न्यायमूर्ति के पद से आसानी से यह निर्णय ले सकते थे की चुकी अग्नि परीक्षा को धार्मिक मान्यता प्रदान है , वे सबूत के तौर पर स्वीकार करते हैं , इसपर कोइ विवाद भी नहीं होता , लकिन श्री राम ने ऐसा नहीं करा | वे सीता को बेहद प्यार करते थे लकिन अपनी अंतरात्मा का विरोध करके गलत निर्णय नहीं दे सकते थे | कितने कष्ट और कितनी चुभने वाली बात है की दोनों , श्री राम और माता सीता ने व्यक्तिगत कष्ट और मानसिक यातनाए सही , और हमारे धर्मगुरु उल्टा उन्ही को बदनाम करने मैं मददगार साबित हो रहे हैं |
और भी अनेक धर्म इसी वृतांत से मिल सकते हैं , आपके कमेंट्स/टिप्पणी का इंतज़ार है |
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