Tuesday, June 5, 2012

दक्ष का श्रृष्टि यज्ञ जिसमें सती ने प्राणों की आहुति दे दी

मेरे इश्वर, शिव और सती, संसार कि श्रृष्टि के सकारात्मक प्रगति मैं सदेव रुचिकर हैं , और वचनबद्ध हैं ; तथा वे श्रृष्टि का विनाश भावनात्मक कारणों से नहीं कर सकते |
इतना विश्वास तो आपको भी अपने इश्वर पर होना चाहिए, नहीं तो हिंदू समाज का शोषण समाप्त नहीं होगा | याद रहे, ऐसा घृणित कार्य तो राक्षस ही कर सकते हैं , इश्वर कदापि नहीं !
ध्यान रहे शिव का यज्ञ मैं भाग नहीं होने का अर्थ है 
की इस सामूहिक प्रयास मैं विनाशकारक की कोइ आवश्यकता नहीं है~~~और बिना विनाश के श्रृष्टि चल नहीं सकती ; क्यूंकि यह एक सईक्लिक प्रक्रिया है !

जन्म..>बड़े होना..> बुड्ढ़े होना..> मृत्यु ..>...और फिर नई श्रृष्टि !

तो ...>>>उस समय श्रृष्टि  को "सति" होना पड़ता था !
सबसे पहले हम यज्ञ, तप का अर्थ समझते हैं |
यज्ञ का अर्थ होता है, समाज हित में, ‘सामूहिक कठोर प्रयास’ |  
यज्ञ, जो कि संस्कृत का शब्द है उसके लिए यह गलत धारणा अपने दिमाग से निकाल दीजीये कि यज्ञ का अर्थ होता है ‘अग्नि के सामने बैठ कर आहुति देना’ |  
उसी प्रकार ‘तप’ के लिए भी गलत धारणा है कि तप का अर्थ होता है सब कुछ भूल कर वन मैं जा कर , तथा सब कुछ त्याग कर इश्वर की कठोर और निरंतर अराधना ; 
नहीं तप का अर्थ होता है, समाज हित में, ‘व्यक्तिगत कठोर प्रयास’ |
DEVON KE DEV-MAHADEV(देवो के देव महादेव), एक लोकप्रिय सीरियल है, जो LIFE OK , TV CHANNEL पर दिखाया जा रहा है | जैसा की हर धार्मिक सीरियल मैं होता है , प्रयास हर सीरियल मैं इस बात का करा जाता है कि भावनात्मक तरीके से दर्शक को इस सीरियल से जोड़ा जाए, ताकि सीरियल से होने वाला आर्थिक लाभ अधिक से अधिक हो सके | इसमें कोइ बुराई भी नहीं है, व्यवसाय मैं ऐसा होता भी है , लकिन हिंदू धार्मिक गुरुजनों की यह नैतिक जिम्मेदारी तो है, कि हिंदू समाज को यह बताएं कि यह यज्ञ किस कारण हो रहा था, जहाँ सती ने देह त्याग दी |

सबसे पहले तो आपको यह भूलना होगा कि सती के देह त्यागने के कारण भावनात्मक थे | सती जगत जननी भी हैं , 
तो जो आपको बताया जा रहा है कि सती का देह त्यागने का कारण भावनात्मक है उसे आपने अस्वीकार क्यूँ नहीं करा ? 

क्या इश्वर श्रृष्टि का विनाश मात्र भावनात्मक कारण से कर सकते थे | क्या इश्वर श्रृष्टि का विनाश मात्र इस कारण से कर सकते हैं की उनकी पत्नी ने देह त्याग दी ? नहीं कभी नहीं | ऐसे भगवान की कम से कम मैं तो पूजा नहीं करूँगा; और मेरे भगवान ऐसा ‘राक्षसी कार्य’ कर भी नहीं सकते, कि ‘पति के अपमान’ के कारण से सती ने देह त्याग दी और शिव रुष्ट हो गए , जिससे प्रलय आ गयी |


वैसे भी भावनात्मक कारणों से देह त्यागना अधर्म है और यह हर धर्म बताता है |माता सती ने भावनात्मक कारणों से देह नहीं त्यागी |
जो भावनात्मक कारणों से किसी निर्दोष व्यक्ति को मृत्यु दे दे, ऐसा कार्य करने वाले को राक्षस कहा जाता है | और यहाँ तो पूरी श्रृष्टि के विनाश कि बात हो रही है | मेरे इश्वर, शिव ऐसा कार्य कदापि नहीं कर सकते थे, और न ही उन्होंने ऐसा घृणित कार्य करा |

मेरे इश्वर, शिव और सती, संसार कि श्रृष्टि के सकारात्मक प्रगति मैं सदेव रुचिकर हैं , और वचनबद्ध हैं ; तथा वे श्रृष्टि का विनाश भावनात्मक कारणों से नहीं कर सकते | इतना विश्वास तो आपको भी अपने इश्वर पर होना चाहिए, नहीं तो हिंदू समाज का शोषण समाप्त नहीं होगा | याद रहे, ऐसा घृणित कार्य तो राक्षस ही कर सकते हैं, इश्वर कदापि नहीं |

और जो हिंदू समाज का श्रोषण यह गलत भावनात्मक बाते बता कर कर रहा है वह राक्षस से भी ज्यादा घृणित व्यक्ति है |

यदि धार्मिक गुरु, हर धार्मिक प्रसंग का सही अर्थ नहीं बता रहे हैं , तो आपको उनसे उचित प्रश्न पूछने चाहिए |

दक्ष प्रजापति कि कथाओं से पुराण आपको यह सन्देश देना चाहते हैं कि श्रृष्टि के सकारात्मक प्रगति मैं अनेक अवरोधक आयेंगे , तथा पहले भी आए थे, तथा दक्ष प्रजापति कि कथा आपको एक ऐसे अवरोधक के बारे मैं सावधान करना चाहती है जो कि श्रृष्टि का निश्चित विनाश कर सकती है | यह भी आपको समझना होगा कि दक्ष मनुष्य नहीं हैं, क्यूंकि मनुष्य ब्रह्मलोक , विष्णुलोक का भ्रमण नहीं करते, तथा उनकी कन्या नक्षत्र नहीं होती | फिर भी यह सब कथाएँ अत्यंत ज्ञानवर्धक हैं , इसलिए इन्हें बहुत ध्यान से समझने की आवश्यकता है, तथा आस्था के परिपेक्ष मैं स्वीकार भी करना है |

दक्ष, इश्वर शिव से द्वेष रखते हैं और अपने पद का दुरूपयोग करके वे शिव का अपमान करना चाहते हैं | दक्ष का प्रत्यक्ष उद्देश है, श्रृष्टि आगे कैसे सुचारू रूप से चले, उसके लिए शोघ तथा अन्य तरीकों से नियम प्रस्तुत करें | 
अपने द्वेष के कारण वे एक ऐसी श्रृष्टि का निर्माण कर देते हैं जिसका विनाश अनिवार्य नहीं है | 
ध्यान रहे श्रृष्टि मैं हर वस्तु , पहले उत्पन्न होती है, फिर पनपती है, फिर विनाश की और अग्रसर हो जाती है, तथा यह चक्र चलता रहता है | शिव क्यूंकि संघार के देवता हैं , और विनाश उन्ही के निमत है, इसलिए यह शिव का ईश्वरत्व समाप्त करने का षड़यंत्र था| 

तथा यही कारण है की रह रह कर सीरियल मैं यह दिखाया गया कि इस यज्ञ मैं शिव का भाग नहीं है, अथार्थ चुकी नव निर्मित श्रृष्टि विनाश नहीं होना है, इसलिए शिव की इस यज्ञ मैं कोइ आवश्यकता नहीं है, न उनका कोइ भाग | 
इसी लिए आपको सीरियल मैं यह भी दिखाया जा रहा है कि प्रलय निकट है, सबको पता है , यहाँ तक कि नारद मुनि तक को इस विषय मैं पता है | प्रलय के बारे मैं सबको इसलिए पता है क्यूंकि इस प्रकार कि श्रृष्टि त्रिदेव को अस्वीकार है, और सबको यह समझ मैं आ रहा है कि ऐसे श्रृष्टि का विनाश अनिवार्य है, ताकि भविष्य मैं कोइ ऐसा कार्य न करे |

श्रृष्टि का विकास हो गया था, उसको समस्त देव, इश्वर के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए दक्ष ने एक यज्ञका आयोजन करा जिसमें शिव के अतिरिक्त सबको निमंत्रित करा | ऐसी श्रृष्टि का विनाश करना है , और वह भी प्रलय से, यह शिव को भी मालूम था और जगत जननी, माता सती को भी , क्यूंकि ऐसी श्रृष्टि अस्वीकार थी | शिव दक्ष के यज्ञ मैं, सती के कारण, कोइ विग्नबाधा नहीं डालना चाहते थे | परन्तु माता सती अपना ईश्वरत्व दाइत्व निभाना चाहती थी | संभवत: वह समस्त देवगणों को यह स्पष्ट सन्देश भी देना चाहती थी की भविष्य मैं इस प्रकार के नकारात्मक प्रयास मैं उनसब का योगदान नहीं होना चाहिए | 

इश्वर का दाइत्व माया के संबंधो के आगे भारी पड़ा | उन्होंने जिद करी अपने पिता के घर जाने के लिए , और शिव के मना करने के उपरान्त भी वोह वहाँ गयी, और वहाँ शिव का भाग ना पा कर , अथार्थ विनाश-हीन श्रृष्टि के विरोध मैं अपनी देह त्याग दी | 

ध्यान रहे शिव का यज्ञ मैं भाग नहीं होने का अर्थ है की इस सामूहिक प्रयास मैं विनाशकारक की कोइ आवश्यकता नहीं है~~~और बिना विनाश के श्रृष्टि चल नहीं सकती ; क्यूंकि यह एक सईक्लिक प्रक्रिया है !
जन्म..>बड़े होना..> बुड्ढ़े होना..> मृत्यु ..>...और फिर नई श्रृष्टि !

तो ...>>>उस समय श्रृष्टि यानी की सति को "सति" होना पड़ता था !
श्रृष्टि आगे सकारात्मक हो इसलिए उस श्रृष्टि के विनाश के लिए प्रलय के अतिरिक्त कोइ विकल्प नहीं था | तथा वह प्रलय लंबी अवधी तक चली | दुबारा श्रृष्टि तब उत्पन्न होई, जब हिमालय पर्वत का विकास हो गया, और, हिंदू होने के नाते मैं यह भी पूरे विश्वास से मानता हूँ, जब शिव-पार्वती का विवाह हो गया |
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