EVOLUTION REQUIRES AVATAR NOT GOD TO MAKE CORRECTIONS~~.प्राकृतिक विकास को मानने वाला धर्म, सनातन धर्म, के लिए यह अति आवश्यक है की स्वर्ग मैं बैठा इश्वर सुधार ना करे , एक मानव, जिसे हम इश्वर अवतार मानते हैं, वोह सुधार करे..!
अवतार दर्शाते हैं, या उपलब्ध कराते हैं ऐसी परिस्थिती जिसमें मानव के जीवित रहने मैं उल्लेखनीय सुधार हो| मनुष्य अवतार आवश्यक सुधार मानवता की प्रगति के लिए लाते हैं मानवता को उस समय के संकट से उभार कर !
अवतार का क्या सही अर्थ है, यह जानना अत्यंत आवश्यक है , क्यूंकि सूचना युग मैं हिंदू समाज को अगर आगे आना है , तो परिभाषा तो सबकी सही होनी चाहिए , और परिभाषा भी ऐसी, जो सम्बंधित समस्त प्रश्नों का भौतिक स्तर पर उत्तर दे सके | ध्यान रहे भौतिक स्तर पर , न की भावनात्मक स्तर पर | खेद का विषय यह है कि अभी तक अवतार कि कोइ परिभाषा ही नहीं है |
समस्या यह भी है कि हमारे धार्मिक ग्रन्थ इतने अधिक हैं , कि उनका उपयोग समाज के शोषण के लिए करना ज्यादा लुभावना है, और वही हो रहा है | यदि , स्पष्टीकरण हर विषय पर , समाज को केन्द्र बिंदु मान कर करा गया , तो शोषण समाप्त हो जाएगा , और यह धर्म गुरु नहीं चाहते |
एक उद्धरण उपयुक्त रहेगा |
मत्स्य अवतार का उल्लेख है , जो कलयुग के अंत में , जब पृथ्वी पूरी तरह जलमग्न हो जाती है , तो इस युग के कुछ लोगो को, अगले महायुग मैं ले जाने मैं सहायक सिद्ध होता है | पुरानो की माने तो ‘अंतराल’ अथार्त बीच का समय , यानी की वर्तमान कलयुग का अंत और नए महायुग के शुरुआत की दूरी ७,२०,००० वर्ष की है | इतने लंबे समय मैं , जब पृथ्वी जल-मग्न हो, तो भोजन का अभाव और समुन्द्र पर रहने की क्या अवश्यकताएँ हो सकती हैं , कोइ नहीं बताता, लकिन अनुमान हर व्यक्ति लगा सकता है |
समुन्द्र का जल भी स्थिर था , तथा जल-जीवन भी समाप्त हो गया था | केवल भारत , जो जलमग्न था, उसके ऊपर जल मैं कुछ जीवन शेष था, और मछलियाँ दिखाई देती थी | अब परिभाषा , ‘मत्स्य अवतार’ की आप स्वंम निर्धारित करें , भावनात्मक परिभाषा चाहिए, जिससे कर्महीनता बढ़ेगी, या भौतिक, जिससे कर्महीनता कम होगी | अधिक जानकारी के लिए पढ़ें : कलयुग का अंत..एक नए कल्प का प्रारम्भ और मत्स्य अवतार
अब सोचना आपको है की इस अंतराल के लिए मत्स्य को अवतार क्यूँ कहा गया , उसका भौतिक या भावनात्मक उत्तर आप देंगे; मैं यह पाठकों पर छोड़ता हूँ | परन्तु एक बात तो आप सब समझ लीजिए, धर्म समाज की प्रगति के लिए करा हुआ कर्म है| आप भौतिक परिस्थितियों से किस तरह से , समाज कि प्रगति के लिए , निबटते हैं , वही धर्म है |
युगों को परिभाषित करने के लिए भौतिक मापदंड चाहिए, जो कहीं पुस्तकों मैं लुप्त पड़े हैं , लेकिन समाज चुकी कर्महीन है , इसलिए धर्म गुरु बिना उसके भी काम चला रहे हैं |
उसमे, जो मुझे पता है , बता रहा हूँ ;
सतयुग मैं राहू , केतु का जन्म , तथा उनका अंत/मृत्यु कलयुग के अंत मैं |
ध्यान रहे कि राहू , केतु के जन्म का अर्थ है , कि शांत और स्थिर समुन्द्र मैं मंथन शुरू हो गया , या कहीये की समुन्द्र क्रियाशील हो गया, और लहरे उठने लगी | स्पष्ट है कि कुर्म अवतार यह दर्शाता है कि समुन्द्र सक्रिए हो गया है | संभवत: कुर्म का स्वंम उसमें कोइ योगदान नहीं रहा हो | हाँ , कुर्म अवतार राहू और केतु का जन्म भी दर्शाता है |
कुछ उसी तरह से वराह अवतार का भी स्थान है | कुर्म जल का प्राणी था, जो जब पृथ्वी पर दिखाई देने लगा, कुछ कुछ समय के लिए, तो समुन्द्र गतिशील हो गया , और लोगो ने कुर्म के दर्शन का इसे फल मान कर , कुर्म को अवतार मान लिया | परन्तु वराह जल का प्राणी नहीं था , वोह वन का प्राणी था | एक तरफ भूमि का छेत्रफल बढ़ रहा था, उधर वन से कभी कभी व्रारह निकल कर आता और मनुष्यों को उसके दर्शन हो जाते | मनुष्य ने समुन्द्र को घटने की प्रक्रिया को वराह से जोड़ दिया और वराह अवतार हो गए | यह भी पढीये: हिंदू इतिहास ...सत्ययुग में इश्वर अवतार
उसमे, जो मुझे पता है , बता रहा हूँ ;
सतयुग मैं राहू , केतु का जन्म , तथा उनका अंत/मृत्यु कलयुग के अंत मैं |
ध्यान रहे कि राहू , केतु के जन्म का अर्थ है , कि शांत और स्थिर समुन्द्र मैं मंथन शुरू हो गया , या कहीये की समुन्द्र क्रियाशील हो गया, और लहरे उठने लगी | स्पष्ट है कि कुर्म अवतार यह दर्शाता है कि समुन्द्र सक्रिए हो गया है | संभवत: कुर्म का स्वंम उसमें कोइ योगदान नहीं रहा हो | हाँ , कुर्म अवतार राहू और केतु का जन्म भी दर्शाता है |
कुछ उसी तरह से वराह अवतार का भी स्थान है | कुर्म जल का प्राणी था, जो जब पृथ्वी पर दिखाई देने लगा, कुछ कुछ समय के लिए, तो समुन्द्र गतिशील हो गया , और लोगो ने कुर्म के दर्शन का इसे फल मान कर , कुर्म को अवतार मान लिया | परन्तु वराह जल का प्राणी नहीं था , वोह वन का प्राणी था | एक तरफ भूमि का छेत्रफल बढ़ रहा था, उधर वन से कभी कभी व्रारह निकल कर आता और मनुष्यों को उसके दर्शन हो जाते | मनुष्य ने समुन्द्र को घटने की प्रक्रिया को वराह से जोड़ दिया और वराह अवतार हो गए | यह भी पढीये: हिंदू इतिहास ...सत्ययुग में इश्वर अवतार
मेरा उद्देश यहाँ पर समस्त अवतार पर चर्चा करने का नहीं है , मेरा अभिप्राय मात्र अवतार का महत्त्व/महत्ता पर प्रकाश डालने का है, ताकि अवतार की परिभाषा पर पंहुचा जा सके |
एक और महत्वपूर्ण अवतार हैं नरसिंह अवतार | अवतार की परिभाषा कि आवश्यकता ही इसलिये पड़ रही है क्यूंकिहिंदू सृजन(CREATION) को नहीं, क्रमागत उन्नति(EVOLUTION) को पृथ्वी का विकास का कारण मानते हैं , तथा यह समझना आवश्यक है कि अवतार की निश्चित आयु और जन्म होता है | हमारे धार्मिक ग्रंथो मैं बहुत कुछ है , लकिन उसे वर्तमान समाज को केन्द्र बिंदु मान कर समझना और समझाने का कार्य धार्मिक गुरु नहीं कर रहे हैं |
नरसिंह वन मैं मनुष्य की नई प्रजाति मैं से थे, उनके पूँछ भी थी और मुख सिंह जैसा | हिर्नाकश्यप से युद्ध मैं पहली बार मनुष्य और मनुष्य की नई प्रजाति, एक साथ लड़े | युद्ध मैं नरसिंह ने हिर्नाकश्यप को परास्त करा और मार दिया | नरसिंह अवतार, आज भी मनुष्य की संकट मैं , अन्य प्रजाति के मनुष्य के साथ मिल कर सामान्य शत्रु से लड़ने का एक प्रतीक है | यह सत्य है कि राक्षस भी मनुष्य थे, लकिन चुकी वे नरभक्षी थे, इसलिए मनुष्य के शत्रु ही हैं | अधिक जानकारी के लिए : नरसिंह अवतार.. क्रमागत उन्नति की प्रक्रिया से उत्पन्न मनुष्य
बाद मैं पृथ्वी पर परशुराम, फिर राम , फिर द्वापर युग मैं दुबारा परशुराम, बलराम और श्री कृष्ण आए | इन सब ने अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और मानव समाज मैं सुधार लाए
- मत्स्य अवतार ने मानव को वोह परिस्थिती उपलब्ध कराई , जो उस समय जीवित रहने के लिए आवश्यक थी |
- कुर्म अवतार, वराह अवतार ने सिर्फ दर्शाया , उन परिस्थितिओं को, जिससे मानव जीवन मैं उल्लेखनीय सुधार आया |~~~ध्यान दे : कृपा दर्शाने और उपलब्ध कराने के अंतर को समझें |
- वामन अवतार और नरसिंह अवतार ने एक समय का सुधार मानव के हित मैं करा |
- परशुराम , राम , फिर परशुराम , बलराम और कृष्ण लंबी अवधी तक मनुष्यों के साथ रहे और आवश्यक सुधार लाए | ध्यान दे लंबी अवधी का अर्थ है कि इतिहास, उनकी लंबी अवधी का उपलब्ध है , भले ही उसमें काफी कुछ जोड़ा घटाया गया है |
अब परिभाषा :
- अवतार , या तो दर्शाते हैं , या उपलब्ध कराते हैं, ऐसी परिस्थिती जिसमें मानव के जीवित रहने मैं उल्लेखनीय सुधार हो| मनुष्य रूप मैं अवतार अवतरित हो कर आवश्यक सुधार मानवता की प्रगति के लिए लाते हैं , जब , जब की मानवता अत्यंत संकट मैं हो | और भौतिक प्रयास समाज की प्रगति के लिए जो करा जाता है , वह धर्म है |
तो फिर अवतार और मानव में अंतर क्या है?
ईश्वर अवतार का कोइ भी निर्णय गलत नहीं होता | धर्मगुरु या संस्कृत विद्वान समाज के शोषण हेतु यह कहते हैं कि अमुक निर्णय श्री राम या श्री कृष्ण का गलत था | यह संभव ही नहीं है | उल्टा ईश्वर अवतार का इतिहास, बिना अलोकिक शक्ति के, दूसरा वेद माना जाता है | क्यूंकि वेद को समझने का और कोइ तरीका ही नहीं है, ना ही कोइ समझा |
और मानव के सारे निर्णय कभी भी सही नहीं होंगे, यह असंभव है , श्रृष्टि विरोधी है |
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