धर्म को झुकना पड़ता है, जब शातिशाली लोगो से टकराता है| और भगवान को बार बार अवतार लेना पड़ता है| स्वंम राम,'एक पुरुष एक विवाह' को धर्म मानते हुए कोइ प्रबंध नहीं कर पाए कि भविष्य में इसपर अमल हो सके !
श्री राम, त्रेता युग के आदर्श माने जाते हैं, तथा भगवान श्री विष्णु के अवतार भी है ! उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम से भी जाना जाता है ! यहाँ इस विषय पर चर्चा करेंगे कि मर्यादा और धर्म में क्या अंतर है, तथा इस गलत धारणा पर भी विचार करेंगे कि श्री राम, मर्यादा पुरुषोत्तम इसलिए कहलाते हैं क्यूंकि वोह ईश्वर अवतार हैं !
सबसे पहले तो यह बात सबको समझनी है कि मर्यादा इतिहास का एक अंग है, अर्थात मर्यादा समय के साथ साथ बदल सकती है ! तथा उसका ईश्वर से कोइ भी संबंध नहीं है ; मर्यादा एक निश्चित समय के महान मनुष्यों का आकलन करती है, उस समय कि महान परम्पराओं के सन्दर्भ में ! यदि उस समय के महान पुरुष/मनुष्य उन महान परम्पराओं/मर्यादाओं का पालन अपने जीवन में कर पाते हैं तो वोह मर्यादा पुरुष कहलाते हैं ; मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं ! ध्यान रहे मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं !
मर्यादा कदापि धर्म नहीं है ! धर्म कल और आज एक ही है, लेकिन मर्यादा एक नहीं है ! अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं , पहले हिंदुओं में कन्या स्वंम वर चुनती थी, स्वम्बर का भी प्रचलन था, और यह कहने कि जरुरत नहीं है कि स्वम्बर वही राजा, या धनी अपनी कन्या का कर सकता था, जिसके लीये समस्त राज्यों के राज कुमार, या योग्य और धनवान उत्साहित और प्रेरित हों ! उस समय की यह एक मर्यादा थी, लेकिन आज ऐसा कुछ नहीं है ! धर्म तब भी तथा आज भी कन्या के लीये उपयुक्त वर ढूँढना है !
तो यह अच्छी तरह से समझ लें कि मर्यादा और धर्म अलग हैं ! मर्यादा किसी एक समय की महान परंपरा होती है, जिसको उस समय धर्म से भी मान्यता प्राप्त होती है; लेकिन वोह अपने आप में धर्म नहीं होती !
समय मर्यादाएं बदल सकता है, लेकिन धर्म नहीं बदलता ! एकाधिक विवाह की परंपरा को ले लीजिये, श्री राम से पहले महाराज दसरथ की तीन रानियाँ थी; राम ने क़ानून बनाया कि एक से अधिक विवाह कोइ नहीं करेगा ! स्वंम सीता को त्यागने के पश्यात दूसरा विवाह नहीं करा ! वोह बात दूसरी है कि यह बात संभवत: ज्यादा समय नहीं चली होगी; जल्दी ही उसमें बदलाव आ गया होगा, चुकी मनुष्य की प्रकृति है कि शक्ति और धन के साथ उसे हर तरह का सुख चाहिये ! एक पुरुष, एक विवाह कभी भी मर्यादा नहीं बन पाया , जबकी वोह धर्म अनुसार है, और स्वंम राम ने उसका बीडा उठाया था ! वह आज भी धर्म अनुसार होकर भी धर्म नहीं बन पाया, तथा कुछ राज्य में मर्यादा ठीक उसके विपरीत है ! शाही तथा बड़े/महान लोगो के लीये मर्यादा है, एक से अधिक विवाह !
यह बात विशेष ध्यान देने की है कि धर्म को झुकना पड़ता है, जब वोह प्रतिष्टित और शक्तिशाली लोगो से टकराता है ! और इसीलिये भगवान को बार बार अवतार लेना पड़ता है ! स्वंम श्री राम, 'एक पुरुष एक विवाह' को धर्म मानते हुए और उद्धारण स्थापित करने के बाद भी, ऐसा कोइ प्रबंध नहीं कर पाए कि भविष्य में इसपर सख्ती से अमल हो सके !
कुछ मर्यादा लेकिन नहीं बदली ! जैसे के यदी दो योद्धा मल युद्ध कर रहे हों तो बाहर से हस्ताषेप नहीं होना चाहीये ! यह कल भी मर्यादा थी, तथा आज भी मर्यादा है !
परन्तु मर्यादा पुरुष श्री राम ने बाली और सुग्रीव के बीच जब मल युद्ध हो रहा था, तो युद्ध में निर्णायक प्रभाव बाहर से डाल कर मर्यादा को तोड़ा ! यह एक अत्यंत दिलचस्प प्रसंग है रामायण का; और खेद कि बात है, कि इसे किसी ने समाज को समझाने कि चेष्टा नहीं करी ! क्यूँ श्री राम मर्यादा तोड़ने के पश्यात मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाने लगे ?
चुकी वोह अपने आप में एक पूर्ण प्रसंग है, इसलिए उसकी यहाँ चर्चा नहीं हो सकती ! संषेप में इतना ही कहना चाहूँगा कि “जो व्यक्ति अपने समय कि समस्त मर्यादाओं का पालन करता है, उसको मर्यादा पुरुष कहते हैं, परन्तु जो व्यक्ति अपना निजी स्वार्थ भी दाव पर लगा कर समाज य देश के हित में मर्यादा का उलंघन करे वो मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाता है !” विस्तार के लीये इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें : राम सुग्रीव मैत्री संधि ...एक विश्लेशण
चुकी वोह अपने आप में एक पूर्ण प्रसंग है, इसलिए उसकी यहाँ चर्चा नहीं हो सकती ! संषेप में इतना ही कहना चाहूँगा कि “जो व्यक्ति अपने समय कि समस्त मर्यादाओं का पालन करता है, उसको मर्यादा पुरुष कहते हैं, परन्तु जो व्यक्ति अपना निजी स्वार्थ भी दाव पर लगा कर समाज य देश के हित में मर्यादा का उलंघन करे वो मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाता है !” विस्तार के लीये इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें : राम सुग्रीव मैत्री संधि ...एक विश्लेशण
कुछ धर्म गुरु ज्ञान के अभाव में यह समझा रहे हैं कि चुकी श्री राम विष्णु अवतार थे, इसलिए वोह मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते हैं ! यह बात सर्वथा गलत है , भगवान तो कभी भी किसी भी मर्यादा में बंधते नहीं हैं ! वोह जीवन, मृत्यु, सुख, दुःख, कब और क्यूँ देते हैं, यह कभी किसी को नहीं समझाते ! इश्वर मर्यादाओं से अलग है ! केवल महान एतिहासिक पुरुष का आकलन मर्यादा के सन्दर्भ में होता है !
श्री राम त्रेता युग के महान एतिहासिक पुरुष थे, तथा उस समय की मर्यादाओं के परिपेक्ष में ही इस विषय पर चर्चा हो सकती है !
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