पुराण पूरी तरह से विज्ञान है, और यह बात हर संस्कृत ज्ञानी जानता भी है | लकिन सत्य बोलने से तो हिन्दू समाज सशक्त हो जाएगा, इसलिए पूरी बेशर्मी से झूट बोला जाता है कि पुराण ’’पूजा भक्ति के लिए देवी-देवताओ की कथा है| और फिर ‘धर्मात्मा’ लोग हिन्दू समाज का शोषण करते रहते हैं |
पुराण विज्ञान है, सौर्यमंडल के विकास का इतिहास है और महत्वपूर्ण खगोलीय जानकारी इस पूरे विकास की देता है |
दूसरा, पुराण कहीं भी ईश्वरीय शक्ती को आधार मान कर सौर्यमंडल की उत्पत्ति की चर्चा नहीं करता , क्यूंकि सारे पुराण यह मानते हैं कि सौर्यमंडल का विकास प्राकृतिक तरीके से हुआ है, जिसमें हज़ारो लाखो वर्ष लगे हैं | ईश्वर शक्ति से होता तो एक दिन में हो जाता |
यहाँ तक तो है , और यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि दुर्गासप्तशती का पाठ पूरे हिन्दू समाज में होता है ; और इसके पहले अध्याय में ही यह बताया गया है कि ईश्वर श्री विष्णु ह्जारो वर्ष तक मधु और कैटभ से लड़ते रहे और हरा नहीं पाए |
सन्देश साफ़ है ,
पुराण सौर्यमंडल के विकास को प्राकृतिक मानता है | हाँ ठगाई के लिए अभी भी लोग ‘असामाजिक’ बात बता सकते हैं, कि मधु-कैटभ को आशीर्वाद प्राप्त था |
वैसे भी एक बात तो गाँठ बंद लेनी चाहीये :-
सनातन धर्म का एक अटूट नियम :
[जो संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु बताते नहीं , नहीं तो शोषण समाप्त हो जाएगा ]
व्यक्तिगत समस्या के लिए ::>> ईश्वर है, सहायता भी करता है !
सामाजिक समस्या ::>> मानव ही सहायता कर सकता है, ईश्वर नहीं !
इसीलिये जब सामाजिक समस्या अधिक हो जाती है, तो ईश्वर मानव रूप में अवतरित होते हैं,
और बिना अलोकिक शक्ति का प्रयोग करके ....
धर्म स्थापित करते है....यानी की समाज में जीने का ज्ञान देते हैं !
वेद , जो समाज में जीने का ज्ञान है....सिर्फ उद्धारण से समझाते हैं....!
लकिन इसको समझने के लिए रामायण, महाभारत को वास्तविक इतिहास अपने प्रभु का मानना होगा,.....
ना कि कथा....जिसको अलोकिक/चमत्कारिक शक्ति से लाद दिया है...!
तो, क्या यह भी निष्कर्ष नहीं निकल रहा, कि हमारे ईश्वर उतने शक्तिशाली नहीं हैं |
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सौर्यमंडल के बनने के पश्च्यात जो क्रम पुराणों से मिलता है,
वोह इस प्रकार है :::
१.शुरू में पृथ्वी जल मग्न रही हज़ारो, लाखो वर्ष तक ,
२. इसके बाद चन्द्र ने अपनी धुरी सूर्य के सन्दर्भ में बदलनी शुरू कर दी..जो की आज के समय से अलग थी, अनियमित थी..
3. इसके चलते जल में लहर बनी, पृथ्वी में अनेक भूकंप, ज्वालामुखी फूटे. और यह क्रम भी लाखो वर्षो तक चलता रहा
४. अनेक जगह पहाड़, निकल आए, कुछ पृथ्वी अब जल मग्न नहीं थी !
५. अब पेड़-पौधे हरियाली पनपने लगी, फिर जीव जन्तु, पक्षी -पशु | यही शुरू की श्रृष्टि थी जिसमें तबतक मानव नहीं था | यह बढ़ती गयी, और फिर बहुत बढ़ गयी |
६. इधर चन्द्रमा अनियंत्रित तरीके से धुरी बदलते रहता था,
और फिर ना रुकने वाली बारिश , अप्रत्याशित घटना, जिसने फिर से पृथ्वी को डुबो दिया |
७. यह चक्र शुरू के दो कल्प तक चलता रहा | तथा एक कल्प में सैंकड़ो महायुग होते हैं, जिसका उपरोक्त वर्णन है |
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पुराणों के अनुसार,
चुकी पिछले दो कल्पों, जिसका उल्लेख उपर है, में श्रृष्टि का मनोवांछित विकास नहीं हो पाया,
इसलिए
अब तीसरे कल्प के लिए दक्ष को श्रृष्टि का प्रभारी बना कर ब्रह्मा जी ने भेजा !
इधर कुछ पहाड़ भी पनपे, हिमालय तब छोटे थे, लकिन उत्पन हो गए थे |
अब पनपती हुई श्रृष्टि में मानव भी थे ; परन्तु संघार के देवता शिव अभी भी श्रृष्टि-यज्ञ के अंग नहीं थे, उनका सहयोग नहीं लिया जा रहा था, इसलिए श्रृष्टि को ‘सति’ होना पड़ रहा था , यानि की प्रलय प्राकृतिक विपदा के रूप में आती और सब समाप्त हो जाता |
तभी ईश्वर शिव की कृपा कहीये, या प्राकृतिक विकास जिसका हर उत्तर संभव नहीं है, के कारण चन्द्रमाँ नियंत्रित तरीके से सूर्य के सन्दर्भ में अपनी धुरी बदलने लगा | लकिन चन्द्रमा के इस बदलाव के कारण प्राकृतिक विपदा और बाढ़ से फिर श्रृष्टि ‘’सति’’ हो गयी |
इसके बाद पृथ्वी का अभूतपूर्ण विकास हुआ | हिमालय पूरी तरह से पनप कर ऊचे पहाड़ हो गए |
अब पार्वती का शिव से विवाह होना था |
ॐ नमह शिवाय ! जय माँ पार्वती !
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