Friday, February 5, 2016

क्या है हमारी संस्कृति ? पिछले ५००० वर्षो का इतिहास तो गौरवपूर्ण है नहीं

आज सबलोग मान रहे हैं की समाज गलत दिशा में जा रहा है, अश्लीलता और अभ्रद्र व्यवाहर समाज में बढ़ रहा है | समाज को बर्बाद भी कर देगा; दिशाहीन हो गया है समाज | उसको अपनी संस्कृति से परिचय कराना आवश्यक है | परन्तु कुछ प्रश्नों का सही उत्तर के बिना हम आगे भी नहीं बढ़ सकते |
क्या गुलामी के ठहराव को हम अपनी संस्कृति मान लें ?

क्या गुलामी से पूर्व, और मुसलमानों के आने से पहले तक को हम अपनी संस्कृति मान लें...?
ऐसे अनेक प्रश्न हैं जिनके उत्तर आपको चाहीये, क्यूंकि इतिहास तो इस समय का पूरा पता है, प्रमाण भी उपलध हैं, इसलिए झूट से बाहर निकलीये, और समाज को सही दिशा दीजिये, तभी आप विश्व गुरु बनेंगे, अपनी संस्कृति को समाज तक पहुचा पायेंगे|
जब, जब बाल विवाह मजबूरन शुरू करना पड़ा, क्यूंकि मुसलमान शासक जबरदस्ती अविवाहित कन्याओं को उठा ले जाते थे...?
बाल विवाह के कारण कम उम्र की कन्या जो किसी कारण विधवा हो जाती थी, और शोषण के अतिरिक्त कोइ पुनर्वास संभव नहीं था, उनके लिए, उस समय, सति प्रथा सख्ती से लागू करी गयी...?

और भी गुलामी के समय के उद्धारण दिए जा सकते हैं, जिनको मजबूरन ठहराव तो माना जा सकता है, संस्कृति नहीं !

लकिन विकास तबभी था, क्यूंकि उद्यमिता(Entrepreneurship, उद्यमवृत्ति) तो भारतीयों में कूट कूट कर भरी हुई है,

वोह बात अलग है, की विकास का लाभ व्यापारियों को था, कर वसूलने वाले ठेकेदारों को था, जमींदारों को था, राजा, रजवाडो को था, उच्च पढ़ पर आसीन धर्मगुरूओ को था;
बाकी दरिद्रता थी, शोषण था, दासता थी|
क्या गुलामी से पूर्व, और मुसलमानों के आने से पहले तक को हम अपनी संस्कृति मान लें...?
महाभारत के पश्च्यात और मुसलमानों के आने तक भारत में छोटे छोटे हिन्दू राजा थे, आपस में कलह थी, कलेश था, मारकाट थी, लकिन विकास भी था,
वोह बात अलग है की विकास का लाभ कभी भी समाज तक नहीं पहुंचा, क्यूंकि ..

शिक्षा हमारी गुरुकुल थी, जो हमें आचार्य द्रोण से विरासत में मिली थी, और क्यूंकि, 

विष्णु अवतार श्री कृष्ण को अनेक समस्याओं से झूझना पड़ा, समाज की दिशा बदलने के लिए,
और अत्यंत आधुनिक समाज की दिशा बदलने के लिए, चुकी वे अलोकिक शक्ति का प्रयोग तो कर नहीं सकते थे, इसलिए बहुत सारी समस्याओं पर वोह कुछ नहीं कर पाय, जिसके प्रमाण उपलब्ध हैं,

गुरुकुल शिक्षा में सुधार ना कर पाना.... या...
पूरी तरह से निरस्त करके नई शिक्षा प्रणाली ना ला सकना,...
भी एक महत्वपूर्ण गंभीर असफलता थी श्री कृष्ण की, क्यूंकि समय ही नहीं मिला ...

महाभारत के समय धर्म के एक मुखिया, गुरु द्रोण को युधिष्टिर और विष्णु अवतार श्री कृष्ण ने अत्यंत गन्दी मौत दी, ताकि यह सन्देश तो भविष्य के समाज तक पहुच सके की शिक्षा और धर्मगुरु, दोनों ही भ्रष्ट हो चुके हैं, लकिन इससे आगे कुछ नहीं कर पाए |

लकिन संस्कृत विद्वानों ने और धर्मगुरूओ ने गुरु द्रोण को समाज के सामने वेद-ज्ञाता बना कर प्रस्तुत करा ताकि शोषण हो सके, गुरुकुल शिक्षा हटे ना और समाज शोषित होता रहे |
और भी अनेक समस्या थी, जिनके प्रमाण उपलब्ध हैं,....लकिन आपलोग कुछ पूछते नहीं...!

फिर भी यह नहीं कहा जा सकता की इसे हम अपनी संस्कृति नहीं मानेंगे..क्यूंकि यह इतिहास गौरवपूर्ण नहीं है...!
यह बात अलग है की हमारी संस्कृति गौरवपूर्ण नहीं थी,
विकास का आर्थिक लाभ कभी भी मुख्य समाज तक नहीं पहुंचा !
ध्यान रहे, कुछ बीच के छोटे छोटे समय को छोड़ कर, विकास का लाभ कभी भी , पिछले पांच हज़ार वर्षो में मुख्य समाज तक नहीं पंहुचा |

विकास का लाभ व्यापारियों को था, कर वसूलने वाले ठेकेदारों को था, जमींदारों को था, राजा, रजवाडो को था, उच्च पढ़ पर आसीन धर्मगुरूओ को था| 
मुख्य समाज का शोषण बहुत अधिक था, चुकी शिक्षा हमारी गुरुकुल थी, जो इस बात को प्रोहित्साहित करती थी|

समस्या यह है की भावनात्मक तरीके से हम सबको सारी गलत बाते बताई जा रही हैं, और यदि भौतिक इतिहास और प्रमाण इसके ठीक विपरीत हो, तो परिणाम तो दुखद होगा, और यही होता रहा है, कम से कम पिछले ५००० वर्षो में |

सनातन धर्म अकेला ऐसा धर्म है, जो सुर और असुर दोनों को स्वीकारता है, दोनों में तालमेल बनाने से ही आगे बढ़ा जा सकता है, यह बताता है | विकास यदि सुर है, आधुनिकरण(जिसमें अश्लीलता और अभ्रद्र व्यवाहर भी शामिल है) असुर, तो इसका सामंजस्य समय के साथ बदलता रहता है | जो सामंजस्य कल था, आज नहीं हो सकता | 

जब आधुनिकरण अधिक हो जैसा की रामायण और महाभारत के समय में तो सामंजस्य नहीं भी बन पाता | समाज दिशा हीन हो जाता है, और धर्मगुरु ऐसे समाज को पतन की और ले जाते हैं| तब अवतार अवतरित होते हैं |

तो मजेदार बात तो यह है की संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु ऐसी कोइ बात बता ही नहीं रहे; टीवी सीरियल अनेक रूप और शकल के असुर, माँ दुर्गा से लड़ते हुए दिखा देते हैं, और हम सब ‘जय माता दी’ कहकर अपना धर्म पूरा हुआ, मान लेते हैं |

लकिन सत्य तो यही है की विकास और आधुनिकरण के बीच में सामंजस्य समाज और धर्मगुरूओ को बनाना है, यह स्वीकार करके की सनातन धर्म ठहराव का समर्थक नहीं है, जो नहीं हो रहा है, और यही हमारी संस्कृति, धर्म बताता है |

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