Saturday, February 20, 2016

कृष्ण असमाजिक और स्वार्थी रणछोड़ नहीं थे मथुरा त्यागा था समाज हित में

ईश्वर कभी भी अवतरित होकर अलोकिक शक्ति का प्रयोग नहीं करते, क्यूंकि मानव के पास तो यह शक्ति है नहीं; 
तो 
ईश्वर मानव को क्या दिशा देंगे, क्या शिक्षा देंगे, अलोकिक शक्ति का प्रयोग करके ?

परन्तु यह अवश्य है की ईश्वर के सारे कर्म एकदम सही होते हैं, तो क्या कर्म करना है, क्या निर्णय कब लेना है, इसके लिए वे ईश्वरिये शक्ति का प्रयोग अवश्य करते हैं |
यह भी एक कारण है की वे अवतार कहलाते हैं |

बचपन से सुनता आ रहा हूँ की श्री कृष्ण रणछोड़ थे, यानि की रणभूमि में शत्रु का सामना न करके, रणभूमि छोड़ कर चले जाना | मुझे यह सुनना कभी भी अच्छा नहीं लगा , क्यूंकि मेरे लिए तो श्री कृष्ण ईश्वर हैं, और इसलिए अनेक प्रश्न मेरे मन में उठते थे ;
जैसे की:-

1) क्या कारण है की श्री कृष्ण अपने माता पिता तक को मथुरा छोड़ कर द्वारिका चले गए, और अगर मथुरा इतना असुरक्षित था, तो उन्होंने तो मानव का दईत्व भी नहीं निभाया, ईश्वर की बात तो दूर, क्यूंकि एक सामान्य मानव से भी यह उम्मीद करी जाती है की वोह अपने माता पिता, परिवार की सुरक्षा के बारे में पहले सोचेगा, फिर वोह अपने भावी निर्णय लेगा |
2) महाभारत के समय का इतिहास बताता है की मथुरा, श्री कृष्ण से पूर्व, और उसके बाद भी एक शक्तिशाली राज्य था, जिसमें अंदरूनी तख्ता पलट तो हुआ, लकिन बाहरी दवाव कोइ विशेष नहीं था | मथुरा द्वारिका बनने से पहले और बाद में एक सुरक्षित राज्य था, श्री कृष्ण कमजोर रणछोड़ नहीं थे, हाँ धर्मगुरु और संस्कृत विद्वान की यह टेढ़ी चाल है, समाज के शोषण हेतु |

अनेक कथा है इस बात को लेकर की श्री कृष्ण रणछोड़ क्यूँ कहलाते हैं, लकिन सबका निष्कर्ष एक ही है, यह एक रणनीति थी; कुछ लोगो का यह भी मानना है की मथुरा पर कंस वध के कारण अनेक आक्रमण हो रहे थे, लकिन यह बात स्वीकार नहीं हो सकती क्यूंकि वही इतिहास यह भी बताता है की जरासंघ १७ बार कृष्ण से हारा, और इसके बाद ही श्री कृष्ण ने रणछोड़ की नीति का प्रयोग करा |

ईश्वर कृष्ण अधर्म की स्थापना तो करने आए नहीं थे, की युद्ध जीतने के बाद जरासंघ को बार बार छोड़ देंगे, इसलिए यह सब तो सोची हुई कहानी लगती है | यह अवश्य संभव है कि जरासंघ ने कंस वध उपरान्त एक बार आक्रमण करा हो, और उपयुक्त उत्तर मिलने के बाद वोह शांत हो गया |
तो यह बात तो बेकार है की श्री कृष्ण रणछोड़ थे | द्वारिका बसाने के कारण कुछ और ही थे |

आपका भी उत्तरदायित्व है बालहट छोड़ कर महाभारत समझें | सोचीये आजतक आपने महाभारत जैसी प्रथम विश्व युद्ध की गाथा, किन कारणों से युद्ध हुआ, यह समझे बिना भावनात्मक तरीके से समझ ली, ठीक उसी तरह से जैसे की एक तीन साल के शिशु को कहानी सुनाई जाती है | 

बच्चे को बेवकूफ बना कर कुछ खिलाने, पिलाने या सुलाने के लिए ऐसे मजेदार बे सिर-पैर की कहानी सुनाई जाती है, और आपको शोषण और गुलाम बना कर रखने के लिए |

सत्य तो यह है की बलराम एक शिक्षित मानव खेती विशेषज्ञ थे, और मथुरा कंस के समय से ही जैविक विज्ञान, जेनेटिक इंजीनियरिंग और मानव क्लोनिंग का केंद्र बन गया था | लोग इसी कारण फलफूल रहे थे | संभव नहीं है एक पोस्ट के अधिकाँश भाग को इस पोस्ट में भी प्रस्तुत करना, इसलिए आप सबसे अनुरोध है की नीचे लिंक दी हुई पोस्ट को भी साथ में पढ़ें |
बलराम जिनको हलधर भी कहते हैं, एक सुसज्जित मानव खेती विशेषज्ञ , link: http://awara32.blogspot.com/2013/10/blog-post_3.html

ईश्वरिये शक्ति के कारण श्री कृष्ण को पता था की द्वारिका, जो की तब एक निर्जन टापू था, छोटा सा, वोह भी समुन्द्र के अंदर, वोह दुबारा महाभारत युद्ध के रसायनिक, और अन्य दुश्यपरिनामो के कारण वापस सुमुन्द्र में समा जाएगा | सत्य तो यह है की सुर और असुर से सम्बंधित विज्ञान को समझे बिना किसी भी पुराणिक इतिहास का सही अर्थ नहीं समझ में आएगा , और इसके लिए ढोंग और पाखण्ड की आवश्यकता नहीं है, सूचना और सूचना के प्रयोग की आवश्यकता है, जो हो नहीं रहा है, विरोध तक हो रहा है, क्यूंकि समाज तक सही सूचना नहीं पहुचानी है |

श्री कृष्ण भगवान् के अवतार थे, जो मानव को सही पहचान दिलाने आए थे, समाज में असुरीये शक्ति का बोलबाला था, धर्म का पूरा दुरूपयोग हो रहा था, आचार्य द्रोण जिसमे प्रमुख थे, उन सबसे निबटना था | समस्या और भी गंभीर इसलिए थी की यदुवंश फलफूल रहा था, जेनिटिक इंजीनियरिंग और मानव क्लोनिंग के कारण, और श्री कृष्ण इसके विरोधी थे; वे चाहते थे की मानव की पहचान हमेशा की तरह प्राकृतिक हो, शिशु माँ के गर्भ से जन्म ले, ना की खेती से आए |

तो श्री कृष्ण ने सब की सहमती से समस्त मानव खेती से सम्बंधित, आधुनिक प्रयोगशाला और तकनीक का केंद्र द्वारिका बना दिया | महाभारत युद्ध के उपरान्त उनसब की आवश्यकता समाप्त होगई, लोग बागी तक हो गए, और अंत मैं समस्त विज्ञान के साथ द्वारिका डूब गयी |
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