Monday, January 5, 2015

विभीषण अमर हैं, अर्थ मानव मॉस खाने वाले राक्षस प्रलय तक पृथ्वी पर रहेंगे

राक्षस उसको कहते हैं जो मानव मॉस खाते हैं, उनको भी जो मानव बलि चढाते हैं | मानव होने के नाते मुझे उनलोगों के बारे मैं सोचना भी अच्छा नहीं लगता जो मानव मॉस खाते हैं, और यह प्रश्न भी अनेक बार मेरे मन मैं उठता है कि आखिर क्यूँ इश्वर ने अवतरित होने के पश्च्यात इनका सर्वनाश नहीं करा, मौका मिलने पर इनको समाप्त नहीं करा ?
पहले तो यह समझ लेतेहैं की सतयुग के आरम्भ से ही राक्षस आए कहाँ से, फिर समझेंगे कि इश्वर को उनके साथ इतनी सहानभूती क्यूँ है | विभीषण अमर हैं, इसका स्पष्ट अर्थ हुआ कि राक्षस जाति कलियुग के अंत तक पृथ्वी पर रहने वाली है |
विभीषण अमर हैं, इसका यह अर्थ कदापि नहीं हुआ कि विभीषण त्रेतायुग से अब तक जीवित हैं, राक्षसों के राजा हैं; इसका सूचना युग मैं, शोषण-रहित अर्थ है कि राक्षस जाति कलयुग के अंत तक जीवित रहेगी |

कलयुग के अंत मैं मनुष्यों द्वारा फैले हुए प्रदुषण, प्रकृती की सम्पदा का पूर्ण उपभोग और समाप्ति, तथा अन्य सम्बंधित समस्याओं के कारण पृत्वी जलमग्न हो जाती है और कलयुग और नए महायुग के सतयुग के बीच का अंतराल आरम्भ हो जाता है| पूरे विश्व से जिन जिन के पास समुन्द्र मैं रहने के लिए नौकाओ की व्यवस्था हो सकेगी, वे नौकाओ पर पानी के प्रकोप से बचने के लिए चले जायेंगे| पृथ्वी के जलमग्न होने के कारण, खाने पीने की समस्या हो जायेगी| यह सिलसिला लाखो वर्ष का है, उसमें कुछ लोग दूसरी नौकाओ के मानवो को लूटने और मार के खाने लगेगें| जो लोग मानव मॉस खाने लगे उनको राक्षस कहा जाने लगा , और इस तरह से यह जाति सतयुग मैं भी पहुच गयी | विस्तार के लिए पढ़ें: कलयुग का अंत..एक नए कल्प का प्रारम्भ और मत्स्य अवतार

वैसे जो धर्मगुरुओं ने बताया है, उसे छोड़ दीजिये, स्वंम पुराण बताते हैं, सतयुग चुकी प्रारंभिक युग था, इसलिए अधिकाँश समय अनेक समस्या रही और सतयुग मैं राक्षसों का पूरे विश्व मैं राज्य भी रहा है , जिसमें से हिरनाकश्यप और बाली प्रधान थे| तो मानव की सतयुग मैं जीने की कहानी करुनामय है |

वामन अवतार ने छल से बाली से समझोता कर लिया कि राक्षस पातळलोक मैं रह सकते हैं| त्रेता युग के राक्षस, रावण को यह नहीं भाया, उसने लंका पर कब्ज़ा कर लिया, अपने चचेरे भाई, लंका के राजा कुबेर को हरा कर, और उस कुबेर को जो अपने चचेरे भाईयों से प्रेम करता था, परन्तु राक्षस नहीं था| संभव है रावण ने धोके से कुबेर को हराया हो, क्यूँकी रावण वीर तो था नहीं |

श्री राम से युद्ध मैं रावण की मृत्यु के पश्च्यात विभीषण लंका के राजा बने और कुछ समय पश्च्यात पातळलोक चले गए, क्यूँकी यही समझोता मानव और राक्षसों के बीच मैं था, जिसे रावण ने धोके से तोडा था |

पातळ लोक क्या है? यदी आप विश्व का नक्षा देखे तो आप पायेंगे कि देशान्तर 30° से 120° पूर्व मैं एशिया, अफ्रीका का अधिकाँश भाग और कुछ ऑस्ट्रेलिया आ जाता है | यही पहले पृथ्वीलोक कहलाता था, तथा ठीक उसके उल्टी तरफ पलटने पर देशान्तर 30° से 120° पश्चिम मैं उत्तर और दक्षिण अमेरिका है, और यही पातळ लोक है, जिसका उल्लेख पुराणों मैं है |

क्या प्रमाण है कि जो कहा जा रहा है वोह सत्य है ? 

सूचना युग मैं दुसरे की बात नहीं मानी जाती, नहीं तो शोषण की संभावना है, आप स्वंम गूगल मैं अंग्रेज़ी मैं ढूंढे, यह लिख कर:-
Were Native Americans cannibals?
Were Native South Americans cannibals?

Cannibals का अर्थ होता है, मानव का मॉस खाने वाले | पुराण मैं कही कोइ गलत बात नहीं है, नियत मैं खोट है तो संस्कृत विद्वानों की और धर्मगुरुओ की, जो महत्वपूर्ण सूचना समाज तक नहीं पहुचने देते|

यह भी सत्य है कि मानव मॉस खाने का सिलसिला बहुत कम हो गया है, लकिन है अभी भी |

शुरू मैं एक प्रश्न यह भी था कि इश्वर ने राक्षसों का सर्वनाश क्यूँ नहीं करा , उनको पृथ्वी पर एकदम अलग जगह क्यूँ दिलादी ताकी वे पनप सकें?

मेरे विचार से श्रृष्टि मैं हर कोइ एक दोसरे का अनुपूरक या समपूरक है; मानव पूरी प्रकृति की सम्पदा का भोग व् उपभोग करता है, तो इश्वर के लिए मानव मॉस खाने वाले मानव कोइ बहुत असामान्य बात नहीं है | तबभी मुख्य मानव समुदाय से इश्वर ने वामन अवतार मैं राक्षस को अलग अवश्य कर दिया ताकि मानव श्रृष्टि के विकास का नेत्रित्व कर सके | लकिन क्या कभी ऐसा हुआ ?

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ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.