हिन्दू समाज जो की वैसे भी सिमटता और सिकुड़ता जा रहा है, उसको और कमजोर करने की नई साजिश शुरू हो गयी है | साईं पूजा को अधार्मिक बताया जा रहा है, और वोह भी शंकराचार्य द्वारा !
पहले तो यह समझ लें कि यह विवाद गलत मोड़ पर पहुच चूका है| समाज को और विभाजित करने का षड्यंत्र के अतिरिक्त कुछ नहीं है यह |
साई भक्तो को शुद्धिकरण करना होगा, यह सब बाते निराधार हैं, समाज को कमजोर करके राजनीति से प्ररित यह सब वक्तव्य लगते हैं |
साई भक्ति का विरोध तो इस ब्लॉग ने भी करा था, लकिन उसका कारण था, आजादी के बाद धर्म का बढ़ता हुआ, भावनात्मक भाग, जो की नहीं होना चाहिए; परन्तु इसके लिए सनातन धर्म के धर्मगुरु ही अधिकतर जिम्मेदार है, ना की साई पूजा | हाँ यह आवश्यक है की साई पूजा ने सिर्फ धर्म के भावनात्मक भाग को बढ़ाया है और कोइ योगदान नहीं है, जो नकारात्मक है| लकिन उसके समाधान हैं, और विवाद जिस तरह से गलत मोड़ पर पहुच गया है, समाधान साई भक्तो को ही निकालना होगा |
सत्य तो यह है की धर्मगुरुओ ने अपनी दुकाने चलाने के लिए धर्म का भावनात्मक भाग आजादी के बाद जबरदस्त बढ़ाया, और इसी कारण साई भक्ती को भी बढ़ावा मिला | तो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से साई भक्ति के लिए सनातन धर्म के धर्मगुरु जिम्मेदार हैं, और इस दुकानदारी मैं साई-मंदिरों की बढ़ती हुई हिस्सेदारी अब उन्हें रास नहीं आ रही है ; और यही कारण है इस विवाद का |
समाधान : सनातन धर्म के धर्मगुरुजानो ने आजादी के बाद अपराधिक इरादे से धर्म का भावनात्मक भाग जो की(आजादी से पहले के) गुलामी के कारण वैसे ही खतरनाक स्थिति पर था, उसे आजादी के बाद और बढ़ा दिया, ताकी धंदा आराम से चल सके, और समाज पूरी तरह से कर्महीन हो कर उनके वश मैं रहे | धर्म के भावनात्मक भाग और कर्मठ भाग का अनुपात ही समाज को कर्मठ या कर्महीन बना सकता है, विशेषकर जो धार्मिक समाज है, जैसे हिन्दू समाज, और मात्र सनातन धर्म मैं ही ऐसा प्रावधान है, और दुनिया के किसी धर्म मैं नहीं है, और इसी लचीलेपन के कारण ही सनातन धर्म इतना प्राचीन है|
तो तुरंत भावनात्मक भाग धर्म से कम करने का प्रयास शुरू करें, और इसमें साई भक्त भी सहायता करें , बस यही एक समाधान है|
अब भावनात्मक भाग कम कैसे होगा, उसका उपाय तो इनको मालूम होना चाहिए , लकिन चुकी ज्यादातर धर्मगुरु कम ज्ञानी हैं, और धंधा कैसे करना है उसके अतिरिक्त कोइ ज्ञान नहीं है, तो उनको सनाताबं धर्म के इस लचीलेपन के बारे मैं नीचे बता देते हैं :
१००० वर्ष की गुलामी मैं हिन्दू संतो ने धार्मिक शिक्षा का भावनात्मक भाग जबरदस्त बढ़ा दिया था, ताकि सर झुका कर ही सही, हिन्दू समाज धर्म परिवर्तन से बच सके |
आजादी के बाद, ताकी धार्मिक प्रवचन और शिक्षा से जुड़े लोग शक्ति, धन और राजनीतिग्य शक्ति का आनंद ले सकें, जो भी धार्मिक शिक्षा मैं थोडा बहुत बचा हुआ कार्मिक भाग था, वोह भी समाप्त कर दिया गया, क्यूँकी भावनात्मक समाज का शोषण आसान है |
और यही कारण है की हिन्दू समाज और जीता जागता उद्धारण यह है की हिन्दुस्तान मैं ९८% लोग भ्रष्ट नहीं है, मात्र २% लोग भ्रष्ट हैं, और वे भी पब्लिक और जनता के सामने भ्रष्टाचार समाप्त करने का वादा करते हैं, लकिन आजादी के ६५ वर्षो मैं भ्रष्टाचार बढ़ता ही जा रहा है |
सनातन धर्म में आवश्यक प्राविधान है , भावनात्मक भाग और कर्मठ भाग कम ज्यादा करने के लिए जो बहुत आसान है, और इस प्रकार है:
सनातन धर्म मैं अवतार का स्वरुप, कम विकसित और अशिक्षित समाज के लिए, अलोकिक शक्ती की चादर के साथ होता है, जैसा की आजादी से पहले था |
और
विकसित , शिक्षित समाज के लिए, बिना अलोकिक शक्ती और चमत्कारिक शक्ती के , जैसा की आजादी के बाद के समाज के साथ होना था, परन्तु नहीं हुआ|
उद्धारण:यदी आप रामायण बिना बिना अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति के समझेंगे तो आप पायेंगे की श्री विष्णु का राम अवतार का उद्देश इस प्रकार था :-
1. स्त्रियों पर विभिन् प्रकार के अत्याचारों को समाप्त करना, तथा अग्नि परीक्षा जैसा असामाजिक शोषण, जिसको धार्मिक मान्यता भी प्राप्त थी उसे अधर्म घोषित करना!
2. कमजोर वर्ग को सामान्य अधिकार समाज में दिलाना ! वानर नई प्रजाति थी जो सतयुग में प्राकर्तिक विकास से उत्पन्न होई थी, और जिनके पूँछ थी ! वानर जाती को मनुष्य समाज ने तथा समस्त राज्यों ने मनुष्य मानने तक से इनकार कर रखा था, और उनके साथ जानवर जैसा दुर्व्यवहार होता था !
3. एक ऐसे राज्य की स्थापना करना जिसमें किसी तरह का अत्याचार न हो, समाज में धन, जाती, या उत्पत्ति के नाम पर कोइ भेद भाव न हो, तथा निष्पक्ष न्याय हो ! इसी राज्य को हमसब राम राज्य के नाम से भी जानते हैं
ध्यान रहे आप प्रमुख्य उद्देश बिना अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति के ही समझ सकते हैं|
कर्महीनता हटाईये, रामायण और माहाभारत, आपके इश्वर विष्णु अवतार के गौरवपूर्ण इतिहास है, उसे समझिये......समाज मैं सुधार लाईये !
और भी अतिरिक्त तरीके हैं , कर्महीनता को हटाने के , लकिन यह प्रमुख है, पहले इसका शुभ आरम्भ हो तो बाकी पर भी चर्चा हो जायेगी |
नीचे की लिंक खोल कर यह भी पढीये और जानिये कि क्यूँ और कैसे गुलामी के समय के महान संतो ने धर्म का भावनात्मक भाग बढ़ाया था :
आवश्यकता है हिंदुओं की मानसिकता बदलने की, ताकी वो बदलाव और सुधार ला सकेंहिंदुओं का भौतिक धर्म गुलामी के समय कैसे घटाया गया
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