इश्वर शिव जो की पूर्ण वैरागी हैं, क्रोधित नहीं होते और क्रोधित हो कर तीसरी नेत्र नहीं खोलते; तीसरी नेत्र समाज हित मैं ही खुलती है|
भारत मैं एक अत्यंत शर्मनाक वर्ग है, जिसको संस्कृत विद्वान कहते हैं, जो विद्या और धार्मिक ज्ञान का दुरूपयोग इसलिए करते हैं कि हिन्दू समाज का शोषण हो सके |
उन्ही के भाई-बंधू जो धर्मगुरु हैं, समाज की ठगाई कर सके | और सही सूचना समाज तक ना पहुचे, उसके लिए शिक्षा का दुरूपयोग करते हैं |
सनातन धर्म सबसे प्राचीन धर्म है, और चुकी यह वर्तमान समाज केन्द्रित धर्म है, तो इसमें गलत सूचनाओं के कारण स्तिथी कष्टदायक भी हो जाती है | यह भी सत्य है कि सूचना समाज को धर्मगुरुजनों द्वारा प्राय गलत भी मिलती रही है, और इस समय भी ऐसा ही हो रहा है|
यह पोस्ट इसलिए आवश्यक हो गयी क्यूंकि यह कुछ ऐसी सूचना है जो विज्ञानिको के पास अवश्य होनी चाहिए ताकी भविष्य के लिए नीती निर्धारित करने मैं सहायता मिले |
इस पोस्ट मैं कामदेव और उसके सतयुग के आरम्भ मैं इश्वर शिव द्वारा कामदेव के शरीर को भस्म करना, तथा द्वापर युग के अंत मैं कामदेव को फिर से शरीर प्राप्त होने पर, विज्ञानिक सूचना के परिपेक्ष मैं चर्चा करेंगे | यह भी समझेंगे की क्यूँ यह दोनों खगोलीय बिंदु हैं, जिनपर शोघ होना अति आवश्यक है, और निश्चित रूप से यह तो जानने का प्रयास करेंगे कि विज्ञानिक दृष्टिकोण से यह सूचना क्यूँ आवश्यक है |
फिर से समझ लीजिये; यह अति आवश्यक है कि हम यह समझ लें की ‘सतयुग के आरम्भ मैं इश्वर शिव द्वारा कामदेव के शरीर को भस्म करना’, एक बिंदु है, तथा ‘द्वापर युग के अंत मैं कामदेव को फिर से शरीर प्राप्त’ भी एक खगोलिक बिंदु है|
कामदेव क्या हैं?
कामदेव ‘प्रेम और कामनाओं’ के देवता हैं, जिनकी निम्लिखित विशेषताएं हैं:-
1.प्रेमासक्ती.........................Eroticism
2.वासना, आसक्ति...............Amorousness
3.विषयासक्ति, विषय भोग...Sensuality
4.लैंगिता..............................sexuality
5.कामुकता...........................lasciviousness
6.दैहिकता,.सांसारिकता........carnalism
फिर से कामदेव की विशेषताएं समझ लें, क्यूँकी प्रकृती के फैलाव के लिए यह सारी विशेषताएं अति आवश्यक है| इसके बिना ना ही पौधे उगते हैं, न कीचड बनती है, न जीवाणुओं, जीव-जंतु, मानव की उत्पत्ति होती| सनातन धर्म से सम्बंधित विज्ञान को माने तो नदी, तालाब, पहाड़, आदि के लिए भी कामदेव का सहयोग आवश्यक है |
कुछ सूचना जो की इस युग के उत्तरजीविता के लिए अति आवश्यक है, वोह जनता तक पहुचनी चाहिए|
यह तो आज सबको मालूम है कि पुराण मैं बिना तारीख के प्राचीन इतिहास है, जो की कोडित है, और कष्टदायक बात यह भी है कि किसी ने इसे समझने का तथा समझाने का प्रयास भी नहीं करा है |
यही पुराण आपको एक सूचना देते हैं कि जब लाखो साल तक कलयुग और नए महा-युग के सतयुग के बीच मैं पृथ्वी र, अर्थात शिव और पार्वती का पुन: मिलन| समय आ गया है इश्वर(शिव) का प्रकृति(माता पार्वती) से मिलन का, औजलमग्न रहती है तो इश्वर शिव समाधि मैं लींन रहते हैं, और जब नया सतयुग आता है तो शिवजी की समाधि समाप्त करना आवश्यक होजाता है, क्यूँकी यह तो सब जानते है कि शिव की समाधि मैं पृत्वी श्रृष्टि-विहीन रहती है| सतयुग का आरंभ, अथार्थ नई श्रृष्टि का आरम्भ और जिसके लिए अति अवश्ग्यक है प्रकृति का दुबारा फलना-फूलना और विस्तार तभी श्रृष्टि फलफूल सकती है|
यह भी समझ लें कि इश्वर शिव जो की पूर्ण वैरागी हैं, क्रोधित नहीं होते और क्रोधित हो कर तीसरी नेत्र नहीं खोलते; तीसरी नेत्र समाज हित मैं ही खुलती है| सिकुड़ी और सिमटी होई प्रकृति के विस्तार के लिए आवश्यक है कामदेव का पूरी पृथ्वी पर प्रकृति सम्बंधित विस्तार और फैलाव मैं सहायक होना, तथा उसके लिए आवश्यक है की कामदेव, जिसे द्वापर युग के अंत मैं सीमित करने के लिए शरीर रूपी सीमाएं देदी गयी थी, प्रकृति के विस्तार और फैलाव के लिए उसे शरीर रूपी बंधन से मुक्त करना और ताकी प्रकृति का विस्तार बिना अवरोध हो सके|
कामदेव शिव की समाधि समाप्त होने के शुभ अवसर को अपने अनोखे अंदाज़ से श्रृंगार देते हैं, सजाते हैं और प्रसन्न होकर शिव जी कामदेव को शरीर रूपी बंधन से मुक्त करते हैं {संकेत स्पष्ट है, श्रृष्टि का सतयुग मैं अभूतपूर्ण विस्तार होना है, जो सकारात्मक है, प्रसन्नता का सूचक है; और संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु शोषण हेतु बता रहे हैं कि शिव जी ने क्रुद्ध होकर कामदेव को भस्म कर दिया जो नकारात्मक है, श्रृष्टि के आरम्भ मैं इश्वर ऐसा गलत संकेत क्यूँ देंगे?}|~~~सिकुड़ी, सिमटी होई प्रकृति के विस्तार के लिए कामदेव, जो द्वापर युग के अंत मैं सीमित करदिए गएथे, प्रकृति के विस्तार बिना अवरोध हो सके, इसलिए सतयुग के आरम्भ मैं शिव द्वारा (प्रसन्न मुद्रा मैं) बंधन से मुक्त कर दिए जाते हैं !
और स्वंम विज्ञानिक ही बताते हैं कि श्रृष्टि के आरम्भ मैं अनेक विशालकाय देहवाले पशु होते हैं जो की धीरे धीरे समाप्त होते हैं| रामायण मैं ४ हाथी-दांत वाले हाथीयों का उल्लेख है, और विशाल पक्षी जट्टायूँ का भी उल्लेख है जो समाप्त हो रहे हैं|
और
इधर आज की स्थिति यह है की श्रृष्टि सिमटती जा रही है, और विज्ञानिको की माने तो श्रृष्टि के सिमटने मैं गती भी आती जारही है | परन्तु बिना पूर्ण विज्ञानिक सूचना के आधार पर विज्ञानिक कुछ कर नहीं पा रहे हैं|
समस्त सूचना पुरानो मैं है, और हिन्दू समाज का उत्तर्दाइत्व भी है कि इस सूचना को समाज को समझने लायक बना कर समाज को प्रस्तुत करी जाय|
नोट: नीचे ५ लिंक दी जा रही है, जो की इस विषय पर प्रकाश डालती हैं की प्रकृति बहुत तेजी से सिमट रही है...इसके अतिरिक्त भी अनेक लिंक मिल जायेंगी |
ॐ नम: शिवाय ! जय माता पार्वती !!
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