सनातन धर्म क्यूँकी नियमो से बंधा धर्म नहीं है, तो उसमें व्यापक लचीलापन है, और समाज की स्तिथि के अनुसार उस लचीलेपन का प्रयोग समाज सुधार और/या समाज की उनत्ती के लिए होता है | हर धार्मिक प्रवचन/शिक्षा मैं एक उचित अनुपात भावना और कर्म का होना जरुरी है, यह अनुपात समाज की वर्तमान वास्तविक स्थिथि पर निर्भर करती है|
१००० वर्ष की गुलामी मैं हिन्दू संतो ने धार्मिक शिक्षा का भावनात्मक भाग जबरदस्त बढ़ा दिया था, ताकि सर झुका कर ही सही, हिन्दू समाज धर्म परिवर्तन से बच सके |
आजादी के बाद, ताकी धार्मिक प्रवचन और शिक्षा से जुड़े लोग शक्ति, धन और राजनीतिक शक्ति का आनंद ले सकें, जो भी धार्मिक शिक्षा मैं थोडा बहुत बचा हुआ कार्मिक भाग था, वोह भी समाप्त कर दिया गया, क्यूँकी भावनात्मक समाज का शोषण आसान है, और भावनात्मक समाज से कमाई भी अच्छी हो सकती है, और बहुत अच्छी कमाई होई है| हिन्दू समाज गरीब हिता गया, और धर्म गुरु अत्यंत रईस| यह सनातन धर्म के कौन से नियम से हुआ ?
और यही कारण है की हिन्दू समाज और ज्यादा कर्महीन होगया, और वोह अपने अधिकार के लिए लड़ नहीं पा रहा है |
इसका जीता जागता उद्धारण यह है की हिन्दुस्तान मैं ९८% लोग भ्रष्ट नहीं है, मात्र २% लोग भ्रष्ट हैं, और वे भी पब्लिक और जनता के सामने भ्रष्टाचार समाप्त करने का वादा करते हैं, लकिन आजादी के ६५ वर्षो मैं भ्रष्टाचार बढ़ता ही जा रहा है |
हिन्दू समाज कर्महीन है, और कर्महीनता की लड़ाई स्वंम से शुरू होती है, यह समझ कर ही सुधार हो सकता है| जागो, आप दुबारा गुलामी की और बहुत तेजी से बढ़ रहे हो, और उसके जिम्मेदार आप स्वंम हैं, और कोइ नहीं !
कम से कम इस विषय पर तो हिम्मत दिखाओ, गलत बात का विरोध करो ! कैसे लड़ा जा सकता है कर्महीनता से?
सनातन धर्म मैं कर्म और भावना के अनुपात को धार्मिक प्रवचन और शिक्षा मैं बदलने के लिए आवश्यक प्राविधान और लचीलापन है, ताकी समाज हर समय प्रगत्ति कर सके| धर्म के नियमों के अनुसार :::
सनातन धर्म मैं अवतार का स्वरुप, कम विकसित और अशिक्षित समाज के लिए, अलोकिक शक्ती की चादर के साथ होता था, जैसा की आजादी से पहले था |
और
विकसित , शिक्षित समाज के लिए, बिना अलोकिक शक्ती और चमत्कारिक शक्ती के , जैसा की आजादी के बाद के समाज के साथ होना था, परन्तु नहीं हुआ|
उद्धारण:यदी आप रामायण बिना बिना अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति के समझेंगे तो आप पायेंगे की श्री विष्णु का राम अवतार का उद्देश इस प्रकार था ::
1. स्त्रियों पर विभिन् प्रकार के अत्याचारों को समाप्त करना, तथा अग्नि परीक्षा जैसा असामाजिक शोषण, जिसको धार्मिक मान्यता भी प्राप्त थी उसे अधर्म घोषित करना!
2. कमजोर वर्ग को सामान्य अधिकार समाज में दिलाना! वानर नई प्रजाति थी जो सतयुग में प्राकर्तिक विकास से उत्पन्न होई थी, और जिनके पूँछ थी ! वानर जाती को मनुष्य समाज ने तथा समस्त राज्यों ने मनुष्य मानने तक से इनकार कर रखा था, और उनके साथ जानवर जैसा दुर्व्यवहार होता था !
3. एक ऐसे राज्य की स्थापना करना जिसमें किसी तरह का अत्याचार न हो, समाज में धन, जाती, या उत्पत्ति के नाम पर कोइ भेद भाव न हो, तथा निष्पक्ष न्याय हो! इसी राज्य को हमसब राम राज्य के नाम से भी जानते हैं |
ध्यान रहे आप प्रमुख्य उद्देश बिना अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति के ही समझ सकते हैं| वास्तव मैं, रामायण, महाभारत में अलौकिक शक्तियाँ नहीं बल्कि वैज्ञानिक शक्तियां ही थी, जैसा आज प्रमुख राष्ट्रों के पास है|
कर्महीनता हटाईये ...
रामायण और महाभारत.....आपके इश्वर विष्णु अवतार के गौरवपूर्ण इतिहास है..उसे समझिये......समाज मैं सुधार लाईये.......
कृप्या संपर्क करें !!!
जय श्री कृष्ण ! जय श्री राम !
नीचे दो पोस्ट लिंक दी जा रही हैं ताकि हिन्दू समाज समझ सके की गुलामी मैं धार्मिक शिक्षा का कार्मिक भाग कैसे कम करा गया था, और भावनात्मक भाग कैसे बढ़ाया गया था |
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