ऋषि, महाऋषि, किसी भी विषय मैं महारथ प्राप्त करने पर व्यक्ति कहलाता था, यदि उस महारथ का सम्बन्ध श्रृष्टि और प्रकृती की सिम्रिद्धी से होता था, और मुनि, महामुनि, प्राय समाज सम्बंधित विषय के विशेषज्ञ होते थे, या ऋषि, महाऋषि, जिन्होंने सांसारिक सुख त्यागने शुरू कर दिए हों, तथा महामुनी वोह जिसने समस्त सांसारिक सुख त्याग दिए हों|
जैसा आप देखेंगे, कोइ विशेष अंतर नहीं था, दोनों मैं, और संभवत: यह भी एक कारण रहा हो, समय के साथ साथ, यह अंतर धूमिल पड़ता गया| और भी कारण हैं; प्रथम सप्तऋषी जो थे, आगे चल कर उनके नाम ब्राह्मणों के गोत्र बन गए, और वे गोत्र आज भी हैं |
गोत्र तो एक स्वाभाविक क्रमिक विकास है, परन्तु अंतर जो धूमिल पड़ गया, उसके पीछे कहीं अवसरवाद भी कारण रहा होगा| सनातन धर्म सदैव वर्तमान समाज को केंद्रबिंदु मान कर चलता है, और इसमें कोइ विशेष नियम नहीं है, इसलिए नियंत्रण और संतुलन की आवश्यकता होती ही होती है | विशेषज्ञ ही सप्तऋषि बन सकते थे, और धर्म पर नियंत्रण सप्तऋषि समिति का था, जो की स्पष्ट है की अलग अलग विषयों पर ज्ञान होने के कारण प्रभावी नियंत्रण कर सकती थी, और शक्तिशाली व्यक्ती नियंत्रण मैं रहना नहीं चाहता|
कब और कैसे यह हुआ, यह नहीं मालूम; लकिन धीरे धीरे ऋषी और मुनी मैं अंतर धूमिल हो गया, और बाद मैं परिभाषाओं का भी मंदन हो गया| नियंत्रण ही समाप्त हो गया, और पुराणों मैं उल्लेख हो गया कि सप्तऋषी अमर हैं, धर्म की रक्षा का दईत्व हर युग मैं संभालते हैं |
और जब से सप्तऋषी को अमर घोषित करा गया, नियंत्रण और संतुलन ही समाप्त हो गया|
यह जो उपर उल्लेख करा गया है, वोह इस युग की बात नहीं हो रही है, क्यूँकी यह युग तो महाभारत युग के बाद आरम्भ हुआ, और करीब करीब सम्पूर्ण विनाश के बाद, बहुत धीरे धीरे इस स्तिथी मैं आया है, बात हो रही है, और युगों की|
वाल्मिकी रामायण से ऐसा नहीं लगता की सप्तऋषी समिती थी, और राम-राज्य स्तापित होने के बाद का भी ऐसा कोइ उल्लेख नहीं है, लकिन , अनेक पुराण मैं , अनेक सप्तऋषियों के नाम हैं; लिंक: Saptarishi
यह भी सत्य है, की महाभारत से पहले धर्म की स्तिथी इतनी बिगड़ गयी थी, की कोइ भी नियंत्रण समिती होना संभव नहीं था| परन्तु ऋषि और मुनी का अंतर तब तक परिभाषित था|
पराषर, महामुनी थे, अथार्त वे सारे भौतिक सुख त्याग चुके थे| उन्होंने ज्योतिष के अभूतपूर्व ज्ञान के कारण यह अनुमान लगा लिया था, की वे एक ऐसा पुत्र को जन्म दे सकते हैं, जो विश्व को ज्ञान से प्रकाशित करेगा, और उस पुत्र का संकल्पना(धारणा) किस समय होनी है, यह भी ज्योतिष गणित से हिसाब लगा लिया था | समस्या थी, तो, संसार का सारे भौतिक सुख त्यागे हुए महामुनी को, एक ऐसी कन्या की, जो इस पुत्र के जन्म मैं सहायक हो| और उस समय कन्याओं की कमी भी थी | और उन्हें मिली एक अत्यन कुरूप कन्या, जिसे मछुआरो के मुखिया ने पाला था, और जिसके शरीर से एक अजीबसी दुर्गन्ध भी आती थी| महामुनी ने सत्यवती के पिता को किसी तरह से मना लिया कन्या के उपचार के लिए, और सीमित विवाह के लिए, ताकी वे एक संतान उत्पन्न कर सकें| बाद मैं पूर्व-निर्धारित सहमती के अनुसार, उन्होंने सत्यवती को त्याग दिया|
वेद-व्यास, और यह भी कह सकते हैं, महाऋषि व्यास, जिन्होंने महाभारत की रचना करी, वे महामुनि पराषर की संतान थे|
राधे राधे..जय श्री कृष्ण |
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