शिव के बारे मैं विख्यात है कि वे वैरागी हैं और परम योगी भी | सांसारिक सुख दुःख से वे विमुख हैं | जो सहज ही कृपा कर देते हैं , और जो भी मांगो , वो दे देते हैं
हिंदू धर्म एक ऐसा धर्म है जिसमें की स्वंम भगवान विष्णु और श्रृष्टि रचेता ब्रह्मा जी की उत्पत्ति का उल्लेख है |
लकिन भगवान शिव का उत्पत्ति का कहीं कोइ उल्लेख नहीं है | ऐसी मान्यता है कि जब ब्रह्माण्ड मैं समय की उत्पत्ति होई तभी भगवान शिव की भी उत्पत्ति होई | किसी भी व्यक्ति के लिए, कुछ भी कल्पना बिना समय के संभव नहीं है |
यह हमारी सोच की सीमा से बाहर है | स्पष्ट है कि शिव का आंकलन समय को मापदंड बना कर नहीं हो सकता ; और कोइ मापदंड हमें आता नहीं है | संभवत: यही इश्वर की परिभाषा भी हो ?
शिव के बारे मैं विख्यात है कि वे वैरागी हैं और परम योगी भी | सांसारिक सुख दुःख से वे विमुख हैं | जो सहज ही कृपा कर देते हैं , और जो भी मांगो , वो दे देते हैं | परन्तु खुद समाधी मैं विलीन रहना ही उन्हें पसंद है ; अपने पास खुद कुछ नहीं रखते, यहाँ तक प्रचलित है कि भिक्षा मांग कर ही उनके भोजन की व्यस्था होती है | रहने के लिए खुद की कुटिया तक नहीं है| ऐसा नहीं की सनातन धर्म मैं यह सिर्फ कहने की बात है| धर्म को मानने वाले इस बात पर पूर्ण विश्वास रखते हैं |
फिर क्यूँ हमारे धर्म गुरु बार बार यह बताने की चेष्टा करते हैं कि इश्वर शिव का वैराग और योग मिथ्या है, और सती के देह त्यागने से वे सारा वैराग भूल कर भावनात्मक हो कर श्रृष्टि का विनाश कर देते हैं ?
ध्यान रहे सिर्फ एक बार उनके वैराग का इम्तिहान हुआ और, और पूरी तरह से असफल हो कर उन्होंने भावनात्मक हो कर श्रृष्टि का विनाश कर दिया | क्या ऐसा संभव है? यदि इश्वर शिव के वैराग मैं संदेह है, तो वैराग किसी भी मनुष्य के लिए एक मिथ्या है जिसे प्राप्त ही नहीं करा जा सकता |
कही ऐसा तो नहीं कि हिंदू समाज के अंदर का शोषणकरता और धर्म गुरु परस्पर आपस मैं मिलकर सुयुनोजित तरीके से हिंदू समाज को भावनात्मक बना कर दुबारा गुलामी की और ले जा रहे हैं ? क्या इतनी भी बात हमारे धर्म गुरु नहीं समझ सकते और जानते कि जो अनन्त काल से योगी और वैरागी है , और योग और वैराग की परिभाषा इश्वर शिव से ही आरम्भ होती है , ऐसे इश्वर शिव कभी श्रृष्टि का विनाश भावनात्मक हो कर नहीं कर सकते ? भावनात्मक हो कर कोइ भी निर्णय लेना या कार्य करने का अर्थ है कि इश्वर शिव का वैराग और योग मिथ्या था, असफल था |
नहीं ऐसा कभी नहीं हुआ है| इश्वर शिव परम योगी और वैरागी हैं , और श्रृष्टि के सुचार रूप से प्रगति मैं रुचिकर हैं | उन्होंने कभी भी कोइ निर्णय वैराग त्याग कर और भावनात्मक हो कर नहीं लिया | वे सहज कृपा अवश्य करते हैं , इसलिए नहीं की वे भावनात्मक हो जाते हैं , परन्तु इसलिए कि हमसब , और समाज के सुख और सफलता ही उनका उद्देश है , और उनकी इसीमें रुची भी है |
चुकी इस पोस्ट मैं भी यह विषय का पूरा संतोषजनक उत्तर न दिया गया, तो इस पोस्ट का उद्देश पूर्ण नहीं होगा, इसलिए अब मैं उस पोस्ट से उद्धृत कर रहा हूँ (QUOTE):
“दक्ष प्रजापति कि कथाओं से पुराण आपको यह सन्देश देना चाहते हैं कि श्रृष्टि के सकारात्मक प्रगति मैं अनेक अवरोधक आयेंगे , तथा पहले भी आए थे, तथा दक्ष प्रजापति कि कथा आपको एक ऐसे अवरोधक के बारे मैं सावधान करना चाहती है जो कि श्रृष्टि का निश्चित विनाश कर सकती है | यह भी आपको समझना होगा कि दक्ष मनुष्य नहीं हैं, क्यूंकि मनुष्य ब्रह्मलोक , विष्णुलोक का भ्रमण नहीं करते, तथा उनकी कन्या नक्षत्र नहीं होती | फिर भी यह सब कथाएँ अत्यंत ज्ञानवर्धक हैं , इसलिए इन्हें बहुत ध्यान से समझने की आवश्यकता है, तथा आस्था के परिपेक्ष मैं स्वीकार भी करना है |
“दक्ष, इश्वर शिव से द्वेष रखते हैं और अपने पद का दुरूपयोग करके वे शिव का अपमान करना चाहते हैं | दक्ष का प्रत्यक्ष उद्देश है, श्रृष्टि आगे कैसे सुचारू रूप से चले, उसके लिए शोघ तथा अन्य तरीकों से नियम प्रस्तुत करें | अपने द्वेष के कारण वे एक ऐसी श्रृष्टि का निर्माण कर देते हैं जिसका विनाश अनिवार्य नहीं है | ध्यान रहे श्रृष्टि मैं हर वस्तु , पहले उत्पन्न होती है, फिर पनपती है, फिर विनाश की और अग्रसर हो जाती है, तथा यह चक्र चलता रहता है | शिव क्यूंकि संघार के देवता हैं , और विनाश उन्ही के निमत है, इसलिए यह शिव का ईश्वरत्व समाप्त करने का षड़यंत्र था |तथा यही कारण है की रह रह कर सीरियल मैं यह दिखाया गया कि इस यज्ञ मैं शिव का भाग नहीं है, अथार्थ चुकी नव निर्मित श्रृष्टि विनाशहीन है, इसलिए शिव की इस यज्ञ मैं कोइ आवश्यकता नहीं है, न उनका कोइ भाग | इसी लिए आपको सीरियल मैं यह भी दिखाया जा रहा है कि प्रलय निकट है, सबको पता है , यहाँ तक कि नारद मुनि तक को इस विषय मैं पता है | प्रलय के बारे मैं सबको इसलिए पता है क्यूंकि इस प्रकार कि श्रृष्टि त्रिदेव को अस्वीकार है, और सबको यह समझ मैं आ रहा है कि ऐसे श्रृष्टि का विनाश अनिवार्य है, ताकि भविष्य मैं कोइ ऐसा कार्य न करे |
“श्रृष्टि का विकास हो गया था, उसको समस्त देव, इश्वर के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए दक्ष ने एक यज्ञका आयोजन करा जिसमें शिव के अतिरिक्त सबको निमंत्रित करा | ऐसी श्रृष्टि का विनाश करना है , और वह भी प्रलय से, यह शिव को भी मालूम था और जगत जननी, माता सती को भी , क्यूंकि ऐसी श्रृष्टि अस्वीकार थी | शिव दक्ष के यज्ञ मैं, सती के कारण, कोइ विग्नबाधा नहीं डालना चाहते थे | परन्तु माता सती अपना ईश्वरत्व दाइत्व निभाना चाहती थी | संभवत: वह समस्त देवगणों को यह स्पष्ट सन्देश भी देना चाहती थी की भविष्य मैं इस प्रकार के नकारात्मक प्रयास मैं उनसब का योगदान नहीं होना चाहिए |
“इश्वर का दाइत्व माया के संबंधो के आगे भारी पड़ा | उन्होंने जिद करी अपने पिता के घर जाने के लिए , और शिव के मना करने के उपरान्त भी वोह वहाँ गयी, और वहाँ शिव का भाग ना पा कर , अथार्थ विनाश-हीन श्रृष्टि के विरोध मैं अपनी देह त्याग दी | ध्यान रहे शिव का यज्ञ मैं भाग नहीं होने का अर्थ है की इस सामूहिक प्रयास मैं विनाशकारक की कोइ आवश्यकता नहीं है|
“श्रृष्टि आगे सकारात्मक हो इसलिए उस श्रृष्टि के विनाश के लिए प्रलय के अतिरिक्त कोइ विकल्प नहीं था | तथा वह प्रलय लंबी अवधी तक चली | दुबारा श्रृष्टि तब उत्पन्न होई, जब हिमालय पर्वत का विकास हो गया, और, हिंदू होने के नाते मैं यह भी पूरे विश्वास से मानता हूँ, जब शिव-पार्वती का विवाह हो गया |”(QUOTE ENDS)
स्पष्ट है सती का देह त्यागने का कारण, और उसके उपरान्त श्रृष्टि के विनाश के कारण भावनात्मक नहीं थे| फिर क्यूँ हमारे धर्म गुरु बेहिसाब प्रयास कर रहे हैं , समाज को समझाने के लिए कि इश्वर शिव का वैराग , सती के देह त्यागने की घटना को नहीं सहन कर पाया?
यह प्रश्न समाज को बार बार पूछना चाहिए| जब बात यहाँ तक देखाई दे रही है कि हमारे इश्वर शिव को भी प्रगट और अप्रगट रूप से बदनाम करा जा रहा है , और समाज को भावनात्मक बनाया जा रहा है , तो समाज के अंदर का शोषणकरता कितना शक्तिशाली हो गया है , यह आप समझ सकते हैं |
“मेरे इश्वर, शिव और सती, संसार कि श्रृष्टि के सकारात्मक प्रगति मैं सदेव रुचिकर हैं , और वचनबद्ध हैं ; तथा वे श्रृष्टि का विनाश भावनात्मक कारणों से नहीं कर सकते | इतना विश्वास तो आपको भी अपने इश्वर पर होना चाहिए, नहीं तो हिंदू समाज का शोषण समाप्त नहीं होगा | याद रहे, ऐसा घृणित कार्य तो राक्षस ही कर सकते हैं , इश्वर कदापि नहीं”
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2 comments :
http://vyakhyaa.blogspot.in/2012/09/blog-post_16.html
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