बार बार, इस बात को दुहराया जा रहा है कि जब तक हिन्दू कर्मठ नहीं होगा, समस्याओं का समाधान नहीं होने वाला |
क्या अंतर है, कर्महीन और कर्मठ में, समझते हैं :
// कर्म, भावना के अनुपात में अंतर होता है //
//The difference is in the ratio of KARM and BHAVNA //
कर्महीन में भावना/कर्म के अनुपात में, भावना का भाग अधिक होता है,
और
कर्मठ में कर्म का |
व्यवहारिक तरीके से समझते हैं..!
सबको मालूम है, युवा कर्म प्रधान होता है, और बालक भावना प्रधान !
एक छोटे बच्चे मैं और एक युवा में क्या अंतर होता है?
भावना और कर्म के अनुपात में अंतर होता है |
एक छोटे बच्चे को सिर्फ भावनात्मक बाते पसंद आयेंगी,
यदि उसको
आप एक चूहे और बिल्ली कि कहानी सुना रहे हैं (या हाथी और चीटी की !),
बालक किसकी जीत चाहेगा?
चीटी की हाथी के उपर, चूहे की बिल्ली के उपर जीत |
तो फिर जादू, चमत्कार, श्राप, वरदान का प्रयोग करीये,
और चीटी और चूहे को जीताईये,
बालक भी खुश |
तो, चीटी या चूहे को जिताने के लिए क्या करना होगा ?
कहानी में कर्म, भावना के अनुपात में ‘हेर-फेर’ करके आपने भावना का अनुपात बढ़ा दिया |
जबकी...>>>
युवा यह बात समझता है कि चीटी और हाथी में कोइ मुकाबला नहीं है, और बिल्ली का भोजन है चूहा, प्रकृति बदलती नहीं है |
युवा का स्वाभाविक झुकाव, कर्म और भावना अनुपात में, कर्म की और है,
जबकि बच्चे का भावना की और |
तो क्या संस्कृत विद्वान और धर्मगुरुओ ने हिन्दू समाज को भावनात्मक बना कर एक ‘बालक जैसा’ बना रखा है, जिसका शोषण आसानी से हो सके |
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महाभारत युद्ध के उपरान्त समाज में अफरा-तफरी मच गयी,
अर्जुन गांडीव लेकर आए, लकिन असफल रहे |
श्री कृष्ण पृथ्वी त्याग देते है, द्वारिका डूब जाती है,
और
इसके तुरंत बाद पांडव भी यह लोक छोड़ देते हैं |
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श्री विष्णु अवतार, श्री कृष्ण, काफी काम कर गए, दिशा निर्धारित कर गए , जिसको ईमानदारी से आगे बढाने का कार्य संस्कृत विद्वान और धर्मगुरूओ को करना था,
लकिन लालच और खोट के कारण उन्होंने ठीक विपरीत करा !
उन्होंने सूचना तोड़-मरोड़, के और कुछ गलत भी, इस तरह से दी कि समाज कमजोर रहे , भावनात्मक और भ्रमहित रहे, ताकि विद्वान, धर्मगुरु का वर्चस्व स्थापित रहे |
पोस्ट बहुत लम्बी हो जायेगी, अगर हम सब इस विषय में जाते हैं,
कि ...
कैसे विद्वानों ने सोच-समझ कर समाज को गुलाम बना कर रखने के लिए योजना बनाई,
और उस योजना अनुसार कार्य अभी तक चल रहा है | ब्लॉग में इस विषय पर अनेक पोस्ट उपलब्ध हैं |
जैसा कि उपर कहा गया है , कर्म/भावना के उत्पात से समाज को कर्मठ या कर्महीन बनाया जा सकता है ,
और कम से कम आजादी कि पिछले ७० वर्षो में कर्म के भाग को जानबूझ कर एक दम नहीं के बराबर कर दिया गया है,
ताकि समाज कभी भी कर्मठ ना हो सके, और हिन्दू समाज है भी अपने देश में द्वित्य श्रेणी का नागरिक |
जितने भी सीरियल टीवी पर आते हैं धर्म से सम्बंधित , सब चमत्कार को बढ़ावा दे रहे हैं |
साईं भक्ति भी चमत्कार को बढ़ावा दे रही है, पनप रही है|
जो धर्म भौतिकता, कर्म पर आधारित है,
अब चमत्कार पर टिका है ,
और यही बढ़ा-चढ़ा कर बताया जा रहा है |
तो अब करा क्या जाय, और कैसे ?
एक बात तो आपको स्पष्ट समझनी होगी ; संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु समाज को कर्मठ नहीं बनाएंगे ! कोइ अच्छी चलती हुई दूकान क्यूँ बंद करेगा ?
करना आम हिन्दू को ही होगा |
तो कृप्या इस तरह की पोस्ट , जो की कम से कम मेरे ब्लॉग में तो अनेक हैं, शेयर करें, मित्रो से भी शेयर करने को कहीये |
इसका असर बिलकुल पडेगा; कहीं किसी मोड़ पर इनको कर्म का भाग बढ़ाना पड़ेगा, भावना का कम करना पडेगा |
और भी अनेक दूरगामी लाभ होंगे, और सोशल साइट्स के कारण यह संभव भी है |
इसलिये आगे बढीये !
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