Monday, August 28, 2017

समाधान(SOLUTION); चमत्कार, कर्महीनता से हिन्दू समाज को छुटकारा कैसे मिलेगा?

Q 1. प्रश्न ...>>>
बार बार, इस बात को दुहराया जा रहा है कि जब तक हिन्दू कर्मठ नहीं होगा, समस्याओं का समाधान नहीं होने वाला |
क्या अंतर है, कर्महीन और कर्मठ में, समझते हैं, 
क्या चमत्कार, अलोकिक शक्ती कर्महीनता बढाने के लिए प्रयोग हो रही हैं ?

उत्तर:::>>>

// कर्म, भावना के अनुपात में अंतर होता है |
//The difference is in the ratio of KARM and BHAVNA //
कर्महीन में भावना/कर्म के अनुपात में, भावना का भाग अधिक होता है, और कर्मठ में कर्म का |
व्यवहारिक तरीके से समझते हैं..!

सबको मालूम है, युवा कर्म प्रधान होता है, और बालक भावना प्रधान !
एक छोटे बच्चे मैं और एक युवा में क्या अंतर होता है?
भावना और कर्म के अनुपात में अंतर होता है | 
एक छोटे बच्चे को सिर्फ भावनात्मक बाते पसंद आयेंगी, 

यदि उसको, आप एक चूहे और बिल्ली कि कहानी सुना रहे हैं (या हाथी और चीटी की !), 
बालक किसकी जीत चाहेगा?

चीटी की हाथी के उपर, चूहे की बिल्ली के उपर जीत |
तो फिर जादू, चमत्कार, श्राप, वरदान का प्रयोग करीये, 
और चीटी और चूहे को जीताईये, बालक भी खुश |

तो, चीटी या चूहे को जिताने के लिए क्या करना होगा ?

कहानी में कर्म, भावना के अनुपात में ‘हेर-फेर’ करके आपने भावना का अनुपात बढ़ा दिया |
जबकी...>>>
युवा यह बात समझता है कि चीटी और हाथी में कोइ मुकाबला नहीं है, और बिल्ली का भोजन है चूहा, प्रकृति बदलती नहीं है | 

युवा का स्वाभाविक झुकाव, कर्म और भावना अनुपात में, कर्म की और है, 
जबकि बच्चे का भावना की और | 

तो क्या संस्कृत विद्वान और धर्मगुरुओ ने हिन्दू समाज को भावनात्मक बना कर एक ‘बालक जैसा’ बना रखा है, जिसका शोषण आसानी से हो सके ?
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Q 2. अब,...प्रश्न ....>>>

हिन्दू समाज को "कर्मठ" बनाने के कार्यकर्म जो की पूरी तरह से इमानदारी पर होना चाहीये और पूरी तरह से प्रोफेशनल होना चाहीये......क्या होना है, उस प्रोफेशनल कार्यकर्म मैं ?

उत्तर.....>>>

सनातन धर्म इतना शक्तिशाली है कि कोइ अलग से कार्यकर्म की आवश्यकता नहीं है |

सिर्फ ...
*** रामयाण महाभारत को अवतरित प्रभु का वास्तविक इतिहास मानना है....जो की वोह है.....! 
*** पुराण, पुराणिक इतिहास है, जिसका आरम्भ सौर्यमण्डल और पृथ्वी की उत्पत्ति से पहले के ब्रह्माण्ड से शुरू होता है , तथा खगोलीय (ASTRONOMICAL) और भूगोलिक इतिहास पृथ्वी का है , तथा प्राचीन मानव इतिहास भी ..!और फिर से..... हर हिन्दू यह मानता है कि वोह सत्य है...!
अब जिज्ञासा ...फिर हम कर्महीन क्यूँ हैं....?

उत्तर...>>>
क्यूंकि हमारे संस्कृत विद्वानों ने और धर्मगुरुओ ने कभी भी इसको इतिहास नहीं माना...सिर्फ कहा...!
और कथा के रूप में पूजा और भक्ति के लिए इसका उपयोग करा; समाज का अंदरूनी शोषण हुआ है |

वे यह झूट बोलते हैं कि विदेशी हमारे इतिहास को मिथ्या (MYTHOLOGY) कहते हैं...और यह सफ़ेद झूट इसलिए है कि आजादी के 70 साल बाद तक किसने रोका उपरोक्त को इतिहास की तरह प्रस्तुत करने के लिए..?

किसी ने नहीं..किसी सरकार ने नहीं रोका...सिर्फ हिन्दू समाज का शोषण हो सके इसलिए कथा की तरह प्रस्तुत करा गया ....इतिहास की तरह नहीं...!

भावना और कर्म के अनुपात में अगर भावना का भाग बढ़ा दिया जाए...तो समाज कर्महीन होने लगेगा....!
और यहाँ तो पूरा कर्म का भाग निकाल दिया गया है...!

और इस सत्य से आज आप इनकार भी नहीं कर सकते, क्यूंकि हम मानते तो हैं कि रामायण, महाभारत, पुराण इतिहास है, लकिन प्रयोग भक्ति के लिए कथा के रूप में करते हैं |
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Q 3. अब प्रश्न...>>>

कथा और इतिहास में अंतर क्या है ?

उत्तर....>>>>

1. कथा में अलोकिक शक्ति , श्राप और वरदान का भरपूर प्रयोग करके रोचक , श्रद्धा और भक्ति के लिए उपयुक्त बनाया जा सकता है....!

इतिहास में किसी के पास अलोकिक शक्ति नहीं हो सकती...यह हमलोग जानते हैं, समझते भी हैं...क्यूंकि सूचना युग में रह रहे हैं...!

अवतरित ईश्वर, जैसे कि परशुराम, राम और कृष्ण ने भी कभी अलोकिक शक्ति का प्रयोग नहीं करा ..!
और अवतरित ईश्वर, जैसे कि परशुराम, राम और कृष्ण अलोकिक शक्ति का प्रयोग करेंगे भी क्यूँ....?
क्यूंकि मानव के पास तो वोह शक्ति है नहीं...!

और अवतरित ईश्वर, अत्यंत कठिन समय में, मानव को वेद का सही अर्थ समझाने आते हैं...
यानी समाज में जीने का ज्ञान, ..
उसके लिए आवश्यक है कि वे बिना अलोकिक शक्ति के उद्धारण प्रस्तुत करें...जो समाज के लिए धर्म होता है...

जो कहा जा रहा है, बिना रामायण, महाभारत और पुराण को इतिहास स्वीकार करे बिना आप समझ नहीं सकते...!

2. कथा भावना प्रधान होती है, इतिहास कर्म प्रधान !

दो वर्ष के बच्चे को बिल्ली और चूहे की लड़ाई में आनंद जब आएगा ..जब चूहा जीतेगा...!
और एक व्यक्ति को मालूम होता है कि चूहा बिल्ली का भोजन है...!
बस यही अंतर है..कथा और इतिहास में...!

3. कथा की कड़ी एक दोसरे से आवश्यक नहीं है कि जुडी हुई हों...
और इतिहास में ...आप चाहे तो आज से शुरू करके संशिप्त इतिहास 
a) अंतराल का...जिसमें मत्स्य अवतार का उल्लेख है... 
b) सत्य युग, द्वापर, होते हुए कलयुग में आ जायेंगे...वापस आज के दौर में...
यानी की सारी कड़ी एक दुसरे से जुडी होंगी......आप आज के सूचना युग में महायुग का सफ़र कर सकते हैं...जो संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु नहीं करने दे रहे हैं...!

4. कथा में आप समाज को गलत दिशा में ले जाने के लिए , सूचना को ढक सकते हैं, 
यहाँ तक हुआ है, और कर सकते हैं कि अधर्म को धर्म की तरह से प्रस्तुत करें..!

उद्धारण:
# श्री राम ने असली सीता को अग्नि देव को सुपुर्द कर दिया,  
# श्री कृष्ण ने द्वारिका समाज की इच्छा-अनुसार नहीं , अर्जुन, दुर्योधन में कौन पहले दिखा उस पर निर्णय लिया की द्वारिका कि युद्ध में क्या भूमिका होगी..!
अनेको उद्धारण दिए जा सकते हैं, जो की जानबूझ कर समाज की गुलाम मानसिकता रखने के लिए विद्वान प्रयोग कर रहे हैं, ताकि समाज का शोषण आसानी से हो सके..!
आपके सारे प्रश्नों का उत्तर मिलेगा...!

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