Friday, September 2, 2016

हिन्दू समाज में सुधार करने के इच्छुक कृपया इस पोस्ट पर कमेंट अवश्य करें

मुझे अनेक लोग सोशल साइट्स पर मिलते हैं, जो पूर्ण इच्छा शक्ति से, इमानदारी से समाज में सुधार करना चाहते हैं, हिन्दू समाज को कर्महीन से कर्मठ बना कर एकजुट करना चाहता हैं | में उन सबका नमन करता हूँ !
लकिन सुधार होगा कैसे, क्या यह बिना किसी प्रोफेशनल कार्यक्रम के संभव है ? 
किसको क्या सन्देश देना है, किन कारणों से समाज की यह दुर्गति हो रही है , उस सबका आकलन और उसका समाधान पर भी कभी विचार विमश होते नहीं देखा |
पहले कर्महीन समाज और कर्मठ समाज में अंतर को समझते हैं :
भारत में सिख मात्र २% हैं, लकिन किसी की हिम्मत नहीं है कि उनसे कोइ छेड़-छाड़ करले, यही हाल ईसाईयों का है जो ५% होंगे, मुसलमान २०% से उपर पहुच गए , और उनके मजहब और समाज को पूरी इज्ज़त मिलती है; सिर्फ और सिर्फ बहुल समाज हिन्दू है जिससे जो चाहे, जैसे चाहे कह सुन सकता है, देवी-देवताओं की तस्वीर गलत तरीके से प्रस्तुत कर सकता है ! हिन्दू समाज कर्महीन है इसलिए बहुल समाज होते हुए भी द्वित्य श्रेणी का नागरिक है, और जब तक समाज कर्मठ नहीं होगा, एकजुट भी नहीं हो पायेगा, उसकी कोइ भी मांग प्राथमिकता पर नहीं मानी जायेगी|

ध्यान रहे यह पोस्ट उनके लिए है, जो हिन्दू समाज को एकजुट देखना चाहते है, शक्तिशाली बनाना चाहते हैं | इसलिए आवश्यक है कि जिस बिंदु पर आप सहमत ना हो, आप विरोध करें, चर्चा करें, नहीं तो सब मिल कर आगे कैसे बढ़ पायेंगे ?
अब कर्महीनता किस कारण से है यह समझते हैं |
बहुत सरल भाषा में समझाता हूँ; एक छोटे बच्चे मैं और एक युवा में क्या अंतर होता है?

भावना और कर्म के अनुपात में अंतर होता है | एक छोटे बच्चे को सिर्फ भावनात्मक बाते पसंद आयेंगी, यदि उसको आप बिल्ली और चूहे कि कहानी सुना रहे हैं (या चीटी और हाथी की !), तो वोह चाहेगा चूहा ही जीते और उसके लिए आप श्राप और वरदान का प्रयोग करके ऐसी कहानी बना सकते हैं जिसमें चूहा ही जीतेगा |

युवा यह बात समझता है कि बिल्ली का भोजन है चूहा, प्रकृति बदलती नहीं है | कर्म और भावना अनुपात का झुकाव कर्म की और है, जबकि बच्चे का भावना की और | 

बस यही हिन्दू समाज के साथ हुआ है | विष्णु अवतार, श्री कृष्ण को सिर्फ आंशिक सफलता ही मिली , कारण मानव अवतार की एक निश्चित आयु होती है, और सुधार करते करते आयु समाप्ति पर आ गयी | लकिन कृष्ण अवतार उपरान्त विद्वान और धर्मगुरूओ ने सुधार का लाभ समाज तक नहीं पहुचने दिया | 

उस समय धर्म का भावनात्मक भाग बढ़ा कर कर्म का भाग कम कर दिया गया,क्यूँ इसका कारण कभी बताया नहीं गया | समाज कर्महीन होता चला गया | इतिहास प्रमाण है कि समाज का शोषण होता रहा | 

पिछले १००० वर्ष की गुलामी में संतो ने अधिकृत तरीके से धर्म का भावनात्मक भाग और बढ़ा दिया था, और सोच यह थी, कि सर झुका कर ही सही, बिना धर्म परिवर्तन के यह बुरा वक़्त निकल जाएगा | 

यह भी सोच लिया होगा कि जब स्थिथि ठीक हो जायेगी तो कर्म और भावना का अनुपात आगे के विद्वान, धर्मगुरु सही कर देंगे ! लकिन क्या आज़ादी के बाद ऐसा हुआ?

नहीं, उल्टा भावनात्मक भाग और बढ़ा दिया गया, कर्महीन समाज और कर्महीन होता जा रहा है | जो धर्म भौतिकता, कर्म पर आधारित है, अब चमत्कार पर टिका है , और यही बढ़ा-चढ़ा कर बताया जा रहा है | अनेक टीवी चैनलों पर धार्मिक सीरियल आते हैं, स्वंम सोशल साइट्स पर जितनी पोस्ट हैं, इसका प्रमाण है |
तो अब करा क्या जाय, और कैसे ?

पहले तो यह समझ लें कि जो बात आपको यहाँ पर बताई गयी है, वोह समाज मैं लानी मुश्किल नहीं है; हाँ समय लगेगा, आखिर ५००० वर्ष की सोच को बदलना है | कर्म का अनुपात बढ़ाना है, और भावना का घटाना है; कहना आसान है, पर होगा कैसे?

एक बार फिर से समझ लें क्या करने को कहा जा रहा है; सबसे पहले आपको खुद की सोच बदलनी है, उसके बिना आप कुछ सहयोग नहीं दे पायेंगे !
बिना अपने को धोका दिए(जी हाँ, बिना धोका दिए) सोच आपकी यह होनी है:
1. रामायण और महाभारत, मेरे ईश्वर श्री विष्णु के अवतार का वास्तविक इतिहास है, और आप और मैं जानते हैं कि इतिहास में किसी के पास कभी भी कोइ अलोकिक शक्ति नहीं होती | मानव अवतार की निश्चित जन्म और मृत्यु होती है , यानी की अवतार मानव की तरह ही पृथ्वी पर अवतरित होते हैं, और पृथ्वी त्यागते हैं |2. ‘पुराण’ ब्रहमांड, सौर्य मंडल, पृत्वी अन्य गृह की उत्पत्ति का विज्ञानिक इतिहास और प्राचीन इतिहास है !
अब बताएं इसमें कौन सी बात सनातन धर्म विरुद्ध है, लकिन संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु नहीं करेंगे | शोषण से सुख और लाभ कोइ छोड़ता नहीं है, मजबूर करना होता है | मुसलमान और ईसाई भी नहीं करेंगे | तो अब विकल्प क्या है ? प्रयास आपको और मुझे ही करना होगा, और सोशल मीडिया के कारण यह आसान भी है |

लाभ यह है कि अभी तक जहाँ रामायण, महाभारत से कोइ भी धर्म नहीं मिल रहा था (सिर्फ अच्छाई के जीत बुराई पर को छोड़ कर), भौतिकता के आधार पर हर प्रसंग जिसमें अवतार ने कुछ किया है, उससे आपको आज के लिए एक धर्म मिलेगा जो वर्तमान समाज के लिए लाभदायक होगा, और जो अभी तक बताया नहीं जा रहा है | पता नहीं आपको मालूम है कि नहीं, इसीलिए अवतार के इतिहास को दूसरा वेद भी कहा जाता है | आप ब्लॉग की कुछ पोस्ट जो रामायण और महाभारत पर आधारित हैं, उनको पढ़ सकते हैं |

उसी तरह से पुराण से भूविज्ञान (GEO-SCIENCE) पर हमारे छात्रों को विशेष जानकारी मिलेगी |
और, और समाज कर्मठ हो जायेगा, फिर एकजुट भी हो पायेगा ! 

अब मुख्य प्रश्न : समाज तो सिर्फ धर्मगुरुओ की बाते सुनता है, हमारी बाते क्यूँ सुनेगा ?

इसीका उत्तर सोशल साइट्स है | जब आप बार बार ऐसी पोस्ट को प्रोहित्साहित करेंगे जो रामायण और महाभारत को वास्तविक इतिहास मानते हैं, तो इसका असर धीरे धीरे संस्कृत विद्वानों, धर्मगुरुओ पर तो पहुचेगा, संस्थाओं पर भी पहुचेगा, और फिर आगे का रास्ता आसान हो जाएगा |

और यही तरीका है इतने बड़े विषय पर अपना असर छोड़ने का, बदलाव लाने का !
सामग्री उपलब्ध है , सोशल साइट्स उपलब्ध हैं, तो देर किस बात की ?

ध्यान रहे सोशल मीडिया पर जो लोग भी हिन्दू समाज में सुधार चाहते हैं, उनको चमत्कार का पूरी तरह से विरोध करना होगा; चाहे अलोकिक शक्ति हो, वरदान और श्राप हो, साईं भक्ति हो, या सुर-असुर, राक्षस-देवता युद्ध से सम्बंधित हो | बिना परिभाषा के (परिभाषा: देवता, राक्षस, सुर, असुर, सनातन धर्म) कुछ भी स्वीकार नहीं होना चाहेये |
आपके हर बिंदु पर प्रश्न आमंत्रित हैं !

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ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.