Friday, January 22, 2016

वेद समाज में जीने का सकरात्मक ज्ञान है...गुरुओं के लिए शोषण का पिटारा नही

वेद आपको भूविज्ञान और सौर्यमंडल की उत्पत्ति पर ज्ञान के अतिरिक्त, समाज में जीने का सकरात्मक ज्ञान भी प्रदान करते है |
जहाँ भूविज्ञान और सौर्यमंडल की उत्पत्ति का सम्बन्ध विज्ञान से है, समाज में जीने के सकरात्मक ज्ञान का सम्बन्ध धर्म से है | 
तथा यही कारण है की सनातन धर्म की मूल धार्मिक पुस्तक वेद हैं, बाकी सब वेद पर टीका-टिप्पणी और समीक्षा है | ब्रह्मा जी अपने चारो मुखो से वेद की श्रुतियों का सदेव उच्चारण करते रहते हैं | अर्थ स्पष्ट है, सनातन धर्म में वेद ईश्वर की देन है |
यह भी सत्य है की विश्व के हर धर्म में, उस धर्म के ईश्वर को उस धर्म को मानने वाले समाज के लिए जो नियम हैं, उनसे जोड़ा गया है, लकिन यहाँ सनातन धर्म कुछ अलग है; सनातन धर्म नियम प्रधान धर्म नहीं है, सदेव वर्तमान समाज को केंद्र बिंदु मान कर ही नियम बनते हैं, इसलिए वेद समाज में जीने का सकरात्मक ज्ञान है, नियम नहीं |

‘सृष्टि से पहले सत नहीं था, 
असत भी नहींअंतरिक्ष भी नहीं,
आकाश भी नहीं था, छिपा था क्या कहाँ,
किसने देखा था उस पल तो अगम, अटल जल भी कहाँ था’
     ऋग्वेद(10:129) से सृष्टि सृजन की यह श्रुती

जहाँ वेद ज्ञान प्रदान करते है, पुराण, रामायण और महाभारत, भूविज्ञान और सौर्यमंडल की उत्पत्ति, तह पुराणिक इतिहास को आप तक पहुचाते हैं | सनातन धर्म में एक और अविवादित ज्ञान सोत्र है, जिसका प्रयोग करे बिना वेद की बाते गलत भी बताई जा सकती हैं, और वोह है, अवतरित ईश्वर के कर्म जिसमें वेद का ज्ञान छिपा हुआ है | यह में इसलिए भी कह रहा हूँ, की समस्त प्राचीन शास्त्र कोडित हैं, तो उनका दुरूपयोग भी हो सकता है, और हो भी रहा है |
वेद समाज में जीने का ज्ञान है, इसमें कोइ विरोध नहीं है, लकिन ईश्वर अवतार श्री राम और श्री कृष्ण पर प्रश्न चिन्ह लगाने के लिए यही संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु रावण और द्रोणाचार्य को वेद ज्ञाता दर्शाते हैं, ऐसा क्यूँ ?
बहुत विस्तार में जायेंगे तो अनावश्यक विवाद बढ़ जाएगा, क्यूंकि यह सब सोच समझ कर, ईश्वर अवतार पर प्रश्न चिन्ह लगा कर, हिन्दू समाज की मानसिकता पर प्रहार करने का प्रयास है | और इसमें संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु सफल भी रहे हैं , और यही प्रमुख कारण है, हिन्दू समाज के पतन का, और गुलामी और अन्य कष्ट जो इस समाज पर हुए हैं |

क्या कोइ बताएगा :-नीच, चालबाज़, पाखंडी और अधर्मी रावण कैसे वेद-ज्ञाता हो गया?
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द्रोणाचार्य, जिन्होंने धर्म का सबसे अधिक दुरूपयोग करा, शिक्षा और शिक्षको को अधर्म के मार्ग पर लेगए , तथा स्वंम श्री कृष्ण, और धर्मराज युधिष्टिर ने उस दुराचारी को एक ऐसी मौत दी जिसमें तिरस्कार स्पष्ट नज़र आता है; इनको भी वेद-ज्ञाता घोषित कर रखा है |
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लकिन जब उत्तर मांगो तो आपको कोइ संतोषजनक उत्तर नहीं मिलेगा|

हिन्दू समाज का यह दुर्भाग्य रहा है की उसके पतन और गुलामी का कारण संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु रहे हैं, तथा आज भी स्तिथि बदली नहीं है | समाज को गुलाम बना कर रखने का इनलोगों का पेशेवर कार्यक्रम(professional program) आज भी उसी तरह से चल रहा है, और समाज क्यूंकि कर्महीन है, कुछ समझना नहीं चाहता |

संस्कृत विद्वानों और धर्मगुरूओ ने वेद ज्ञान को भी हिन्दू समाज के शोषण का पिटारा बना रखा है |

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