Tuesday, December 8, 2015

नाक कट्या बाद रावण ने युद्ध नहीं करा...स्त्री हरण कभी वीरता का प्रतीक नहीं

संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु यह तो जानते हैं की बहन और भाई का रिश्ता क्या है | 
और 
रावण ने तो प्रचार का प्रयोग और दुष्प्रयोग करके विश्व को यह भी समझा रखा था की वोह वेद-ज्ञाता और उच्च कोटि का वीर है | 

इसलिए सूर्पनखा के नाक-कान कटने के बाद, वोह खर-दूषण की तरह ललकार कर युद्ध करने क्यूँ नहीं गया, यह विषय सूक्ष्म समीक्षा का अधिकारी है |

यह भी प्रश्न है की स्त्री हरण करने वाला वेद्ज्ञाता कैसे कहला रहा है ?

इस पोस्ट को पढ़ते समय आप यह अवश्य सोचीयेगा की आज के संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु रावण को वेद-ज्ञाता और महावीर क्यूँ समाज के सामने स्थापित करना चाहते हैं, जबकी यदि इतिहास बिना अलोकिक शक्ति के पढ़ा जाए तो आप पायेंगे की रावण जिस जिस से लड़ा, उन सबसे हारा, सदा अपमानित होकर बीच-बचाव के कारण ज़िंदा लौट पाया | बस प्रचार उसका अच्छा था, पूरे विश्व के धार्मिक लोग उसका साथ दे रहे थे, इसलिए झूठे प्रचार के सहारे वोह आगे बढ़ता गया |
रावण नीच, कपटी और छल में निपूर्ण था, उसको संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु वेद-ज्ञाता क्यूँ बताते हैं, उसका उत्तर आपको भी मालूम है~~हिन्दू समाज की मानसिकता गुलामी वाली रखनी है , तभी समाज का शोषण आसान होगा | सत्य के लिए खड़े होने का साहस नहीं रहेगा ; जो दिख रहा है | और इसी कारण हिन्दू अपने ही देश में द्वित्य श्रेणी का नागरिक है !
सत्य तो यह है की जब रावण की लंका में खिल्ली उड़ने लगी, और लोग यह कहने लगे की कहाँ चचेरे भाई खर-ढूषण जो ललकार कर, चचेरी बहन के लिए युद्ध करते हुए वीर गति को प्राप्त हुए, और कहाँ डरपोक रावण, तब रावण को लंका के समाज को संतुष्ट करने के लिए कुछ करना आवश्यक हो गया, और फिर सीता का हरण हुआ |

सबको मालूम है, और खासकर संस्कृत विद्वान और धर्मगुरुजनो को, की स्त्री-हरण कोइ वीरता का प्रतीक नहीं है, तथा ऐसे व्यक्ति को वेद-ज्ञाता भी कभी नहीं कहा जा सकता, लकिन गुलाम समाज कुछ पूछेगा नहीं, और गुलामी को और मजबूत करने के लिए समाज को गलत रास्ते पर ले जाना आवश्यक है, और यह बात पिछले ५००० वर्ष का इतिहास चीख चीख कर बता रहा है !
चुकी इस विषय पर विस्तृत चर्चा अन्य पोस्ट में हो चुकी है इसलिए मैं सिर्फ उन पोस्टो की लिंक दे रहा हूँ; 
कृपया लिंक खोल कर पोस्ट पढीये ::-
वैसे भी रावण, युद्ध बुरी तरह से हारा, और वोह भी अपने सारे सगे-सम्बंधीयों को मरवा कर |पहले दिन ही रावण की सेना भाग खडी हुई थी | रावण के पास ना तो युद्ध नेतृव करने का कौशल और ज्ञान था, और युद भूमि में सैन्य-ज्ञान भी नहीं दिखा | वो एक क्रूर, दुराचारी व्यक्ति और राजा था | वोह सिर्फ और सिर्फ झूठे प्रचार और अधर्मियों के सहयोग से सफल था |

जब अधर्म अत्यधिक बढ़ जाता है, तो इश्वर अवतरित होते हैं | त्रेता युग में अत्याचार कुछ ज्यादा ही थे | इसीलिये एक के बाद दुसरे अवतार को आना पडा | पहले परशुराम फिर राम |

इस दुराचारी राक्षस राजा रावण के अंत के बाद भी उसके सहयोगी लोगो ने श्री राम को सीता को त्यागने पर विवश कर दिया | अधर्मियों का अंत करके राम राज्य स्थापित करने में श्री राम को समय लगा |

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ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.