Tuesday, November 17, 2015

क्या कारण है कि श्राप और वरदान सिर्फ गरीबो के कष्ट की कमी के लिए नहीं हैं

पुराण उठा लीजिये, महाभारत या रामायण देख लीजिये; 
सारे ग्रन्थ ऐसे अनेक प्रसंगों से भरे हुए हैं कि अमुक ऋषि, महाऋषि, मुनि-महामुनि, देवी-देवता, और स्वंम प्रभु ने कुपित होकर यह श्राप दिया, 
और, 
प्रसन्न हो कर यह वरदान दिया | तथा ना ही श्राप, और ना ही वरदान कभी मिथ्या होता है |

बहुत सुंदर !

अब प्रश्न ये है कि, मान्यता अनुसार, इश्वर तो दीन, दुखी, निर्धन पर विशेष कृपा रखते हैं, और संचार का पूरा उपयोग, हर सदी हर युग में करके, यह भी बताया गया है कि ऋषि, महाऋषि, मुनि-महामुनि, तो इश्वर से भी अधिक दीन, दुखी, निर्धन पर कृपा रखते हैं; तो फिर किसी ने यह श्राप या वरदान क्यूँ नहीं माँगा, या दिया कि गरीबो का कष्ट कम हो ?

और यह भी सत्य है कि हर युग में, तथा हर समाज में गरीब की दशा अत्यंत कष्टदायक रही है; कोइ झूट में यह दावा भी नही कर सकता कि इस विषय की प्राथमिकता कम होनी चाहीये !

सामाजिक ढाँचे और पायदानों में गरीब सबसे नीचे है, उसकी समस्या भी कोइ सुनना नहीं चाहता | सनातन धर्म का अविवादित सत्य यह भी है कि गरीब और कमजोर का सदेव शोषण हुआ है , स्वंम इश्वर के अवतरित होने का यह प्रमुख कारण रहा है | समाज शास्त्री आपको यह भी बताएंगे कि श्रृष्टि के पतन की और अग्रसर होने का प्रथम और प्रमुख कारण गरीब और कमजोर का शोषण होता है |

तो अब यह प्रश्न फिर से; ‘क्या कारण है कि श्राप और वरदान सिर्फ गरीबो के कष्ट की कमी के लिए नहीं हैं?’

चुकी यह ब्लॉग और लेखक, सनातन धर्म में पूरी आस्था रखता है, इसलिए उत्तर सनातन धर्म के परिपेक्ष में ही दिया जा सकता है !

सनातन धर्म ‘चमत्कार’ में बिलकुल विश्वास नहीं करता | किसी तरह के श्राप और वरदान पर आस्था रखने को नहीं कहता | परन्तु यह भी सत्य है की धार्मिक ग्रंथ ‘श्राप और वरदान’ से भरे पड़े हैं |

तो, यह पोस्ट एक तरफ तो इस तथ्य को स्वीकार कर रही है की धार्मिक ग्रंथ ‘श्राप और वरदान’ से भरे पड़े हैं, दूसरी तरफ यह कह रही है की सनातन धर्म ‘चमत्कार’ में बिलकुल विश्वास नहीं करता | किसी तरह के श्राप और वरदान पर आस्था रखने को नहीं कहता | पूरा विरोध है दोनों बातो मैं !

स्वाभाविक है की इसमें एक बात सत्य है, एक बिलकुल गलत | मेरा यह भी मानना की इसका उत्तर आप भी दे सकते हैं |

सबसे पहले तो आपको सनातन धर्म के मूल सिद्धांत पर जाना होगा; पहचानना होगा, मानना होगा | सनातन धर्म चमत्कार, ना केवल अस्वीकार करता है, उसका विरोध करता है | सनातन धर्म प्राकृतिक विकास पर आस्था रखता है, ना की सर्जन पर; इसीलिये इश्वर स्वर्ग में बैठ कर समाज की रक्षा नही करते, ना ही कर सकते, उनको अवतरित होना पड़ता है | तो धार्मिक ग्रंथ ‘श्राप और वरदान’ से क्यूँ भरे पड़े हैं ?

इसका उत्तर दूं , इससे पहले आपको यह समझना होगा कि = = >

सनातन धर्म को छोड़ कर बाकी जितने भी धर्म हैं, वे सर्जन में आस्था रखते हैं, उनके इश्वर स्वर्ग में बैठ कर ही पूरी श्रृष्टि और खासकर उनके समाज का विशेष ध्यान रखते हैं | हमारी तरह नहीं हैं, की यदि श्रृष्टि प्रलय की और अग्रसर हो, तो इश्वर स्वर्ग में बैठ कर कुछ भी सुधार नहीं कर पाते, उनको अवतरित होना पड़ता है| अवतरित होकर दिशा परिवर्तन करते हैं, और उसमें भी, क्यूंकि उनको पूर्ण सफलता नहीं मिलती, श्रृष्टि प्रलय की और अग्रसर रहती है | 

स्पष्ट है की समाज से सम्बंधित किसी कार्य के लिए सनातन धर्म में इश्वर, केवल विशेष गभीर स्थिति में अवतरित होकर ही हस्ताषेप करते हैं, स्वर्ग में बैठ कर नहीं| और उसके बाद भी यह धर्मगुरुओं कि और समाज की जिम्मेदारी है की श्रृष्टि को विनाश की और नहीं बढ़ने दें इश्वर की नहीं|

फिर से समझ लीजीये = = > “धर्मगुरुओं कि और समाज की जिम्मेदारी है की श्रृष्टि को विनाश की और नहीं बढ़ने दें इश्वर की नहीं”|

तो फिर श्राप और वरदान स्वाभाविक है, अर्थहीन हैं, सिर्फ समाज के शोषण के लिए हैं |
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ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.