Wednesday, October 28, 2015

सुर असुर में संतुलन मानव को स्वंम मैं, परिवार मैं, प्रकृति मैं बनाना है

यह सारी जानकारी संस्कृत विद्वानों द्वारा समाज तक पहुचनी थी, जो नहीं हो रहा है |
समाज कि कर्महीनता संस्कृत विद्वान कभी समाप्त नहीं होने देंगे, तभी शोषण आसान रहेगा |

26 अक्टूबर, 2015 को हिन्दुकुश अफगानिस्तान में केन्द्रित एक भूकंप आया जिससे तबाही मच गयी ! पाकिस्तान अफगानिस्तान इससे विशेष प्रभावित हुए | सोशल मीडिया पर सूचना आने लगी कि ज्यादातर भूकंप 26 तारीख को ही आए हैं....

तथा कुछ विशेष गद्दारी और धोके से आंतकी हमले भी 26 को ही आरम्भ हुए हैं, जैसे मुंबई पर आंतकी हमला 26/11/2008 को हुआ था |

पहले तो यह समझ लें कि वेदान्त ज्योतिष और अंक गणित में ८, १७ और 26 तीनो नंबर ८(८+९=१७, १+७=८ ; २+६=८) को ही दर्शाते हैं ! 
अंक ज्योतिष में प्रत्येक नंबर किस गृह को दर्शाता है, वोह किस पधात्ति से अंक ज्योतिष में आप जा रहे हैं, उसपर निर्भर है इसलिए अनेक विद्या का उपयोग सिर्फ भ्रम ही उत्पन्न करेगा, उपलब्द्धि कुछ नहीं होनी| इसलिए में यहाँ, जिसपर मुझे विश्वास है, वेदान्त ज्योतिष का ही अनुसरण करूंगा | आपसब के लिए भी आसान हो जाएगा समझना |

हरेक के घर में परिवार के लोगो की जन्म कुंडली तो होगी| ९०% कुंडली में विशोत्तरी दशा का प्रयोग होता है, कुछ दक्षिण के पंडित अन्य पद्धति की दशा का प्रयोग भी करते हैं| विंशोत्तरी दशा का जनक महर्षि पाराशर को माना जाता है। 

ग्रहों का दशा क्रम इस प्रकार है:- 
सूर्य ;चन्द्र ;मंगल ;राहू ;गुरु ;शनि ;बुध ; केतु ; शुक्र |
नीचे लिंक भी दी जा रही है |

तो यहाँ नंबर बहुत आसान हैं, जिस क्रम में गृह हैं बस सूर्य १ से शुरू करके शुक्र ९ पर समाप्त | 
गृह नंबर के संग: -
सूर्य-1;चन्द्र-2 ;मंगल-3 ;राहू-4 ;गुरु-5 ;शनि-6 ;बुध-7 ; केतु-8 ; शुक्र-9 | 

तो अब आपके पास सूचना है...राहू, केतु असुर हैं, यानी की सामंजस्य बिगाड़ते हैं, जिसको शुक्र, जो कि असुरो के गुरु हैं, समर्थन देते है |
बाकी सारे गृह <सूर्य ;चन्द्र ;मंगल; गुरु ;शनि ;बुध> सामजस्य के पक्ष में होते हैं तथा ‘गुरु’ सुरों के गुरु हैं|

कुछ लोग इसमें यह भी जोड़ना चाहेंगे कि हर गृह एक स्तिथि में नहीं होता...कभी साथ देता है, कभी साथ नहीं भी देता, और कभी कभी असुर के साथ हो जाते है; तथा सुर कभी कभी असुर का साथ भी दे देते हैं | लकिन में इस गहराई में नहीं जाना चाहता | 
मेरा उद्देश पर्याप्त सूचना आप तक पहुचाना है, ताकि आप इस बात को अच्छी तरह से समझ लें कि == >

1. भूचाल, अप्रत्याशित प्राकृतिक विपदा क्यूँ आती हैं..!

2. मानव शरीर मैं रोग, भी सुर और असुर के सामंजस्य से बिगड़ने से होता है..!

3. थोडा विस्तार करके इसी सिद्धांत को कलह, समाज के अंदर और बाहर झगडे, के लिए भी प्रयोग करा जा सकता है !

4. जितने भी आविष्कार होते हैं, विज्ञानी विकास होता है...सुर और असुर के नए ..ध्यान दे..नए सामंजस्य को प्राप्त करने से ही होता है !

5. कुछ यही सिद्धांत...परिवार बढ़ता है, संतान नए मूल्य स्वीकारती है, तो नए सामंजस्य को बनाना अनिवार्य है, सकारात्मक आवश्यकता है, ना कि कष्ट और दंड |

अब उपर जो ग्रहों के नंबर दिए हैं उनका कुछ और विस्तार करते हैं| ध्यान रहे जो भी आपको बताया जा रहा है, नंबर से सम्बंधित, वोह सब बेकार हो जाएगा, यदि किसी और पधात्ति से नंबर लेते हैं |

सुरों के गुरु ‘ब्रहस्पति’ के नंबर हैं सिर्फ ५, और 
असुरो के गुरु ‘शुक्र’ के नंबर हैं ९.
तो एक बात तो तय है....प्रवर्ती सदैव वर्तमान सामंजस्य के बिगड़ने के रहते हैं....९ नंबर ५ पर भारी है..

• चाहे वोह मानव शरीर हो,
• पृथ्वी के अंदर सक्रियाता के कारण हो..
• चाहे गृहस्थ में बच्चे बड़े हो कर अपना परिवार बसा रहे हों..
• चाहे समाज हो या देश !

“सुर-असुर, शिव-पार्वती, सति, माँ दुर्गा, और देव दानव का युद्ध”, यह सब अराजकता की कथा भी बयान करते हैं, जो पृथ्वी के अंदर और उपर सदा होती रहती है | इसका कोइ भी प्रसंग असत्य नहीं है | समस्या है तो इतनी की में और आप कर्महीन हैं | यह सारी जानकारी संस्कृत विद्वानों द्वारा समाज तक पहुचनी थी, जो नहीं हो रहा है | समाज कि कर्महीनता संस्कृत विद्वान कभी समाप्त नहीं होने देंगे, तभी शोषण आसान रहेगा |
यह लेख अपने आप में पूर्ण नहीं है, मात्र आरंभिक जानकारी ही दे रहा है....विषय बहुत बड़ा है |

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