Thursday, April 9, 2015

रावण सैन्य रणनीति में अक्षम था, वीरता के भी कोइ प्रमाण नहीं हैं

रावण का अस्त्र कपट था; रावण की वीरता की गाथा झूटी है, चतुराई को वोह राजनीति समझता था, तथा अपना धार्मिक होने का झूठा प्रचार करके उसने विश्व मैं प्रभाव बना रखा था | 
चुकी 
सनातन धर्म अन्य धर्मो से अलग है, इसलिए आपको श्री विष्णु के अवतार , पहले श्री परशुराम, फिर श्री राम को पृथ्वी पर क्यूँ आना पड़ा यह जानना आवश्यक है, और यही आपको धर्म देगा,ज्ञान देगा |
अब तक भावनात्मक तरीके से रामायण पढ़ कर आपको मात्र इतना बताया गया है कि बुराई पर अच्छाई की जीत; लकिन आज आपको रामायण से अनेको धर्म मिलने है, और क्यूँकी हम सूचना युग में हैं, तो इसकी आवश्यकता भी है |
यह पोस्ट सिर्फ और सिर्फ रामायण पर आधारित है | 

क्या रावण एक वीर था, या चतुर राजनीतिज्ञ?

रावण को प्रचार मैं निपुणता थी, तथा संचार का उचित उपयोग करके उसने अपने धार्मिक होने और वीर होने के झूठे झंडे पूरे विश्व मैं गढ़वा रखे थे ! यदि आपके पास कोइ प्रमाण हो तो अवश्य प्रस्तुत करें, लकिन इतिहास अलोकिक शक्ती को स्वीकार नहीं करता ; अलोकिक शक्ती का प्रयोग सिर्फ समाज को भावनात्मक और गुलाम बना कर रखने के लिए हो रहा है|

रावण, खर दूषण की तरह तो वीर था नहीं कि सौतेली बहन ने शिकायत करी, वोह ललकार कर युद्ध करने गए, और वीर गति को प्राप्त हो गए | पूरी रामायण मैं कोइ भी प्रसंग ऐसा नहीं है कि वोह वीर था, जहाँ भी लड़ा हार कर आया; बाली से लड़ा, तो हारा और मित्रता कर ली |

इसके अतिरिक्त और भी प्रसंग हैं, जैसे की हनुमान ने लंका पहुच कर रावण के एक पुत्र को मार डाला, फिर भी वोह यह साहस नहीं जुटा पाया कि इसका उचित उत्तर कूटनीति के अन्तरगत दिया जाए|

रावण खनिज और वानरों को अवैध तरीके से वन से लाता था, और पूरे विश्व मैं बेचता था, तथा अपने धार्मिक और वीर होने का झूठा प्रचार वोह ब्राह्मणों से करवाता था , जिनको वोह अपने अवैध व्यापार को फलने फूलने मैं मदद के लिए धन देता था |
ब्राह्मणों मैं उसकी पकड़ अच्छी थी इसका प्रमाण है; जब राम अयोध्या वापस लोट आये तो श्री राम के राजभिषेक के लीये वहाँ के ब्राह्मण समुदाय ने इनकार कर दिया ! कारण यह बताया गया था कि रावण एक प्रतिष्टित ब्राह्मण थे तथा सीता को भिक्षा में स्वेच्छा से लाए थे| अत: राम के पास कोइ अधिकार नहीं था कि वोह रावण तथा उसके ब्राह्मण परिवार का निर्ममता से संघार करके सीता को वापस लाए|  
श्री राम को राजभिषेक के लीये सरयू पार अथार्त वाराणसी से ब्राह्मण बुलाने पड़े थे; तभी से वोह ब्राह्मण सरयू पारी कहलाने लगे | 
इस विवाद से इतनी कडवाहट आ गयी, की आज भी अयोध्या के मूल ब्राह्मण जो अपने आपको कान्य कुब्ज ब्राह्मण कहते हैं उनका विवाह सरयू पारी ब्राह्मणों मैं नहीं होता|यह सत्य आपको पूर्वी उत्तर प्रदेश मैं खूब सुनने को मिल जाएगा | 
सीता का विरोध धोबी या छोटी जात वाले कर रहे थे, वोह बात भी झूटी है, जो उपरोक्त तथ्य से प्रमाणित हो रही है |
जब लंका मैं तुलनात्मक बहुत शोर हो गया उसकी कायरता का, और खर दूषण के वीरगति को प्राप्त होने का, तो उसने एक कुट्नीतिज्ञ चाल चली जिसमें सीता का अपहरण करा गया, जो की सैन्य कौशल के हिसाब से एक गलत निर्णय था, और परिणाम भी यही हुआ, युद्ध आरम्भ होने के दस दिन मैं तो रावण राज्य के स्थान पर विभीषण राज्य हो गया ! पढ़ें: सीता अपहरण के पीछे रावण की कूटनीति

ऐसा भी प्रतीत होता है कि ‘माया’(MIND CONTROL WEAPONS) का प्रयोग श्री राम ने खर दूषण से युद्ध मैं करा था, और लंका क्यूँकी समुन्द्र से चारो तरफ से घिरा हुआ देश था, रावण ने बहुत अधिक धन सैन्य उपकरणों की आधुनिकरण मैं नहीं खर्च करा था | लंका मैं जैमर लगे हुए थे, जो की शत्रु की ‘माया’ का प्रयोग असफल करदेते थे, लकिन लंका के बाहर वोह तकनीकी स्तर पर माया के विरुद्ध नहीं खड़ा होना चाहता था | खर दूषण का परिणाम वोह देख चूका था, इसलिए उसने लंका मैं बैठ कर युद्ध करने की ठानी|

सैन्य कौशल, लंका की सुरक्ष और लंका के समाज मैं उसकी पकड़ कितनी कमजोर थी, यह इस बात से भी मालूम पड़ता है कि हनुमान लंका पहुच कर पहले विभीषण से मिले, बाद मैं सीता से | हनुमान लंका से लौटते समय अनेक सामरिक प्रतिष्ठान जिसमें राडार भी शामिल था का नाश कर गए, जो बिना अंदरूनी सहायता के संभव नहीं था |

लंका का समाज उससे पूरी तरह असंतुष्ट था, यह इस बात से प्रमाणित होता है कि विभीषण हनुमान के प्रस्थान के कुछ दिनों बाद लंका त्याग देते है, श्री राम से मिल जाते हैं ; तथा विभीषण के जाने के बाद लंका कभी भी युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार नहीं दिखा |

स्वम लंकेश पुत्र मेघनाथ को युद्ध भूमी छोड़ कर सैन्य उपकरणों की तैयारी के लिए यज्ञ करने के लिए युद्ध भूमी छोडनी पडी | यज्ञ का अर्थ हवंन नहीं होता, यज्ञ का अर्थ होता है ‘सामूहिक कठोर प्रयास’ | यही हाल रावण का रहा |
रावण अत्यंत ही अकुशल सैन्य नायक रामायण मैं दीखे, जिनकी निपुर्नता सिर्फ और सिर्फ गाल बजाने में थी और अवैध व्यापार करने में |
ठीक है जब समाज को भावनात्मक बना कर रखने आवश्यक था, तो रामायण से हमें कुछ धर्म नहीं मिले, सिर्फ अच्छाई की जीत बुराई पर ही दिखाई गयी, लकिन आज तो हमें धर्म चाहीये; क्यूँकी आदिवासी और अशिक्षित बहुत हैं,..राजकुमार भी बहुत हैं, लकिन कोइ राजकुमार वन मैं सुधार के लिए नहीं रह रहा .....जिसका एक कारण यह भी है कि हमें सही धर्म नहीं बताए जा रहे हैं !

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