Friday, April 24, 2015

कितने देवता हैं, ३३ या ३३करोड़? कैसे सही का पता लगाएं और परिभाषित करें

देवता ३३ हैं या ३३ करोड़ ? कैसे इसका उतार दिया जाय ? 
क्या इस प्रश्न का उत्तर संभव है बिना देवता को परिभाषित करे? समस्या यह है कि हिन्दू समाज कर्महीन है, वोह कोइ प्रश्न पूछेगा नहीं , गुलामी की आदत पड़ गयी है, इसलिए ‘जी गुरुदेव, जी गुरुदेव’ के अतिरिक्त और कुछ कहेगा नहीं, और धर्मगुरु के अपने निजी स्वार्थ हैं, समाज को इसी स्तिथी मैं रखने के लिए |

अनेक मत हैं इस विषय पर, पर सबसे ज्यादा मजेदार बात यह है कि कोइ इस सत्य को कहने की हिम्मत नहीं रखता कि ...>>>

सनातन धर्म वर्तमान समाज केन्द्रित है, इसलिए जो कल की सोच थी, जरुरी नहीं है कि आज भी वही सोच हो, तथा इसको बल देता हैं तथ्य, कि समस्त पुराण कोडित हैं, अनेक ऋषि, महाऋषि, महान संत, यह कह चुके हैं, और कर चुके हैं, वर्तमान समाज को केंद्रबिंदु मान कर विषयों पर सूचना| और यही तर्कसंगत भी है |

तो अब देखते है कि आज समाज की क्षमता क्या है | हिन्दू समाज पढ़ा लिखा है, धर्म पर आस्था है, और सूचना ग्रहण करने की क्षमता भी है| पूरे विश्व मैं भारतीय ज्ञान और शिक्षा का आदर है | मुझे कोइ भी संकोच नहीं है इस सत्य को स्वीकार करने में, की पूरे विश्व मैं हिन्दू समाज अपनी उच्च शिक्षा के कारण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है |
आज का समाज बिना देवता को परिभाषित करे यह निर्णय नहीं लेगा कि कितने देवता हैं? समाज सूचना युग मैं है, और समाज की प्रगति और हित बिना देवता को परिभाषित करे कुछ भी स्वीकार करने मैं नहीं है | और धर्म के नाम पर चारो तरफ झूट और ठगाई के अतिरिक्त कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा तो समाज का ‘परिभाषा के बिना ना निर्णय लेने का फैसला’ पूरी तरह सही भी है|

इससे पहले ब्लॉग मैं एक पोस्ट है जिसमें देवता को परिभाषित करा गया हुई, मुझे उसका विस्तार करना होगा, आसान उद्धारण से आपको समझाना होगा कि
“देवता स्वीकृत सामंजस्य है सुर और असुर का, हर पदार्थ मैं, खनिज मैं, नदी, पेड, पर्वत, तालाब, जल सोत्र, रसायन मैं, गैस मैं, वातावरण मैं , पृथ्वी के अंदर और बाहर”|
अब सीधे उस पोस्ट से :-
“समस्या यह है की यह विषय काफी बड़ा है और विज्ञान से सम्बंधित है| सुर और असुर दोनों के समन्वय और सामंजस्य से ही श्रिष्टी आगे बढ़ती है, तथा जहाँ सामंजस्य मैं कुछ भी गड़बड़ी होई, तो भूचाल, अन्य प्राकृतिक विपदा आती हैं| स्वंम मनुष्य के जीवन मैं रोग का भी यही कारण है|

“तबभी एक छोटा सा उद्धारण तो देना ही पड़ेगा; हवा(रसायनो की मात्रा के लिए लिंक खोलें) जिससे हम सांस लेते हैं, उसमें करीब--- 

"७८% नाइट्रोजन होती है, जो मनुष्य के उपयोग की नहीं है, 
"और २१% ऑक्सीजन(तथा १% अशुधता, या असुर) 

"जिसको सांस से शरीर के अंदर हम पहुचाते हैं, और जीवित रहने के लिए आवश्यक है| 

“लकिन वही नाइट्रोजन(दुसरे स्वरुप मैं) पेड़, पौधों के लिए आवश्यक है, और रसायन खाद का प्रयोग इसी लिए खेती मैं होता है | 

“वायु(पवन) देवता है, जिसमें एक निश्चित मात्र अशुधता(असुर) की अवश्य रहती है और उस अशुधता(मात्र १%) के अन्य उपयोग भी हैं| इस १% का सामंजस्य विज्ञान को भी स्वीकार है, लकिन जब वायु प्रदूषित हो जाती है, तो यह १% से ज्यादा हो जाती ही, और बीमारी बढाती है, कष्टदायक हो जाती है| अर्थात असुर बढ़ जाते हैं, या यह कहें की शक्तिशाली हो गए और वायु देवता को परास्त कर देते हैं|”

अब यह भी मुझे बताने की जरुरत नहीं कि देवता ३३ नहीं ३३ करोड़ हैं |
जी हाँ हमारे ३३ करोड़ देवता हैं,..और अधिक हो सकते हैं कम नहीं !

यह भी समझ लें कि पृथ्वी के अंदर जो सुर और असुर में सामंजस्य के बिगड़ने में जो हलचल उत्पन्न होती है, जिससे प्राकृतिक विपदा, जैसे भूकम, ज्वालामुखी शामिल हैं, तथा अनेक विज्ञान से सम्बंधित प्रश्न पर शोघ, उचित मापदंड पर कार्य जब संभव है कि हम इस विज्ञान के अनुकूल देवताओं की परिभाषा को समझ लें |

तो फिर से समझ लें, हर रसायन, खनिज, स्वीकृत मिश्रण जिसका उद्धारण वायु या पवन सब देवता हैं,

यह भी समझ लें कि यदी यह परिभाषा के साथ समाज तक पहुच जाए, तो समाज उन्नती कर जाएगा, लकिन धर्मगुरु की रोटी मैं कुछ घी कम हो सकता है, तो वोह ऐसा क्यूँ होने देंगे.....समाज का शोषण उनका उद्देश है, ना कि समाज की उनत्ती !

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