Thursday, February 12, 2015

पृथ्वी का आरंभिक विकास तथा शिव सति और दक्ष

पृथ्वी के आरम्भ मैं कुछ भी नहीं था , एक निर्जीव स्थान था , तथा लम्बा समय लगा जीवन को पनपने देने की क्षमता विकसित करने मैं| उसके लिए पृथ्वी मैं आरंभिक समय मैं अनेक बदलाव हुए| इससे पहले की इस विषय पर विस्तार से बात करी जाए, यह जानना आवश्यक है की धामिक मान्यताओं के कारण विज्ञानिक संसार भी दो विचारधरा प्रस्तुत करता है |
एक तो ईसाई और इस्लाम को अधिक महत्त्व देने वाले विज्ञानिक, जो सूचना को प्रस्तुत करते समय सृजन को प्रमुखता देने का प्रयास करते हैं, क्यूँकी दोनों धर्म सृजन पर आस्था रखते हैं; दुसरे वोह विज्ञानिक जो धार्मिक कट्टरता से हट कर सूचना प्रस्तुत करना चाहते हैं, और वोह पृथ्वी के प्राकृतिक विकास को महत्व्तता देते हैं| ध्यान रहे सूचना दोनों के पास अलग अलग नहीं है, और यह सब सूचना मात्र अनुमान हैं|

समस्या यह भी है की पृथ्वी काफी पुरानी है, तथा अनेक बदलाव से गुजरी है| सृजन , या प्राकृतिक विकास मैं आस्था रखने वाले मात्र अनुमान ही लगा सकते हैं, अपनी सोच को प्रमाणित नहीं कर सकते क्यूँकी कोइ समय मैं वापस जा नहीं सकता, तथा ऐसा कोइ विज्ञानिक प्रयोग है नहीं, जो किसी निश्चित सोच को सत्यापित कर सके|
पुराण यह अवश्य बताते हैं की पृथ्वी के प्रारम्भ मैं आदि शक्ति इश्वर शिव से अलग हो गयी, और इसके उपरान्त प्रथम बार सति के रूप मैं शिव के पास आई; तथा यह भी स्पष्ट करते हैं कि सति तब शिव से मिली जब प्रकृति का आरंभिक विकास हो गया था, अनेक प्रकार के जीव जंतु तथा मानव पृथ्वी पर पनप रहे थे | 
आदि शक्ति के पास स्वंम का समर्थ है, शक्ति है, ब्रह्मांडो का विकास , या अंत करने के लिए, तथा वे इश्वर से अपने आप को पृथ्वी के आरंभिक विकास के लिए अलग कर लेती हैं|तो क्या है यह आदि शक्ति, क्या इसे परिभाषित करा जा सकता है?
मेरे विचार से जहाँ इश्वर की बात आ जाती है, तो यह बात बिना कहे स्पष्ट हो जाती है कि इश्वर शक्ति सदेव सकारात्मक होगी, नकारात्मक नहीं हो सकती; परन्तु जो शक्ति इश्वर से अलग हट कर हैं, वोह सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हो सकती हैं; इसका अर्थ यह नहीं हुआ के आदि शक्ति ने इश्वर शिव से अलग होकर पृथ्वी के विकास के लिए मात्र नकारात्मक शक्ति का प्रयोग करा, हाँ यह आप अवश्य कह सकते हैं कि आदि शक्ति ने पृथ्वी को वसुंधरा बनाने के लिए, 'जीव जंतु, वनस्पति, पशु, पक्षी, मानव' की माँ बनाने के लिए लम्बे समय तक प्रयास करा, शक्ति का प्रयोग करा, तब यह संभव हो पाया |

पृथ्वी के विकास के लिए सुर और असुर दोनों की आवश्यकता होती है...यानी की सकरात्मक और नकारात्मक उर्जा दोनो ही सक्रिय रहती हैं, कभी तालमेल नहीं हो पाता है, तो विनाश होता है, और सुर, असुर में सामंजस्य बन जाता है तो विकास | यह सब चक्रिये है, सिर्फ सामंजस्य के बिंदु, रसायन शास्त्र की दृष्टि से बदलते रहते हैं...और विज्ञान भी यही मानता है|
आदि शक्ति ब्रह्माण्ड मैं निरंतर जो बदलाव होते रहते हैं, उसके लेनदेन के लिए जो विशाल शक्ति का प्रयोग होता है, वह है |

कुछ इसी विषय का विस्तार करते हैं, विज्ञानिक मत के अनुसार, तथा जहाँ पुराण का स्पष्ट मत उपलब्ध है, वोह भी जान लीजिये ==>
  1. पृथ्वी के जन्म, विज्ञानिको की माने तो ४,५४,००,००,००० साल पहले हुआ , तथा पूर्ण ब्रह्माण्ड की आयु इससे तिगनी है |
  2. आरम्भ मैं पृथ्वी पिघले हुए धातुमल जैसी लगती थी, जो धीरे धीरे ठंडी, ठोस होई, फिर बाद मैं अत्यंत छोटा और सूक्ष्म जीवन पृथ्वी पर आरम्भ हुआ, 
  3. तथा पुराण भी बताते हैं कि श्री विष्णु शीर सागर पर निंद्रा मैं थे, जब मधु और कैटभ को मार कर एक दुसरे से जोड़ कर पृथ्वी बनी| यहाँ शीर सागर का अर्थ पिघले हुए धातुमल(Molten Lava) के सागर से है जो ब्रह्माण्ड मैं विचार रहा था, तथा विज्ञानिक भी इसकी पुष्टि करते हैं|पढ़ें ==> पुराण बताते हैं पृथ्वी जन्मी दो अत्यधिक सक्रिय उल्का के मिलन और स्थिरता से
  4. विज्ञानिको के अनुसार, ५८,००,००,००० वर्ष पहले जटिल आणविक जीवन भी आरम्भ हो गया, और फिर कुछ समय बाद, वन, पशु पक्षी से पृथ्वी सुसजित हो गयी | कुछ अत्यंत विशाल भीम काय जीव जंतु थे, जो अपनी विशालता के कारण पनप नहीं पाए , लड़मर के ही समाप्त हो गए | तथा इसके बाद आए मानव, वोह भी बहुत बाद मैं |
इसके अतिरिक्त भी और बहुत कुछ अनुमान हैं; लकिन जहाँ विज्ञानिको के पास अनुमान हैं, वहां पुराण अनेक विषयों पर स्पष्ट संकेत देते हैं, इसलिए पृथ्वी के आरंभिक विकास को लेकर विज्ञानिको के अनुमान गलत हैं, ऐसा मैं मानता हूँ | 

मैं बहुत स्पष्ट रूप से यह भी बता देना चाहता हूँ, कि मैं यह मानता हूँ कि श्रृष्टि का वर्तमान विकास चक्रिये है, और पुराणों मैं जो युगों के बारे मैं बताया गया है, उसके अनुसार है | हाँ यह अवश्य हो सकता है कि युगों की अवधि जितनी अधिक दिखाई गयी हो, उतनी ना हो, कम हो| मेरे हिसाब से एक महायुग की अवधि ४३ लाख वर्ष ना होकर १५ लाख वर्ष के आस पास होनी चाहीये |

मैं यह भी मानता हूँ कि विज्ञानिको की वर्तमान सोच की मानव मात्र २ लाख वर्ष पहले आये हैं, पूरी तरह से गलत है, निराधार है; पुराणों की माने तो मानव कम से कम ६ करोड़ वर्ष से पृथ्वी पर हैं |

ध्यान दे विज्ञानिक बताते हैं कि आरंभिक दौर मैं श्रृष्टि पनपती थी, फिर किसी अज्ञात कारण से अपने आप नष्ट हो जाती थी, और यह विज्ञानिको के अनुसार प्रारम्भ मैं अनेक बार हुआ | यदि उस समय के भूगोलिक विकास को देखे तो हिमालय आज के संदर्भ में, उस समय बहुत कम विकसित थे, छोटे थे|पढ़ें==>
History of the Earth,

सति, पार्वती, तथा आदि शक्ति का ही दूसरा नाम है प्रकृति; और उस समय दक्ष श्रृष्टि के लिए नियम बना रहे थे , तथा सति को यज्ञ मैं शरीर त्यागना पड़ा | संकेत स्पष्ट है, श्रृष्टि अपने आप नष्ट हो रही थी, जिसका कारण आज भी विज्ञानिको के पास नहीं है; परन्तु पुराण इसका स्पष्ट उल्लेख कर रहे हैं|

इसके बाद, पुराणों की माने तो भयंकर प्राकृतिक विपदा आई, सारी श्रृष्टि नष्ट हो गयी, तथा यह लम्बे समय तक चली| इस बीच मैं हिमालय विशाल हो गए, पृथ्वी का पोषण करने लगे, सति पार्वती हो कर शिव के पास आ गयी, और आज श्रृष्टि चक्रिये है |पढ़ें==>
Scientists Find Half-Billion-Year-Old Ancestral Mountains In The Himalaya
जय श्री राम, जय माता सीता !

नोट: सुर, असुर, शिव पार्वती से सम्बंधित पोस्ट विज्ञान ही है, यह भी पढ़ें:
शिव की अर्धागिनी, सति फिर पार्वती, क्या श्रृष्टि पहले चक्रिये नहीं थी?

No comments:

Post a Comment