Monday, December 1, 2014

हिन्दू को कर्महीन से कर्मठ बनाना है, काम मुश्किल है, प्रतिबधता चाहीये

हिन्दू समाज पूरी तरह से दासता के लक्षण दिखा रहा है, उसको मात्र भावनात्मक बात पसंद आती हैं| 
यदि यह कहा जा रहा है कि 
श्री राम ने माता सीता के अपहरण की स्वीकृति दी थी, 
या बाल ब्रह्मचारी हनुमान के एक संतान भी थी, 
या द्वारिकाधीश श्री कृष्ण ने अपनी सेना युद्ध मैं किसको देनी है, यह निर्णय द्वारिका पर ना छोड़ कर अर्जुन और दुर्योधन पर छोड़ दिया, क्यूँकी युद्ध तो दुर्योधन और अर्जुन मैं हो रहा था, 
तो देशद्रोह नहीं धर्म है, तो हिन्दू खुश होकर यह कह्गा ‘जी गुरुदेव’ और हमारे संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु इस पर अनेक लेख भी लिख देंगे हां इस बात को छिपा जायेंगे की अब हमने समाज को पूरी तरह जिन्दा लाश बना दिया है |
जब इस सत्य को स्वीकार करलेते हैं की मेरी और आपकी बात तो कोइ सुनेगा नहीं, तो हिन्दू समाज को कर्महीन से कर्मठ बनाने का कार्य और कठिन हो जाता है, क्यूँकी समाज तो सिर्फ धर्मगुरुजनों की बात सुनेगा, और उन्होंने ही धर्म का भावनात्मक भाग समाज के शोषण हेतु और बढ़ा दिया , और आजादी के बाद धर्म मैं जो कर्म का भाग था, उसे पूरी तरह से घटा दिया; समाज पूरी तरह कर्महीन हो गया, जिन्दा लाश की तरह |

समाज को अब चमत्कार के अलावा कुछ समझ मैं नहीं आता,

समाज को कर्म की जगह चमत्कार चाहीये, और धर्मगुरु सब जान कर भी समाज को समझाना नहीं चाहते कि चमत्कार जैसी कोइ चीज़ है नहीं, क्यूँ इसका उत्तर तो संस्कृत विद्वान तक नहीं देंगें | सनातन धर्म मात्र ऐसा धर्म है जो की श्रृष्टि के विकास का कारण क्रमागत उन्नति, या कह लीजिये पृथ्वी के प्राकृतिक विकास(EVOLUTION) को मानता है ना की सृजन(CREATION ) को, और इसका अर्थ हुआ की इश्वर सारी समस्या का समाधान नहीं कर पाता, और इसीलिए श्रृष्टि बार बार प्रलय की और अग्रसर होती है | 

ऐसे मैं क्यूँकी इश्वर स्वर्ग मैं बैठ कर समाज की समस्याओं मैं हस्तक्षेप नहीं कर सकता, यह सनातन धर्म की मान्यता है, तो इश्वर को अवतार लेकर समाज और श्रृष्टि की दिशा को आवश्यक सुधार हेतु दिशा प्रदान करनी होती है | अवतार से विशेष लाभ यह है कि पूर्ण प्रलय बार बार नहीं आती, सिर्फ महायुग मैं एक बार | 

बड़े शर्म की बात हैकि जो नियम प्रधान धर्म है, जैसे इसाई उनके पोप अब प्राकृतिक विकास(EVOLUTION) को स्वीकार कर रहे हैं, और यह भी स्वीकार कर रहे हैं की इश्वर इतना शक्तिशाली नहीं है, जादूगर नहीं है, और हम जिनके धर्म का आधार ही यह है वोह यह भी नहीं कह पा रहे हैं की ‘यही तो हम मानते हैं’ | 

क्या संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु मात्र ठगाई के लिए हैं? 

क्यूँ समाज को जिन्दा लाश बनाया जा रहा है, यह बता कर की इश्वर अत्यंत शक्तिशाली है, चमत्कारी है? मानता हूँ की हमारे धर्मगुरुओं से कम ज्ञान किसी के पास नहीं है, वे सिर्फ एक विद्या जानते हैं, ठगाई, लकिन संस्कृत विद्वान क्या कर रहे हैं ? उन्होंने क्यूँ नहीं मीडिया मैं जा कर यह वक्तव्य दिया की पोप जो कह रहे हैं वही सनातन धर्म मानता है |
LINKS::
पृथ्वी का विकास.. सृजन या क्रमागत उन्नति
http://awara32.blogspot.in/2012/03/blog-post_12.html
God is not ‘a magician, with a magic wand,’ says pope
http://www.washingtonpost.com/blogs/compost/wp/2014/10/28/god-is-not-a-magician-with-a-magic-wand-says-pope/
Pope Rails Against Intelligent Design, Says God Isn't "A Magician"
http://io9.com/pope-rails-against-intelligent-design-says-god-isnt-a-1652162938


ज्यादातर ईसाई खुश हैं की उनके धर्म मैं सुधार आ रहा है, और शर्म की बात है की हमारे धर्मगुरु समाज को पीछे ले जाने की कोशिश कर रहे हैं |
LINK:
Even the Pope Isn’t a Hard-Core Creationist
http://www.thedailybeast.com/articles/2014/10/28/pope-francis-god-is-not-a-magician-with-a-magic-wand.html


समस्या यह है की समाज को कर्मठ बनाने का कार्यक्रम धर्मगुरुओं से जाकर टकराता है, 
और फिर,

मालूम नहीं क्यूँ, 
एक वर्ग 
यह महसूस करता है की उसे धर्मगुरु, चाहे गलत हो या सही, उनका साथ देना है |
धर्मगुरु की जाति या वर्ण से मुझे कोइ मतलब नहीं है, मुझे मतलब है तो पूरे हिन्दू समाज से |
उपर मैंने हिन्दू समाज को जिन्दा लाश कहा है, तो यह मात्र लक्षणा नहीं है, इससे भी बुरी हालत है, हिन्दू समाज की |
मैंने यह सोचा था की सोशल मीडिया के कारण हिन्दू समाज को सशक्त करने की लड़ाई अब आसान हो गयी. लकिन ऐसा नहीं है, उल्टा वहां स्तिथी अत्यंत गंभीर है | पढ़े लिखे लोग होते हुए भी समाज को जो पोस्ट दासता की और ले जाएँ, उसकी तारीफ होती है| अभी हाल मैं एक पोस्ट एक ऐसी महिला ने लिखी जो धर्म की जानकारी रखती है, और उसने यह लिखा की यदि हवंन करा जाए तो समाज के कार्य मैं सफलता मिल सकती है, लोगो ने उसे बहुत सराहा, और किसी ने यह नहीं कहा की इतने खतरे सर पर मंडरा रहे है, पहले भी थे, क्यूँ ठगाई की बात कर रही हो, क्या औरतो के कपडे हमलावरों ने उतरवाने छोड़ दिए थे, क्यूँकी इस धरती पर हवंन भी होता था और होताहै ?
यदि समाज को कर्मठ बनाना है तो आपसब को कम से कम इस ब्लॉग को तो लोकप्रिये बनाना होगा जो गंभीर प्रश्न संस्कृत विद्वानों और धर्म गुरुजनों से पूछ रहा है |समाज मैं सुधार तो यही लायेंगे; इसलिए इनको सुधारों|
जय श्री राम ! जय श्री कृष्ण !!

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