Wednesday, December 10, 2014

युद्ध मैं द्वारिका की भूमिका अर्जुन दुर्योधन तयकरें तो कृष्ण देशद्रोही हैं

कृप्या समझें; 
देश द्रोह और अधर्म , संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु , समाज को गुलाम बना कर रखने के लिए योजनावध तरीके से बता रहे हैं,...
तो फिर आपका शिक्षित होने का क्या लाभ ? 
आपको विरोध करना ही चाहीये ! 
आप सबने महाभारत की वोह कहानी तो सुनी होगी कि कैसे दोनों, अर्जुन और दुर्योधन, एक ही समय द्वारिका पहुंचे द्वारिकाधीश श्री कृष्ण से युद्ध मैं समर्थन मांगने के लिए, और उस समय श्री कृष्ण सो रहे थे, तो दोनों को उनके शयन कक्ष मैं ही भेज दिया गया इंतज़ार करने के लिए | 

आगे कथा यह है कि दुर्योधन कृष्ण के सिरहाने बैठ गए, और अर्जुन चरणों के पास| श्री कृष्ण की जब नींद खुली तो उन्होंने दोनों का अभिप्राय जानने के बाद बताया की एक तरफ उनकी नारायणी सेना रहेगी, और दूसरी और वे अकेले और युद्धभूमि मैं वे अस्त्र नहीं उठाएंगे | 

उन्होंने कहा कि क्यूंकि अर्जुन को उन्होंने पहले देखा है, इसलिए अर्जुन दोनों मैं से किसी एक को चुन ले |अर्जुन ने कृष्ण को चुन लिया और दुर्योधन नारायणी सेना ले कर संतुष्ट हो गए |

अब यह प्रसंग महाभारत मैं है, और यह भी समझ लें की समस्त पुराण, रामायण और महाभारत कोडित भी हैं, और यह बात सारे धर्मगुरुजनों को पता भी है, तथा इसके अतिरिक्त गणेश व्यास संवाद यह स्पष्ट करता है कि महाभारत मैं एक अतिरिक्त कोड और भी है, लकिन यह सब बाते धर्मगुरु आपको क्यूँ नहीं बताते यह आप उनलोगों से पूछीये|

इस पोस्ट को लिखना इसलिए पड़ा क्यूँकी पोस्ट: महाभारत मैं कृष्ण किधर से लड़ेंगे यह तय करेगा द्वारिका, अर्जुन या दुर्योधन?, Link: http://awara32.blogspot.com/2014/08/why-support-both-sides.html

काफी लोकप्रिय होई, और कुछ लोगो ने अपने धर्मगुरुजनों से इस विषय मैं प्रश्न भी कर दिए, तो यह नहीं मालूम की दुबारा उनको ब्रह्मित करने के लिए धर्मगुरुजनों ने क्या बताया गया , लकिन पाठको ने दुबारा ईमेल द्वारा इस विषय पर स्पष्टीकरण नहीं पुष्टिकरण माँगा !

सबसे पहले तो आप बताएं कि यदि भारत या कोइ और देश के प्रधानमंत्री या अधिकारी अपनी सेना युद्ध मैं देने के लिए निर्णय, जैसे उपर कहा गया है लेते हैं तो क्या आप उसे स्वीकार करेंगे ? 

बिलकुल ऐसा लगता है की जैसे कोइ खेल प्रतियोगिता हो रही है, और पूरी तरह से गैर-गंभीर तरीके से यह निर्णय लिया जा रहा है कि ‘जो मुझे पहले दिखा मैं पहले उसकी युद्ध की आवश्यकता पूरी करूँगा’; क्या कोइ बताएगा कि इससे क्या धर्म मिल रहा है? तथा जो मिल रहा है वोह धर्म है या अधर्म?

किसी भी मानक या मापदंड का प्रयोग कर ले, आप पायेंगे की यह राजद्रोह है, अधर्म है, तथा आप अपने प्रधान मंत्री को ऐसा करने की इजाज़त कभी नहीं दे सकते | परन्तु यदि आप यह प्रश्न किसी धर्मगुरु से पूछेंगे तो आपको हस कर बता दिया जाएगा की भगवान् की लीला है, साधारण व्यक्ती क्या समझ सकता है| और चुकी समाज कर्महीन है, जिन्दा लाश की तरह से है, वोह अपनी ‘साधारण व्यक्ती’ वाली बात नवमस्तक होकर स्वीकार कर लेता है, और धर्मगुरु समाज को कर्महीनता से दासता की और धकेलने मैं सफल हो जाते हैं, ताकी समाज का शोषण बिना रोकटोक हो सके|

मालूम नहीं, कुछ इस तरह के प्रसंग रामायण मैं भी हैं, और यह सुनिश्चित करना आसान नहीं है कि यह सब हिन्दू समाज को कर्महीन बना कर शोषण के लिए जानबूझ कर डाले गए हैं, या कोड ना समझने के कारण यह त्रुटी आ रही है, या कोइ और कारण है | बहराल चुकी संस्कृत विद्वानों ने कभी भी इनको सुधारने का प्रयास नहीं करा, तो यह शोषण हेतु जानबूझ कर डाला हुआ लगता है|

फिर से आप लोग समझ लें, सब धर्मगुरुजनों को पता है कि सारे पुराण, वाल्मीकि रामायण और महाभारत कोडित हैं, तथा महाभारत मैं एक अतिरिक्त कोड भी है, जो गणेश व्यास संवाद से पूरी तरह से स्पष्ट है,...

...तो संस्कृत विद्वानों और धर्मगुरुओं ने यह बात समाज को ना बताकर, शोषण हेतु गलत धर्म बताया , ताकी समाज को दास बना कर रखा जाए और शोषण सुनिश्चित करा जाए |

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