Saturday, November 8, 2014

शिव क्रोधित हुए क्यूँकी कामदेव ने तपस्या भंगकी, लकिन आप कुछ और बता रहेहैं

यह पोस्ट एक तो शिव क्रोधित हो सकते हैं इस बात का विरोध करती है, और कारण यह है की शिव का जन्म 'समय' के जन्म से पहले हुआ है, और शिव सदेव वैरागी हैं, तो पूर्ण वैरागी क्रोधित कैसे हो सकता है ? 
फिर किसी मैं इतना भी साहस नहीं है कि यह कहे की शिव का वैराग पूर्ण नहीं है, 
क्यूंकि अगर ...
शिव का वैराग पूर्ण नहीं है तो किसी भी मानव का वैराग आंशिक भी नहीं हो सकता |
तो फिर ऐसी गलत बात संस्कृत विद्वानों ने क्यूँ फैलने दी ?
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इससे पहले एक और पोस्ट इस विषय पर थी, नाम:    कामदेव के भस्म होने का अर्थ…एक विज्ञानिक खुगोलिक दृष्टिकोण 
इस पोस्ट का निष्कर्ष यह है की कामदेव को शरीर के बंधन से मुक्त कराना, एक संकेत है की प्रकृति का फैलाव अभूतपूर्ण रूप से शुरू हो गया,. 'कामदेव के भस्म' हो जाने के बाद | और यह बात भूगोलिक और ऐतिहासिक तथ्यों से भी मेल खाती है |

श्रृष्टि के आरंभिक विकास मैं विशाल पशु पक्षी होते हैं, जो की आजकी सिमटी सिकुड़ी श्रृष्टि मैं नहीं होते हैं, और विज्ञानिक भी इस बात की पुष्टि कर रहेहैं की अब इस समय प्रकृति तेज़ी से सिमट रही है |रामायण काल मैं विशाल पक्षी जटायु मात्र दो बचे थे, चार दांत वाले हाथी थे | मनुष्य की नई प्रजाती वानर भी वन मैं विकसित थी |
स्वंम पुरातात्विक विशेषज्ञों(Archaeological Experts) का यह मत है श्रृष्टि के आरम्भ मैं अनेक विशालकाय पशु, पक्षी, स्तनपायी और समुन्द्र मैं जीव थे, जो की मानव और छोटे जीव जंतु को पनपने नहीं दे सकते थे, जिसमें से कुछ तो प्राकृतिक आपदा मैं समाप्त हुए, कुछ आपस मैं लड़ मर कर | READ : Mass extinctions

और भी अनेक मत है, क्यूँकी सत्य किसी को पता नहीं है, स्वंम पुराण भी इस विषय पर खामोश हैं |
उस समय प्रकृति का तेज़ विकास था, यह हमें रामायण पढ़ कर मालूम हो जाता है क्यूँकि विशाल पक्षी जैसे की जटायु मात्र दो बचे थे, लकिन प्राकृतिक विकास के परिपेक्ष मैं क्या कारण थे, उस समय तेज़ विकास का, और आजकल नकारात्मक विकास का, यह नहीं मालूम पड़ता |

क्यूँ नहीं मालूम पड़ता, इसके दो कारण हैं :

औरो के पास कोइ भी लिखित जानकारी नहीं है, लकिन हिन्दू समाज के पास है, परन्तु धर्मगुरु और संस्कृत विद्वान इस सूचना को समाज तक नहीं पहुचने देना चाहते क्यूँकी इस सूचना के साथ पुराण, रामायण और महाभारत को इतिहास के परिपेक्ष मैं समझाना आवश्यक हो जाएगा, जो की हिन्दू समाज की कर्महीनता कम कर देगा, तो इससे तो धर्म गुरुजनों का नुक्सान है, और यह संस्कृत विद्वान नहीं होने देंगे |

आप यह भी कह सकते हैं की कर्महीनता का इस विषय से कोइ सम्बन्ध नहीं है, लकिन यह गलत है, जो लोग धर्मगुरु या संस्कृत विद्वान हैं वे बुद्धिजीवी हैं और सदीयों से समाज के शोषण की परंपरा को निभा रहे हैं| 
उन्होंने चाणक्य के जाने के पश्च्यात राष्ट्रीयता तक को दफना दिया क्यूँकी चाणक्य ने जो उद्धारण स्थापित करे थे, उससे तो धर्मगुरु को कुटिया मैं जमीन पर सोना पड़ता | और राष्ट्रीयता को दफनाने से छोटे छोटे राज्य होगए, और हर राज्य मैं राजगुरु जिसका वैभव बस देखते ही बनता था, बन गए| धर्म के नाम पर शोषण फलफूलने लगा | यह अलग बात है की हमलावरों ने आकर छोटे छोटे राज्यों पर कब्ज़ा करा, औरतो और बच्चो को मारा गुलाम बनाया, और जबर्दस्त धर्म परिवर्तन भी करा |
कर्महीनता का इस विषय से सम्बन्ध यह है की सूचना युग मैं समाज का स्वरुप एक युवा की तरह होता है ना की दो साल के बच्चे का | एक युवा को बड़े लोगो की कहानी, जैसे उस व्यक्ति की कहानी, जिसने राष्ट्र के लिए कुर्बानी दी, अच्छी लगेगी, लकिन दो साल के बच्चे को नहीं | बच्चे को तो हाथी और चीटी की लड़ाई की कहानी पसंद आयेगी, जिसमे चीटी को अलोकिक शक्ती मिल जाती है, और वोह हाथी को पटक पटक कर मारती है | आपको भी अच्छी लग रही है ना हाथी और चीटी की कहानी, और यही धर्मगुरु और संस्कृत विद्वान मिल कर कर रहे हैं |

तो, उपर जो दिया हुआ है कि प्राकृतिक विकास के परिपेक्ष मैं विशाल जीव क्यूँ समाप्त होते चले गए, वोह हिन्दुओको अपने ग्रंथो से नहीं मालूम पड़पारहा है, उसके दो कारण थे, तो एक तो उपर बता दिया, दूसरा कारण पहले कारण के साथ जुडा हुआ है| जब बिना अलोकिक शक्ति के हम पुराण, महाभारत और रामायण समझेंगे, तब खुगोल, भूगोल पर शोघ होंगे, तब हम, इतिहास के परिपेक्ष मैं यह सारे विषय समझ मैं आयेंगे |
तब वास्तव मैं भारत विश्व गुरु कहलायेगा|

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