Monday, September 1, 2014

सीता अपहरण के पीछे रावण की कूटनीति

जब सूर्पनखा के नाक कान काट दिए गए, तो वीर भाईयों की तरह खर दूषण राम से युद्ध करने गए, और वीरगती को प्राप्त हुए| लकिन सगे भाई रावण ने ऐसा नहीं करा; वोह राजनीति का पंडित था, उसने एक कूटनीति की चाल चली | उसको दस सिर वाला, या दशानन ऐसे ही नहीं कहा जाता था, वोह बुद्धी के बल पर ही इतना उपर आया था, ना की वीरता के कारण |
यहाँ पर रावण वीर नहीं था, इस विषय पर चर्चा नहीं हो सकती, वह एक अलग पोस्ट मैं संभव है, पोस्ट लिंक नीचे दी है| सूर्पनखा की नाक कान कटने के बाद युद्ध ना करना, अपने आप मैं बहुत कुछ प्रमाणित करता है| अब सीधे आते है मुख्य विषय पर; सीता अपहरण के पीछे रावण की क्या कूटनीति थी ?

राजनीती या कूटनीती समझने के लिए यह आवश्यक है कि उस समय की सामाजिक स्थिति को समझ लिया जाय|

सतयुग के आरम्भ से सब कुछ बहुत धीरे धीरे होता है, जिसके बारे मैं अनेक पोस्ट ब्लॉग मैं उपलब्ध हैं| वानर मानव की एक नई प्रजाती वन मैं उत्पन्न होई, जिसके पूछ भी थी, और इस प्रजाती को राज्यों ने मानव मानने से भी इनकार कर रखा था|

उधर राज्यों मैं यह प्रचलन हो गया था की स्त्रियों को शक्तिशाली लोग बिना विवाह करे अपने साथ रखने लगे थे| वानरों और स्त्रियों की समस्या, दोनों को धार्मिक संगरक्षण प्राप्त था | विज्ञान का विकास भी बहुत अच्छा था, अनेक तरह के विमान थे, सामूहिक विनाश के हथियार , जैसे शिव धनुष का विघटन होने लगा था (जो की आज के विश्व मैं अभी नहीं आरम्भ हुआ है), तो स्वाभाविक है की संचार भी आज से अधिक उन्नत था|

रावण प्रतिष्ठित ब्राह्मण थे, उनको बहुत ही बुद्धिमान माना जाता था, इसलिए दसानन भी कहा जाता था, यानि की दस सर जितनी बुद्धी | उनकी ब्राह्मणों मैं और आम जनता मैं शिव भक्त के नाम से ख्याती थी |उसके व्यक्ति वानरों को वन मैं से पकड़ कर लाते और फिर पूरे विश्व मैं व्यापार वानरों का जानवरों की तरह बेच-खरीद से होता था | व्यापार और वाणिज्य मैं लंका बहुत आगे था, लोग रावण के राज्य को सोने की लंका कहते थे | हर राज्य के शक्तिशाली लोग, ख़ास कर ब्राह्मण संगठन, उसके साथ व्यापार मैं प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए थे, और लाभ ले रहे थे |

रावण को यह मालूम था की युद्ध तो वोह जीत नहीं सकता, उसकी सेना अयोध्या की सेना के सामने टिक नहीं पायेगी, सूर्पनखा के नाक कान कटने की बात आम हो गयी थी, जिसके विरोध मैं कैसे खर दूषण वीरगति को प्राप्त हुए इसकी भी चर्चा थी| विश्व के संचार पर उसका प्रभाव था, इसलिए रावण के परस्पर प्रयास से, यह 'तोड़-मोड़' के समाचार भी बार बार आ रहा था की सूर्पनखा सीता से मिलने गयी थी क्यूँकी सीता राम से दुखी थी, और अलग होना चाहती थी |
रावण को तुरंत कुछ तो करना था, नहीं तो उसकी ख्याती धूमिल होने का डर था|

शक्तिशाली लोग पूरे विश्व के जिनसे रावण का सम्बन्ध था रावण की छबी सुधारने मैं लगे थे की कैसे एक ब्राह्मण ने धर्म हेतु एक अबला दुखी स्त्री से मिलने के लिए अपनी बहन को भेजा जिसके नाक कान काट दिए गए| अयोध्या मैं भी इस बात को लेकर आक्रोश था|

इस बात का अच्छी तरह से प्रचार के बाद रावण ने अगला कदम बहुत सावधानी से लिया | एक भिक्षुक के भेष मैं जा कर उसने सीता का अपहरण कर लिया और प्रचार इस बात का किया की, 
“शिव भक्त होने के नाते मैं द्वेष-बैर मन मैं ज्यादा दिन नहीं रखता, एक ब्राह्मण होने के नाते यह अधर्म भी है, इसलिए सब भूल कर मैं जो ब्राह्मण का मुख्य स्वरुप है, एक भिक्षुक का, उसमें श्री राम से मिलने गया, भिक्षा के लिए आवाज़ दी, तो सीता निकल कर आई और अपने को भिक्षा के रूप मैं स्वंम को मुझे समर्पित करने का संकल्प ले लिए | मेरी बड़ी विचित स्थिति हो गयी, मैं तो श्री राम से मिल कर मन मुटाव समाप्त करने गया था, और उसी लिए भिक्षुक के वेश मैं गया था ताकी किसी तरह का भ्रम ना रहे, और अब धर्म सामने आ गया |” रावण आगे बोला, “खैर धर्म तो निभाना ही था, इसलिए मैं सीता को लंका ले आया, और ताकी पराई स्त्री का अपमान न हो इसलिए अपने महल मैं ना रख के, मैंने सीता को महलो से दूर एक वाटिका मैं रखा जिसकी रक्षा भी महिला कर रही हैं|”
 जब इस तरह का प्रचार होगा तो स्वाभाविक है अयोध्या के लोग भी सीता को भला बुरा कहने लगे, भले ही इसका राजकीय स्तर पर खंडन हुआ था| हो सकता है यह भी एक कारण था कि राम, रावण से युद्ध करने के लिए अयोध्या से सेना ना मंगवाना चाहते थे |

और सत्य क्या था, यह तो सबको पता ही है! सूर्पनखा ने जब सीता पर हमला करा तो उसे दण्डित करना आवश्यक था, इसीलिये उसके नाक कान काटे गए | तथा माता सीता का अपहरण रावण ने करा था |

रावण को एक गलत भरोसा था, कि राम उससे लड़ने के लिए सेना नहीं खडी कर पायेंगे |अयोध्या से सेना रावण के प्रचार के कारण संभव नहीं थी, और वन मैं वानर, रावन के अनुमान के हिसाब से वानर इतने सैन्य प्रसिक्षित नहीं थे, और इतनी सेना भी एकत्रित नहीं हो पायेगी की वोह लंका पर चडाई कर सके | और यदि इसके बाद भी राम ने यह गलती करदी कि वोह वानरों की सेना के साथ युद्ध के लिए लंका पर चढ़ाई कर दी , तो लंका की सेना अप्रसिक्षित वानरों को मारेगी भी, खाएगी भी, और व्यापार भी करेगी |रावण का यह भरोसा कितना गलत निकला हम सबको मालूम है|

यदि अलोकिक शक्ति हटा दी जाय, जिसका वेसे भी इतिहास से कोइ सम्बन्ध नहीं है, सिर्फ हिन्दू समाज को गुलाम बना कर रखने के लिए प्रयोग हो रही है, तो आप पायेंगे कि रावण एक शक्तिशाली व्यक्ति नहीं था, हाँ, बुद्धीमान कुशल राजनीतिज्ञ अवश्य था |

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