Monday, September 8, 2014

रावण एक कुशल चतुर राजनीतिज्ञ अवश्य था, वीर कदापि नहीं

रावण के बारे मैं अनेक कथाएँ हैं, जो उसे देवताओं पर विजय पाने वाला अत्यंत शक्तिशाली और पराक्रमी व्यक्ति बताते हैं, जिसके बारे मैं कहावत है कि कैलाश पर्वत उठा लिया, तथा ईश्वर शिव उसपर विशेष प्रसन्न थे| पूरा इतिहास बिना अलोकिक और चमत्कारिक शक्ती के जब आप समझेंगे तो आपको पता पड़ेगा इन सब झूट के पीछे कारण क्या है | 
सत्य तो यह है कि रावण एक सामान्य पर कुशल राजनीतिज्ञ था, जिसने अपना आस्तित्व कूटनीती से बढ़ाया, न की शक्ती से, और ब्राह्मण समुदाय पर उसने अपनी कूटनीती के कारण विशेष पकड़ बनाए रक्खी|
पहले तो आप यह समझ लें कि रामायण और महाभारत बिना अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति के क्यूँ समझा जाए, क्यूँ सदीयों की परंपरा तोडी जाए?

उत्तर स्पष्ट है, आपको रामायण और महाभारत से श्री विष्णु अवतार के विभिन्न धर्म मिलने थे, जो की अलोकिक और चमत्कारिक शक्ती की चादर से ढके हुए हैं; ऐसी कोइ कठिन बात नहीं बताई जा रही है जो की किसी को समझ मैं ना आय, या जो की आज के सूचना युग मैं आप स्वंम प्रयास करके नहीं पता लगा सकते | और वोह भी साधारण प्रयास ! लकिन चुकी हिन्दू समाज कर्महीन है, इसलिए ऐसा कोइ करता नहीं |
और कर्महीन समाज का सदैव अंदर और बाहर, दोनों से शोषण होगा |

समझना आपको है, हिम्मत आपको दिखानी है, मैं तो बस आपको कुछ(ध्यान रहे ‘कुछ’, पूरे नहीं) धर्म बता सकता हूँ जो की रामायण से साफ़ मिल रहे हैं, अगर बिना अलोकिक शक्ती के समझा जाए|और कोइ भी धर्म समझने के लिए ‘गूढता’ का प्रयोग नहीं हुआ है; बहुत आसानी से रामायण को श्री विष्णु के अवतार श्री राम का वास्तविक इतिहास समझ कर, आपको इतिहास की कथा समझनी है, धर्म अपने आप मिल जायेंगे, गूढता की बात ख़त्म हो जायेगी |

कुछ धर्म जो की रामायण को बिना अलोकिक शक्ती के समझे तो तुरंत मिल जायेंगे, जैसे की :
1. स्त्रियों पर विभिन् प्रकार के अत्याचारों को समाप्त करना, तथा अग्नि परीक्षा जैसा असामाजिक शोषण, जिसको धार्मिक मान्यता भी प्राप्त थी उसे अधर्म घोषित करना!

2. कमजोर वर्ग को सामान्य अधिकार समाज में दिलाना; वानर नई प्रजाति थी जो सतयग में प्राकर्तिक विकास से उत्पन्न होई थी, और जिनके पूँछ थी ! वानर जाती को मनुष्य समाज ने तथा समस्त राज्यों ने मनुष्य मानने तक से इनकार कर रखा था, और उनके साथ जानवर जैसा दुर्व्यवहार होता था !

3. श्रीं राम क्यूँ मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते हैं |

4. श्री राम ने सीता को त्याग कर क्या धर्म स्थापित करा ?
चुकी इस पोस्ट का क्षेत्र या फेलान इतना नहीं हो सकता, इसलिए आपको उपरोक्त विषय पर विस्तार मैं जानने के लिए प्रश्न पूछने पड़ेंगे, या ब्लॉग की पोस्ट पढनी होगी | 

अब वापस रावण के विषय मैं बात करते हैं |

रावण की नानी ताड़का थी, सुबाहु और मारीच उसके मामा थे| जहाँ आप अलोकिक शक्तियां हटा दें, तो आप पायेंगे उसके शक्तिशाली होने के, या पराक्रम की कोइ भी प्रमाण नहीं है, सिर्फ राजनीतिज्ञ के हैं |
  1. जब श्री राम और लक्ष्मण ने ताड़का और सुबाहु को मार दिया और एक तेज़ विमान(जो देखने मैं बिना फन वाले तीर जैसा लगता था) से मारीच को रावण के पास बातचीत के लिए उसे लाने भेजा तो वोह चुप चाप चला आया और समझोता करा| क्या यह उसकी शक्ती का परिचय है?
  2. जब सूर्पनखा के नाक कान काट दिया गए, तो ‘शक्तिशाली’ रावण ने अपने चचेरे भाईयों(खर दूषण) की तरह युद्ध नहीं करा, बल्की एक बहुत कूटनीतिज्ञ चाल चली, और उस चाल मैं सीता का हरण हुआ |
  3. अंगद के पिता, किष्किन्धा के राजा बाली से मलयुद्ध हुआ और बुरी तरह परास्त हुआ, और फिर समझोता करके अलग हुआ; यह बात दूसरी है, कि हिन्दू समाज का शोषण होता रहे, इस योजना के अन्तरगत बाली को भी अलोकिक शक्ती से लाद दिया गया |
  4. अब रहा देवता पर विजय की बात, तो सनातन धर्म मैं हर उस पधार्थ को देवता कहते हैं, जो धरती पर उपलब्ध है, इसीलिये उसकी संख्या ३३ कड़ोर बताई गयी है | प्रकृति मैं पाए जाने वाले हर पधार्थ मैं अशुधता(असुर) होती है, जो की स्वीकार है, और देवता वास्तव मैं सुर और असुर का स्वीकृत सामंजस्य है | तो क्या वन मैं प्राकृतिक सम्पदा का विनाश भी रावण कर रहा था ? कृप्या यह पोस्ट अवश्य पढ़ें: आजकल वायु देवता बार बार असुरो से क्यूँ परास्त हो रहे हैं
यह सत्य है की मनुष्य की नई प्रजाती वानर को राम ने वनवास की अवधी मैं सैन्य प्रशिक्षण दिया था, इसलिए रावण की इतनी दुर्गति भी मत करिए की आप यह मान लें की रावण की आधुनिक सेना पत्थर फेकने वाले बंदरो से हार गयी; रावण प्रशिक्षित वानरों की सेना से हारा, हाँ यदि अयोध्या से सेना आती तो उसकी और दुर्गती होती | रावण ने यह कैसे सुनिश्चित करा की अयोध्या या अन्य राज्यों से युद्ध के लिए सेना ना आ पाय, यह एक बाद की पोस्ट मैं बताएंगे |

इसके अतिरिक्त और भी प्रसंग हैं, जैसे की हनुमान ने लंका पहुच कर रावण के एक पुत्र को मार डाला, फिर भी वोह यह साहस नहीं जुटा पाया कि इसका उचित उत्तर कूटनीतिज्ञ के अन्तरगत दिया जाए|

रावण की पकड़ ब्राह्मण समुदाए पर अच्छी थी, जिसका लाभ लेने के उद्देश से उसने सीता का अपहरण करा; उसको मालूम था कि अयोध्या के ब्राह्मण उसका साथ देंगे, और इसीलिए राम ने वानरों की सेना से युद्ध करा |इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि विजय उपरान्त अयोध्या पहुचने पर राम के राजतिलक के लिए अयोध्या के ब्राह्मणों ने मना कर दिया तब बनारस से ब्राह्मण बुलाने पड़े थे, तथा सीता के विरुद्ध अयोध्या मैं उल्टी सीधी बाते भी ब्राह्मणों ने करी, अन्य जातियों को भी उकसाया, जिसके पश्च्यात सीता का त्याग हुआ |

वाल्मिकी रामायण मैं अनेक प्रसंग बार-बार जोड़े घटाए गए हैं, इसलिए उल्लेख धोबी का है, यानी की वाल्मीकि रामायण मैं हेर-फेर करके यह सुनिश्चित करा गया है कि नीच जाती के लोग सीता का विरोध कर रहे थे, ब्राह्मण नहीं कर रहे थे | अयोध्या के ब्राह्मणों के मना करने के उपरान्त ही बनारस से ब्राह्मण श्री राम के राज-भिषेक के लिए बुलाए गए थे, और तभी से बनारस के ब्राह्मण सरयू पारी ब्राह्मण कहलाने लगे; इतनी बात तो आप आज भी पूर्वी उत्तर प्रदेश मैं किसी भी बुजुर्ग ब्राह्मण से मालूम कर सकते हैं |

सीता के हरण पश्च्यात संचार माद्यम का प्रयोग करके क्या क्या उल्टी बाते सीता के बारे मैं कही गयी, और ब्राह्मणवाद का पूरी तरह से प्रयोग करा गया , यह आप पोस्ट: सीता अपहरण के पीछे रावण की कूटनीति
पढ़ कर जानकारी ले सकते हैं | 

यह भी सोचने वाली बात है कि सीता के त्याग के पश्च्यात, किसी उच्च जाति के ब्राह्मण ऋषि या मुनी के यहाँ जाकर सीता ने अपना निवास नहीं बनाया, बल्कि वाल्मीकि के आश्रम मैं जा कर रही, सोचीये क्या कारण हो सकता है |

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