Saturday, April 26, 2014

उत्क्रांति मैं आस्था के कारण सनातन धर्म वर्तमान समाज केन्द्रित है

सनातन धर्म चुकी उत्क्रांति(क्रमांगत उनत्ती, EVOLUTION) मैं आस्था रखता है, तो अन्य धर्मो की तरह यह नियम प्रधान धर्म नहीं है | 
यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि बाकी सब धर्म/मजहब सर्जन(CREATION) मैं आस्था रखते हैं |ईश्वर, समाज व श्रृष्टि के किसी भी कार्य मैं हस्ताषेप नहीं करते| अगर किसी समय के, श्रृष्टि विरोधी नकारात्मक मार्ग को बदलना होता है, तो इश्वर अवतार लेते है| सनातन धर्म उत्पत्ति मैं आस्था रखता है |
उत्क्रांति मैं आस्था के महत्वपूर्व कारण हैं, जिसलिए सनातन धर्म बाकी सब धर्म से भिन्न है| 
इस सत्य को बहुत पहले समझ लिया गया कि कोइ भी आज का आचार, विधि व् नियम, आने वाले कल के लिए अर्थहीन हो जाता है; चुकी उत्क्रांति या क्रमांगत उनत्ती हर बार नई समस्याएँ ले कर आती है, जो की पुरानी समस्याओं से भिन्न होती है | ऐसे मैं वर्तमान समाज की क्षमता और उपयोग को देख कर ही नियम बन सकते हैं, तथा यही कारण है कि सनातन धर्म सबसे प्राचीन धर्म है, और अमर माना जाता है |

इस विषय पर ब्लॉग मैं जगह जगह अनेक उद्धारण भी मिल जायेंगे | स्वाभाविक है कि जहाँ बाकी धर्म/मजहब नियमो से बंधे हैं, क्यूँकी वे सर्जन मैं आस्था रखते हैं, सनातन धर्म सारे नियम वर्तमान समाज को केंद्रबिंदु मान कर ही बना सकता है|

कुछ ऐसे भी ईमेल आए हैं जिनमें पाठको के धर्मगुरुजनों ने इस बात का विरोध करा की यह ब्लॉग यह बात गलत कह रहा है कि हिन्दू सर्जन मैं नहीं उत्पत्ति(क्रमांगत उनत्ती, EVOLUTION) मैं आस्था रखते हैं | वे अभी भी यह बता रहे हैं हिन्दू सर्जन मैं ही आस्था रखता है | यह बिलकुल गलत है | 
फिर से कह रहा हूँ ईश्वर, समाज व श्रृष्टि के किसी भी कार्य मैं हस्ताषेप नहीं करते| अगर किसी समय के, श्रृष्टि विरोधी नकारात्मक मार्ग को बदलना होता है, तो इश्वर अवतार लेते है | फिर कैसे आप कह रहे हैं कि उत्पत्ति या क्रमांगत उनत्ती में सनातन धर्म की आस्था नहीं है ?
सनातन धर्म उत्पत्ति मैं आस्था रखता है, और वर्तमान समाज को केंद्रबिंदु मान कर ही समाज के लिए नियम बनाता है |

यहाँ तक तो है कि धार्मिक प्रवचन मैं कर्म और भावना के अनुपात को बढाने, घटाने तक का प्राविधान है, और उसके लिए पुराण, रामायण और महाभारत की प्रमुख भूमिका है |
धर्म की परिभाषा :(यहाँ सिर्फ सनातन धर्म की बात हो रही है):

पहले यह समझ लीजिये की सनातन धर्म चुकी क्रमांगत उनत्ती (EVOLUTION) पर विश्वास रखता है, ना की सर्जन(CREATION) पर, इसलिए वोह नियम प्रधान धर्म, नहीं है; वोह सारे नियम वर्तमान समाज को केंद्रबिंदु मान कर ही बना सकता है|

सनातन धर्म समय समय पर समाज की अवस्था देख कर, समाज के लिए जो नियम व धार्मिक दिशा निर्देश देता है, जिससे :

१) समाज की रक्षा हो सके,
२) समाज मैं आपसी प्रेम और भाईचारा बना रहे, और परस्पर सहयोग से हर समस्या से निबटने के लिए क्षमता विकसित हो सके,
३) धार्मिक प्रवचन मैं उचित अनुपात भावना और कर्म(भक्ति और कर्म) का सुनिश्चित करना, समाज की स्तिथी के अनुसार| 

जैसे की अभी हाल की १०००० वर्षों की गुलामी मैं समाज का स्वरुप एक अबोध बालक की तरह कर दिया गया था, जिसके लिए भक्ति भाग बढ़ा दिया गया था, और यहाँ तक बढ़ाया गया कि कर्मवीर श्री कृष्ण को गोपियों के साथ रास रचाते दिखा दिया| 

ठीक उसी तरह आज समाज की क्षमता है, युवा व्यवस्था है, हिंदू समाज की , और अब भक्ति भाग घटा कर कर्म का भाग बढ़ना था, 

जो की नहीं हुआ, 

फिर से समझ लीजिये, नहीं हुआ;
और हिंदू समाज कर्महीन हो गया ..यह अति आवश्यक है|

४) समाज मैं हर व्यक्ति को सामान अवसर के आधार पर उनत्ति का अवसर प्रदान करने मैं सहायक होना

इस परिभाषा का और भी विस्तार किया जा सकता है, जिसमें, पर्यावर्हन, प्रकृत्ति तथा अन्य समाज की और उत्तरदाईत्व पर भी टिप्पणी हो सकती है, लकिन आवश्यकता नहीं है |

नीचे उन दोनों पोस्टो की लिंक दी जा रही है, जो इस पोस्ट को समझने मैं सहायक होंगी :-

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